विवेक मिश्रा
धरती की सतह धीरे-धीरे इतनी गर्म होती जा रही है कि हर मौसम और साल में चिंताजनक रिकॉर्ड दर्ज हो रहे हैं। दुनिया के कैलेंडर में 2024 ऐसा वर्ष रहा जिसे औसत वैश्विक तापमान में ऐतिहासिक रूप से सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया है।
जलवायु पर काम करने वाली एजेंसी कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बताया कि यह पहला वर्ष है जब औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक हो गया। कोपरनिकस की यह घोषणा जलवायु परिवर्तन के गहराते प्रभावों की चेतावनी देती है।
कोपरनिकस की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में अत्यधिक गर्मी, बाढ़, सूखा और जंगल की आग की घटनाएं बढ़ीं। उदाहरण के लिए, कनाडा और बोलीविया में जंगल की आग ने रिकॉर्ड तोड़ दिया। वहीं, उच्च तापमान और आर्द्रता ने गंभीर स्तर की गर्मी की स्थिति को बढ़ावा दिया। रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2024 में वैश्विक स्तर पर 44 फीसदी क्षेत्र “गंभीर” से “अत्यधिक” गर्मी तनाव वाली स्थिति में रहा। 2024 की गर्मी को बढ़ाने में अल नीनो की घटना ने भी योगदान दिया।
1.5 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान अधिक होने का मतलब क्या है?
जब हम कहते हैं कि पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 14 डिग्री सेंटीग्रेड था, तो यह उस समय का तापमान है जब फैक्ट्रियां और बड़ी मानव गतिविधियां जलवायु को प्रभावित करना शुरू नहीं हुई थीं। वैज्ञानिकों का मानना है कि 19वीं शताब्दी से पहले का समय जब औद्योगिकीकरण से पहले पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 13.7 डिग्री सेंटीग्रेड से 14 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच था। बहरहाल भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने भी हाल ही में अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था।
कोपरनिकस रिपोर्ट के अहम तथ्य
- 2024 का औसत वैश्विक तापमान 1850-1900 के पूर्व – औद्योगिक औसत से 1.6 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक रहा।
- यह पहला कैलेंडर वर्ष है जब पूरे वर्ष का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड के स्तर को पार कर गया।
- 2024 में जनवरी से जून तक सभी महीने अब तक के सबसे गर्म रहे, और शेष महीनों में भी अधिकांश ने रिकॉर्ड बनाए।
- 22 जुलाई 2024 को वैश्विक औसत तापमान 17.16 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच गया, जो अब तक का सबसे गर्म दिन था।
- 2024 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 422 भाग प्रति मिलियन और मीथेन का स्तर 1897 भाग प्रति अरब तक पहुंच गया।
कोपरनिकस रिपोर्ट ने आकलन किया है कि इसका क्षेत्रीय स्तर पर क्या फर्क पड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक :
- यूरोप में 2024 का औसत तापमान 10.69 डिग्री सेंटीग्रेड रहा, जो 1991-2020 के औसत से 1.47 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक था। यह यूरोप के लिए अब तक का सबसे गर्म वर्ष था।
- उत्तरी अटलांटिक, भारतीय महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्री सतह का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर रहा। औसत समुद्री सतह का तापमान 20.87°C तक पहुंचा।
- ग्लेशियर और समुद्री बर्फ पर प्रभाव: अंटार्कटिका और आर्कटिक में समुद्री बर्फ का स्तर रिकॉर्ड निम्न पर रहा। अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ का विस्तार नवंबर 2024 में सबसे कम स्तर पर दर्ज किया गया।
वैज्ञानिकों की स्पष्ट चेतावनी
कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के निदेशक कार्लो बुएंटेम्पो ने कहा, “2024 ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मानवता अपने भविष्य को नियंत्रित कर सकती है, लेकिन इसके लिए जलवायु संकट से निपटने के लिए त्वरित और निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है।”
यूरोपीय आयोग के पर्यवेक्षक माउरो फकीनी ने कहा, “हमारे पास जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुकूलन के लिए विज्ञान और नवाचार का उपयोग करने का अवसर है।” यह रिपोर्ट वैश्विक जलवायु संकट की गंभीरता को उजागर करती है और सभी देशों को तत्काल कदम उठाने की प्रेरणा देती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )