दयानिधि
दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक चुनौती बनी हुई है, जो दशकों की चिकित्सा के क्षेत्र में हुई प्रगति को एक झटके में नष्ट कर सकता है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक या परजीवी पर उनके इलाज के लिए बनाई गई दवाओं का असर नहीं होता है, जिससे संक्रमण का इलाज करना मुश्किल हो जाता है।
दवा-प्रतिरोधी रोगजनकों के कारण होने वाले रक्त प्रवाह संक्रमण (बीएसआई) न केवल रोगियों के स्वास्थ्य के लिए बल्कि उनके धन के लिए भी विशेष रूप से भारी खतरा पैदा करते हैं।
एक नए अध्ययन में एएमआर संक्रमण की वजह से पड़ने वाले आर्थिक बोझ पर प्रकाश डाला गया है। ये अस्पताल, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध निगरानी नेटवर्क (अमरसन) का हिस्सा हैं, जिन्होंने रक्त कल्चर संवेदनशीलता परीक्षण के लिए मानकीकृत प्रोटोकॉल का पालन किया।
निजी अस्पतालों में 560 से लेकर सरकारी सुविधाओं में 1,700 से अधिक बिस्तरों की क्षमता के साथ, अध्ययन एएमआर के वित्तीय प्रभावों का एक व्यापक नजरिया प्रदान करता है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध में कई संस्थानों ने भाग लिया था। अध्ययन में प्रतिरोधी और बिना प्रतिरोध वाले संक्रमणों के बीच उपचार के खर्च में भारी अंतर पाया गया। रोगाणुरोधी प्रतिरोधी संक्रमणों के प्रबंधन के लिए औसत कुल लागत लगभग 14,712.07 रुपये थी, जबकि अतिसंवेदनशील स्ट्रेन के कारण होने वाले संक्रमणों के लिए यह 8,058 रुपये थी।
शोध के मुताबिक, प्रतिरोधी संक्रमणों के लिए हर दिन औसत लागत 4,805.45 रुपये रही, जो बिना प्रतिरोध वाले संक्रमणों के लिए 2,587.55 रुपये से लगभग दोगुनी है। इन खर्चों में दवाइयों का खर्च सबसे ज्यादा है, जो सरकारी अस्पतालों में बढ़ता खर्च का 61.5 फीसदी और निजी अस्पतालों में 27.1फीसदी था। इसके अलावा आय की हानि और अतिरिक्त देखभाल व्यय सहित अप्रत्यक्ष खर्चों ने परिवारों पर एक बड़ा आर्थिक दबाव डाला। लगभग 46.5 फीसदी रोगियों ने अस्पताल में भर्ती होने के खर्च को पूरा करने के लिए पैसे उधार लिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा पहचाने गए गंभीर या उच्च प्राथमिकता वाले रोगजनकों की उपस्थिति, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह की चिकित्सा में होने वाले खर्चों में भारी वृद्धि करती है। एंटरोबैक्टीरियासी, एसिनेटोबैक्टर और स्टैफिलोकोकस ऑरियस जैसे रोगजनकों के कारण अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है और दवाइयों का खर्च बढ़ जाता है।
रुग्णता, अस्पताल में रहने की अवधि और अंतिम निदान भी देखभाल की पूरे खर्चे को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, प्रतिरोधी स्ट्रेन या उपभेदों से संक्रमित रोगियों को अक्सर अधिक समय तक अस्पताल में भर्ती रहने और विशेष तरह की दवाओं की जरूरत पड़ती है, जिससे खर्च और अधिक बढ़ जाता है।
दुनिया भर में एएमआर संक्रमण हर साल 2,50,000 से अधिक मौतों के लिए जिम्मेवार है और अनुमान है कि अगर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो 2050 तक हर साल एक करोड़ मौतें तक होने की आशंका जताई गई है। केवल भारत में, दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण नवजात शिशुओं की 2013 में 58,000 से अधिक मृत्यु रिकॉर्ड की गई। ये चौंका देने वाले आंकड़े एएमआर से चिकित्सकीय और आर्थिक रूप से निपटने की तत्काल जरूरतों को सामने लाता है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि एएमआर के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना में उल्लिखित रणनीतियों को तत्काल लागू किया जाना चाहिए। इनमें संक्रमण की रोकथाम को बढ़ाना, एंटीबायोटिक के उपयोग को अनुकूलित करना और रोगजनक-विशिष्ट हस्तक्षेपों पर शोध को प्राथमिकता देना शामिल है।
शोध के अनुसार, आर्थिक दृष्टिकोण से, बेहतर संसाधन आवंटन और नीति-निर्माण के लिए प्रतिरोधी संक्रमणों से जुड़ी बढ़ती लागतों को समझना आवश्यक है। इन खर्चों से निपटने के लिए, स्वास्थ्य सेवा प्रणालियां न केवल जीवन बचा सकती हैं, बल्कि रोकथाम करने योग्य संक्रमणों के कारण परिवारों को आर्थिक संकट में फंसने से भी बचा सकती हैं।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध न केवल एक चिकित्सा के क्षेत्र में भारी चुनौती है, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक चुनौती भी है। इस अध्ययन के निष्कर्ष एएमआर निगरानी, उपचार के किफायती विकल्पों और सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों में निरंतर निवेश की तत्काल जरूरत को सामने लाते हैं। स्वास्थ्य पर होने वाले बेहताशा खर्च भारत जैसे कम और मध्यम आय वाले देशों में असुरक्षित आबादी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )