दीपक वर्मा
हमें बरसों से समझाया गया कि अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच, भेदभाव- ये सब ‘सदियों से चला आ रहा है’. जैसे इंसान पैदा ही हुआ है दूसरों को दबाने और दबने के लिए. पर अब एक 10,000 साल पुरानी खुदाई और 1,000 बस्तियों के अध्ययन ने ये झूठ नंगा कर दिया है. नई रिसर्च ने बताया कि बराबरी मुमकिन थी, पर सत्ता ने नहीं होने दी. ‘द ग्लोबल डायनामिक्स ऑफ इनइक्वालिटी’ (GINI) नाम की स्टडी में पुरातत्वविदों ने 50,000 घरों की बनावट और साइज का एनालिसिस किया. अमेरिका, यूरोप, एशिया और मेसोअमेरिका की पुरानी सभ्यताओं की तुलना की गई. नतीजा साफ था: असमानता तब बढ़ती है जब सत्ता इसे बढ़ने देती है.
रिसर्चर्स कैसे इस नतीजे पर पहुंचे?
घर का साइज से दौलत का हिसाब लगाया गया. ज्यादा बड़े घर यानी ज्यादा अमीर, छोटे और संकरे घर मतलब गरीब. यही था इस स्टडी का आधार. घरों के साइज में जितना अंतर मिला, उसे ‘Gini Coefficient’ में बदलकर देखा गया. यानी अगर सबके पास बराबर दौलत हो तो स्कोर होगा 0, और अगर सब कुछ एक के पास हो तो स्कोर होगा 1. अमेरिका का स्कोर आज 0.41 है. नॉर्वे का 0.27. लेकिन हजारों साल पुरानी सभ्यताओं में ये आंकड़े बहुत अलग थे और कुछ जगहों पर हैरानी वाली ‘बराबरी’ दिखी.
जवाब साफ है, सत्ता की नीयत की वजह से. जहां समाजों ने दौलत को साझा किया, जहां नियम बनाए गए कि कोई एक इंसान सब कुछ नहीं हड़पेगा, वहां बराबरी बनी रही. एथेंस में अमीरों से जबरन कहा जाता था कि तुम त्योहारों और सार्वजनिक कामों का खर्च उठाओ. कुछ सभ्यताओं में मरने वाले की संपत्ति गरीबों में बांटी जाती थी. कहीं कर्ज माफ होते थे ताकि कोई गुलाम बनकर न मरे. यानी समाज ने चाहा, तो बराबरी बनी. और अगर ना चाहा तो अमीरों ने सब कुछ हथिया लिया.
खेती और अमीरी का झूठा रिश्ता
हमें बताया गया कि खेती शुरू हुई तो अनाज बचा, और तभी से अमीरों का उदय हुआ. लेकिन स्टडी ने साफ कहा कि ये कहानी अधूरी है. कुछ किसान समाजों में भी समानता बनी रही, और कुछ शिकारी समाजों में भी अमीरी-गरीबी दिखी. असल कारण था कि कौन कानून बना रहा था? और क्यों? जब सत्ता एक छोटे तबके के पास गई, वहीं से असमानता शुरू हुई. और जब आम जनता ने बराबरी के नियम बनाए, तब तक चीजें संतुलित रहीं.
इस स्टडी का सबसे बड़ा हमला उस सोच पर है, जो कहती है कि ‘गरीब होना किस्मत है’, ‘सिस्टम ऐसा ही है’, ‘सब बराबर नहीं हो सकते’. ये बातें सत्ता में बैठे लोग फैलाते हैं ताकि कोई उन्हें चुनौती न दे.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )