अनिल अश्वनी शर्मा

भारत में केवल 7.8 प्रतिशत रोगियों को ही दवा प्रतिरोधी संक्रमणों (ड्रग रीजिस्टन्ट इन्फेक्शन) के लिए एंटीबायोटिक मिल पाती है। यह बात ग्लोबल एंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पार्टनरशिप द्वारा किए गए शोध से पता चली है। इसके अलावा यह भी पता चला है कि भारत सहित निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से प्रभावित एक बड़ी आबादी का उचित तरीके से इलाज नहीं किया जा रहा है क्योंकि उनकी एंटीबायोटिक तक पहुंच ही नहीं है। यह अध्ययन द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में विश्व के निम्न व मध्यम आय वाले आठ देशों में एंटीबायोटिक दवाओं की पहुंच की कमी पर विस्तृत रूप से विश्लेषण किया गया है।

अध्ययन में कहा गया है कि ऐसे गंभीर संक्रमणों के लिए उचित उपचार नहीं होने से बीमारियों और मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल की लागत में भी बढ़ोतरी होती है। यही नहीं ऐसे हालात में अस्पताल में भर्ती होने में भी एक लंबा वक्त लगता है। गैर-लाभकारी स्वास्थ्य संगठन ग्लोबल एंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पार्टनरशिप (एआरडीवी) द्वारा किए गए इस शोध से पता चला है कि भारत सहित निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बड़ी संख्या में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से प्रभावित रोगियों का उचित तरीके से इलाज नहीं किया जा रहा है।

अध्ययन में देखा गया कि आठ भौगोलिक रूप से विविध आबादी वाले देशों (बांग्लादेश, ब्राजील, मिस्र, भारत, केन्या, मैक्सिको, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका) में कार्बापेनम प्रतिरोधी ग्राम नेगेटिव (सीआरजीएन) संक्रमण के लगभग 15 लाख मामलों के इलाज के लिए कौन सी एंटीबायोटिक  का उपयोग किया गया। इस अध्ययन का उद्देश्य स्वास्थ्य सुविधा की प्रारंभिक परिस्थितियों से लेकर इसके निदान और साथ ही इसके परीक्षण में आने वाली बाधाओं को दूर करना है।

अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जेनिफर कोहन बताते हैं कि हम तीन पहलुओं पर विचार कर रहे थे। यह हैं- एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुंच के अंतर का मूल्यांकन करना, बेहतर डेटा बनाना जो देखभाल के बेहतर तरीके को परिभाषित करने के लिए अनिवार्य होगा और ऐसे मजबूत कार्यक्रमों या नवाचारों पर विचार करना जो राष्ट्रों में बेहतर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रबंधन को सक्षम बनाते हैं।

यह अध्ययन केवल भारत सहित आठ देशों पर केंद्रित था। संक्रामक रोग विशेषज्ञ डिक्लेरेशन ट्रस्ट के संस्थापक अब्दुल गफूर कहते हैं कि हम सभी जानते हैं कि भारत जैसे देशों में उच्च-स्तरीय एंटीबायोटिक दवाओं का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जाता है, जिससे इन जीवन रक्षक दवाओं के प्रति प्रतिरोध में महत्वपूर्ण योगदान होता है। लेकिन यह शोध हमें एक समान रूप से चिंताजनक मुद्दे की याद दिलाता है यानी एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुंच की कमी।

उन्होंने कहा कि 2019 में भारत में लगभग 10 लाख कार्बापेनम प्रतिरोधी ग्राम नेगेटिव संक्रमण थे फिर भी 1 लाख से कम रोगियों को ही उचित उपचार मिल पाया। अध्ययन से पता चलता है कि इन संक्रमणों के कारण लगभग 3.5 लाख मौतें हुईं। डॉ. गफूर ने आगे सुझाव दिया कि इस दोहरे संकट को दूर करने के लिए हमें दोनों मोर्चों पर काम करना चाहिए। जैसे मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं को संरक्षित करना और उन लोगों तक पहुंच सुनिश्चित करना जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है।

शोधकर्ता अनंत द्वारा लिखे गए शोधपत्र में सिफारिशें की गईं हैं कि नियामक बनाए जाने की जरूरत है यह न केवल दवाइयों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी बल्कि एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को भी नियंत्रित करेंगी। साथ ही यह सुनिश्चित करेगी कि राष्ट्र और संस्थान दवाओं की पहुंच की खाई को शीघ्रता से पाटें। साथ वह अपने शोधपत्र में कहते हैं कि देखभाल, निदान और उचित उपचार में आने वाली बाधाओं को बेहतर ढंग से दूर करने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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