दीपक वर्मा

भारत के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के शिव शक्ति प्वॉइंट पर कुछ ऐसा खोजा है जिसका पता अमेरिका और चीन भी नहीं लगा पाए थे. प्रज्ञान रोवर पर लगे इंस्ट्रुमेंट के डेटा से चौंकाने वाली बात पता चली है.

भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने चांद के शिव शक्ति पॉइंट पर कमाल की खोज कर डाली है. यह खोज अब तक के तमाम अंतरिक्ष अभियानों को नई नजर से देखने पर मजबूर कर रही है. चंद्रयान-3 को मिले संकेतों से साफ है कि चांद की सतह के नीचे एक ऐसा इतिहास दफन है, जो ना तो अमेरिका के अपोलो मिशन ने देखा, ना ही रूस और चीन की कोशिशों ने समझा.

प्रज्ञान रोवर में लगे अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) ने चांद की मिट्टी में एक हैरान करने वाला पैटर्न देखा है. यहां सोडियम और पोटैशियम का स्तर बेहद कम है, जबकि सल्फर की मात्रा औसत से कहीं ज्यादा पाई गई है. ये वही दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र है, जहां सूरज की तपिश दिन में काफी ज्यादा होती है, जिससे सतह पर सल्फर का जमाव संभव नहीं. यानी ये सल्फर बाहर से नहीं आया, बल्कि चांद की अंदरूनी परतों से निकला है.

चंद्रमा पर कहां से आया सल्फर?

वैज्ञानिक मानते हैं कि ये सल्फर अरबों साल पहले हुए एक भीषण टकराव का परिणाम है. करीब 4.3 अरब साल पहले, साउथ पोल-एइटकेन बेसिन में एक बड़ा उल्कापिंड गिरा था. इस टक्कर ने चांद की ऊपरी परत को फाड़ दिया और उसके आदिम मैटल (mantle) यानी आंतरिक परत से कुछ बेहद खास तत्व बाहर निकल आए. उसी का अंश आज शिव शक्ति पॉइंट पर सल्फर के रूप में नजर आ रहा है.

क्यों अहम है यह खोज?

अब तक के अमेरिकी, रूसी और चीनी मिशन KREEP-rich इलाकों में उतरे थे. ये वो क्षेत्र हैं जहां पोटैशियम, फॉस्फोरस और रेयर अर्थ एलिमेंट्स की भरमार है. लेकिन चंद्रयान-3 एक ऐसे बिंदु पर पहुंचा, जो इनसे अलग है और यही इसकी सबसे बड़ी जीत है.

ये खोज सिर्फ भू-रासायनिक विविधता की समझ को नहीं बदलती, बल्कि चांद पर भविष्य में बस्तियां बसाने के सपनों को भी दिशा देती है. सल्फर एक अहम निर्माण सामग्री हो सकती है. इसके अलावा, ये डेटा वैज्ञानिकों को चांद की शुरुआती बनावट, मैग्मा के ठंडे पड़ने की टाइमलाइन और वाष्पशील तत्वों की भूमिका को समझने में मदद करेगा.

       (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )

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