ललित मौर्या
भारत के कई राज्यों में आज भी बड़ी आबादी ऐसे पानी पर निर्भर हैं जिसमें फ्लोराइड और आयरन का स्तर बेहद अधिक है। इस जहरीले पानी को सेवन हड्डियों और शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक होता है। लेकिन अब आईआईटी गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान खोज लिया है।
आईआईटी गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कम्युनिटी-स्केल वॉटर ट्रीटमेंट सिस्टम विकसित किया है, जो हर दिन 20,000 लीटर फ्लोराइड और आयरन युक्त दूषित भूजल को साफ कर सकता है। ऐसे में यह तकनीक कम लागत पर दूरदराज के गांवों और कस्बों में सुरक्षित पीने का पानी पहुंचाने में बेहद कारगर साबित हो सकती है।
कितनी गंभीर है फ्लोराइड की समस्या?
फ्लोराइड एक मिनरल है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर टूथपेस्ट, कीटनाशकों, उर्वरकों और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं में होता है। यह प्राकृतिक रूप से या कृषि और उद्योग जैसी मानव गतिविधियों के कारण भूजल में घुल सकता है। ज्यादा फ्लोराइड युक्त पानी पीने से स्केलेटल फ्लोरोसिस नामक गंभीर बीमारी हो सकती है। इस बीमारी में हड्डियां सख्त हो जाती हैं और जोड़ों में अकड़न और दर्द होता है।भारत के कई राज्यों जैसे राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और गुजरात में यह समस्या गंभीर है।
साझा जानकारी के मुताबिक आईआईटी गुवाहाटी द्वारा विकसित यह तकनीक चार मुख्य चरणों में पानी को शुद्ध करती है। इसमें पहले चरण में विशेष उपकरण की मदद से पानी में ऑक्सीजन मिलाई जाती है ताकि घुला हुआ आयरन निकल जाए। इस चरण को एरेशन कहते हैं। इसके बाद इलेक्ट्रोकोएगुलेशन का चरण आता है, जिसमें एल्यूमीनियम इलेक्ट्रोड से हल्का विद्युत प्रवाह भेजा जाता है, जिससे पानी में मौजूद दूषित तत्व आकर्षित होकर जुड़ जाते हैं।
इसके बाद फ्लोकुलेशन और सेटलिंग की बारी आती है। इस दौरान जुड़े हुए कण बड़े गुच्छों में बदल जाते हैं और फ्लोकुलेशन चैंबर में नीचे बैठ जाते हैं। इसके बाद अंत में पानी को कोयले, रेत और बजरी की कई परतों वाले फिल्टर से गुजारा जाता है, जिससे बची हुई अशुद्धियां भी हट जाती हैं।
किफायती होने के साथ है प्रभावी
आईआईटी गुवाहाटी द्वारा साझा जानकारी से पता चला है कि इस तकनीक की सबसे खास बात किफायती होना है। यह महज 20 रुपए के खर्च पर 1,000 लीटर पानी साफ कर सकती है। इतना ही नहीं इसे चलाने में बहुत कम निगरानी की जरूरत होती है और इसका जीवनकाल करीब 15 साल है। हालांकि इसमें हर छह महीने में इलेक्ट्रोड बदलने की आवश्यकता होती है, जिसे समय पर बदलने के लिए एक सेफ्टी अलर्ट सिस्टम भी जोड़ा गया है।
इस तकनीक को काकाटी इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा असम के चांगसारी इलाके में पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग के सहयोग से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर स्थापित किया गया है। जहां लगातार 12 सप्ताह तक इसका सफल परीक्षण किया गया। इस दौरान बेहतर नतीजे सामने आए। टेस्ट में यह सिस्टम 94 फीसदी आयरन और 89 फीसदी फ्लोराइड को पानी से हटाने में सफल रहा, जिससे पानी भारतीय मानकों के अनुसार सुरक्षित हो गया।
आने वाले समय में और उन्नत होगी तकनीक
भविष्य की संभावनाओं पर बात करते हुए प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत ने जानकारी दी, “हम इस सिस्टम को सौर या पवन ऊर्जा से चलाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। इसके साथ ही इलेक्ट्रोकोएगुलेशन प्रक्रिया में बनने वाली हाइड्रोजन का भी उपयोग करने की योजना है।
साथ ही, रियल-टाइम सेंसर और ऑटोमैटिक कंट्रोल जैसी स्मार्ट तकनीकों को जोड़कर हम इसे और भी कम देखरेख में चलने योग्य बना सकेंगे, ताकि यह दूर-दराज और जरूरतमंद इलाकों में भी प्रभावी ढंग से काम कर सके।” इसके अलावा, वैज्ञानिक इस सिस्टम को अन्य जल शुद्धिकरण तकनीकों के साथ जोड़ने पर काम कर रहे हैं, ताकि इसकी कार्यक्षमता और बढ़ाई जा सके। इस बारे में किए अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस ईएसएंडटी वाटर में प्रकाशित हुए हैं। इस तकनीक का विकास आईआईटी गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर मिहिर कुमार पुरकैत, डॉक्टर अन्वेशन, डॉक्टर पियाल मंडल और रिसर्च स्कॉलर मुकेश भारती ने मिलकर किया है।
देखा जाए तो आईआईटी गुवाहाटी की यह पहल न केवल विज्ञान की दृष्टि से बड़ी उपलब्धि है, बल्कि यह देश के उन लोगों के लिए भी राहत की उम्मीद है जो आज भी साफ पानी के इंतजार में हैं। यह तकनीक गांव-गांव में स्वच्छ जल की रोशनी लेकर आ सकती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )