ललित मौर्या
फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में पाया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ‘स्लीप एपनिया’ के मामले बढ़कर दोगुने हो सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा। बेहतर नींद न केवल शरीर बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बेहद जरूरी है। हालांकि जिस तरह से वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है उसके साथ-साथ स्लीप एपनिया का खतरा भी बढ़ रहा है।
फ्लींडर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी नई रिसर्च में पाया है कि बढ़ते तापमान के कारण इस बीमारी के मामले सदी के अंत तक दोगुने हो सकते हैं। इतना ही नहीं यह बीमारी पहले से कहीं अधिक गंभीर रूप ले सकती है।
गौरतलब है कि स्लीप एपनिया नींद सम्बन्धी विकार है, जो दुनिया भर में करीब 100 करोड़ लोगों को प्रभावित कर रहा है। यह हार्ट डिजीज, डिमेंशिया, हाई ब्लड प्रेशर, चिंता, पार्किंसंस, डिप्रेशन जैसी कई गंभीर समस्याओं से जुड़ा है। यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस विकार से न केवल जीवन की गुणवत्ता घटती है, साथ ही सड़क दुर्घटनाओं व असमय मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है।
इस डिसऑर्डर में पीड़ित की श्वास नली के ऊपरी मार्ग में रुकावट होने लगती है। इसकी वजह से सोते समय सांस बार-बार रूकती और चलती है। चिंता की बात तो ये है कि इसकी वजह से सोते समय पीड़ित की सांस कुछ सेकंडों से लेकर एक मिनट तक के लिए रुक सकती है, जो मृत्यु तक का कारण बन सकती है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।
इस अध्ययन में पाया गया है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा, वैसे-वैसे ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) की गंभीरता भी बढ़ेगी। यदि जलवायु परिवर्तन के मौजूदा अनुमान सच साबित होते हैं, तो वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि अगले 75 वर्षों में ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया का सामाजिक बोझ बढ़कर कई देशों में दोगुना हो सकता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 29 देशों के 1,16,000 से ज्यादा लोगों के नींद सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इन आंकड़ों को एफडीए-स्वीकृत अंडर-मैट्रेस सेंसर की मदद से इकट्ठा किया गया, ताकि स्लीप एपनिया की गंभीरता का आकलन किया जा सके।
इस दौरान हर व्यक्ति की नींद सम्बन्धी आंकड़ों को करीब 500 रातों तक रिकॉर्ड किया गया, जिसे बाद में जलवायु मॉडलों से मिले 24 घंटे के तापमान के डेटा से मिलाया गया। मतलब की इस दौरान 5.8 करोड़ रातों के आंकड़े एकत्र किए गए। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।
इस अध्ययन में पाया गया है कि जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा, वैसे-वैसे ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) की गंभीरता भी बढ़ेगी। यदि जलवायु परिवर्तन के मौजूदा अनुमान सच साबित होते हैं, तो वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि अगले 75 वर्षों में ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया का सामाजिक बोझ बढ़कर कई देशों में दोगुना हो सकता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 29 देशों के 1,16,000 से ज्यादा लोगों के नींद सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इन आंकड़ों को एफडीए-स्वीकृत अंडर-मैट्रेस सेंसर की मदद से इकट्ठा किया गया, ताकि स्लीप एपनिया की गंभीरता का आकलन किया जा सके। इस दौरान हर व्यक्ति की नींद सम्बन्धी आंकड़ों को करीब 500 रातों तक रिकॉर्ड किया गया, जिसे बाद में जलवायु मॉडलों से मिले 24 घंटे के तापमान के डेटा से मिलाया गया। मतलब की इस दौरान 5.8 करोड़ रातों के आंकड़े एकत्र किए गए।
तापमान और ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया के बीच है गहरा सम्बन्ध
वैज्ञानिक यह जानकर हैरान थे कि तापमान और ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया की गंभीरता के बीच इतना गहरा संबंध है। रिसर्च की प्रमुख बात यह थी कि गर्मी बढ़ने पर नींद में सांस लेने की समस्या यानी ‘स्लीप एपनिया’ होने की आशंका 45 फीसदी तक बढ़ जाती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका की तुलना में यूरोप में यह समस्या अधिक देखा गई। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके वजह एयर कंडीशनिंग की सुविधा का फर्क हो सकता है।\ अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इस बीमारी की वजह से 2023 में 29 देशों में करीब 8 लाख स्वस्थ जीवन वर्षों का नुकसान हुआ, जो बायपोलर डिसऑर्डर, पार्किंसंस और किडनी रोग जैसी अन्य बीमारियों के बराबर है।
इसने आर्थिक रूप से भी गहरा असर डाला है। अध्ययन के मुताबिक सिर्फ 29 देशों में स्वास्थ्य और उत्पादकता के नुकसान की कुल कीमत करीब 98 अरब डॉलर आंकी गई। इसमें 68 अरब डॉलर जीवन गुणवत्ता में गिरावट और 30 अरब डॉलर का नुकसान कार्यक्षमता में कमी के कारण हुआ। वहीं ऑस्ट्रेलिया में अकेले नींद से जुड़ी बीमारियों की लागत सालाना करीब 66 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर आंकी गई है।
अपने शोध पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ शोधकर्ता प्रोफेसर डैनी एकर्ट ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि यह अध्ययन अमीर देशों पर केंद्रित था, जहां लोगों के पास बेहतर सुविधाएं और एयर कंडीशनिंग तक पहुंच हैं, ऐसे में इसका वास्तविक नुकसान अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है। उन्होंने चेताया है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए ठोस नीतिगत कदम न उठाए गए, तो सदी के अंत तक बढ़ते तापमान के कारण स्लीप एपनिया का बोझ दोगुना हो सकता है।
स्लीप एपनिया से पीड़ित हैं 10.4 करोड़ भारतीय
यह अध्ययन दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक बड़ा खतरा है, साथ ही स्लीप एपनिया की पहचान और प्रबंधन के लिए प्रभावी उपाय विकसित करना कितना जरूरी है। शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि यदि ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया के अधिक से अधिक मामलों की पहचान और इलाज हो सके तो जलवायु से जुड़ी स्वास्थ्य और उत्पादकता संबंधी समस्याओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन विभाग से जुड़े डॉक्टरों द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि भारत में स्लीप एपनिया की समस्या बेहद गंभीर है।अनुमान है कि 10.4 करोड़ भारतीय इस विकार से जूझ रहे हैं। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि भारतीय महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है। जहां 13 फीसदी भारतीय पुरुष इससे पीड़ित हैं। वहीं महिलाओं में यह आंकड़ा पांच फीसदी दर्ज किया गया
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )