प्रिय गौतम

आपके मुंह की बीमार‍ियां आपके हार्ट, किडनी और ब्रेन को नुकसान पहुंचा सकती हैं. इंडियन एसोसि‍एशन फॉर डेंटल रिसर्च के एक्‍सपर्ट्स ने बताया क‍ि ओरल ड‍िजीज जैसे दांत में कै‍व‍िटी, पायर‍िया, मसूड़ों में पनप रही बीमार‍ी खून के माध्‍यम से द‍िल और द‍िमाग तक पहुंच जाती है.

आप कभी किसी से हाल-चाल पूछिए तो लोग आपको अपने अंदर की सैकड़ों बीमारियां गिना देंगे, फिर चाहे वह पेट की हो, हार्ट, किडनी, लिवर या स्किन की लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि उन्होंने आपको बताया हो कि उनके दांत में कीड़ा लगा है, कैविटी है, पायरिया हो गया है, दांतों में पानी चुभता है, मसूड़ों में दर्द रहता है, या मुंह से बदबू आती है? नहीं न? क्योंकि भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में दांतों या मुंह की बीमारियों को गंभीर समझा ही नहीं जाता है. दांत के दर्द को छोड़ दें तो बहुत कम लोग होते हैं तो मुंह में थोड़ी सी भी परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर के पास इलाज के लिए आते हों. और यह बात हम नहीं बल्कि सबसे बड़ी दंत शोध संस्था इंडियन एसोसि‍एशन फॉर डेंटल रिसर्च कह रही है.

आईएडीआर की एशिया पैसिफिक रीजनल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने वॉशिंगटन डीसी से दिल्ली आए डॉ. क्रिस्टोफर फॉक्स ने बताया कि दुनिया में 3.7 अरब से ज्यादा लोगों के मुंह में कोई न कोई बीमारी मौजूद है. इतनी बड़ी संख्या में लोगों की ओरल हेल्थ खराब कर रहीं ये बीमारियां न केवल दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी हैं बल्कि दुर्भाग्य की बात ये है कि इन्हें अन्य बीमारियों की तुलना में कम गंभीर समझा जाता है और इनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया जाता. मुंह में होने वाली बीमारियों में आमतौर पर कैविटी या मसूड़ों की बीमारियां आती हैं लेकिन अगर खतरे की बात करें तो ये हार्ट अटैक से लेकर किडनी को फेल करने तक का माद्दा रखती हैं.
वहीं गुरु गोविंद सिंह आई पी यूनिवसिर्टी के कुलपति और आईएडीआर के चेयरमैन प्रो. महेश वर्मा ने बताया कि ओरल बीमारियां भले ही जानलेवा न हों, लेकिन वे जानलेवा बीमारियां पैदा करने की शक्ति रखती हैं, साथ ही क्वालिटी और लाइफ को बुरी तरह प्रभावित करती हैं. मुंह की बीमारियों का नतीजा इतना खतरनाक होता है कि आपका दिल, दिमाग और किडनी से लेकर पूरा शारीरिक और मानसिक ढांचा तक इसकी चपेट में आ जाता है. वे कहते हैं कि भारत की सबसे बड़ी समस्या है कि यहां करोड़ों लोग दंत चिकित्सा तक या तो पहुंच नहीं पाते या इसे गंभीरता से न लेने के चलते जाने से बचते हैं. जबकि करीब 85 फीसदी ओरल बीमारियों के प्रति जागरुक हो जाएं तो इन्हें पहले ही रोका जा सकता है.

मुंह से आने वाली दुर्गंध भी खतरनाक
जाने-माने डेंटल, न्यूरो और ऑन्को सर्जन डॉ एसएम बालाजी ने बताया कि ओरल हेल्थ को नॉन कम्युनिकेबल डिजीज के राष्ट्रीय एजेंडा का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. दांतों में परेशानी होने पर शुरुआती स्तर पर जांच से कई गंभीर बीमारियों की पहचान संभव है.उदाहरण के लिए, मुंह से आने वाली दुर्गंध कई बार ओरल कैंसर का संकेत हो सकती है, जिसकी शुरुआत में ही पहचान कर जिंदगी को बचाया जा सकता है.

एंटीबायोटिक दवाएं बना रहीं बग
एम्स में पीडियाट्रिक डेंटल सर्जन डॉ विजय माथुर ने बताया कि डेंटल केयर के दौरान एक बड़ी समस्या देखने को मिल रही है. भारत में दांतों के कुल एंटीबायोटिक प्रिस्क्रिप्शन का लगभग 10% हिस्सा देते हैं, जिसकी वास्तव में जरूरत ही नहीं होती. इसका नतीजा ये होता है कि बैक्टीरिया इन दवाओं के प्रति रेजिस्टेंट हो रहा है. अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस वैश्विक स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन जाएगी.
बीडीएस की पढ़ाई से शुरू होने चाहिए शोध

जामिया मिल्लिया डेंटल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. सरनजीत सिंह भसीन ने कहा, ‘आईडीआर के इस तीन दिवसीय सम्मेलन में देश के अलावा विदेश से 600 से अधिक प्रतिनिधि आए हैं. ये सभी ओरल और क्रैनियोफेशियल साइंसेज में किए जा रहे शोधों को साझा करेंगे. अगर हम ओरल हेल्थ का भविष्य बदलना चाहते हैं, तो हमें आज युवा दिमागों को आकार देना होगा. शोध को ग्रैजुएट लेवेल, यानी BDS स्तर पर ही पढ़ाई का हिस्सा बनाना चाहिए.’
बता दें कि इस सम्मेलन में विशेषज्ञों ने नीति-निर्माताओं से अपील की है कि ओरल हेल्थ को राष्ट्रीय मिशनों में प्राथमिकता दी जाए.आयुष्मान भारत के अंतर्गत दंत चिकित्सा को आउट-पेशेंट सेवाओं में शामिल किया जाए और ग्रामीण-शहरी असमानताओं को दूर करने के लिए सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में दंत चिकित्सकों की संख्या बढ़ाई जाए.
       (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )
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