पर्यावरण और कोविड-19 महामारी के बीच संबंध पर हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि महामारी के कारण लगे लॉकडॉउन का निर्वनीकरण या वनों की कटाई पर कोई असर नहीं हुआ है. यह उसी दर से चलती रहीं जैसे कि पिछले 15 साल से चल रही थीं. अध्ययन में इसी के कारणों की विवेचना हुई है.
कोविड-19 महामारी के समय दुनिया में लॉकडाउन ने पूरे संसार के आर्थिक गतिविधियों को रोक दिया था. और इसकी वजह से कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आ गई थी. लेकिन नए अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 का निर्वनीकरण यानि वनों की कटाई पर कोई असर नही हुआ है और यह कार्य उसी तरह से होता रहा, जैसा कि पिछले 15 सालों से होता आ रहा था. इसके लिए शोधकर्ताओं ने कई देशों के 15 सालों के आंकड़ों का उपयोग किया है.
अलायंस ऑफ बायोडायवर्सटी इंटरनेशनल और CIAT की अगुआई में हुए अध्ययन में विशेषज्ञों ने 2004 से लेकर 2019 तक के टेरा-आई- पैन ट्रॉपिकल भूमि क्षेत्र बदलाव निगरानी तंत्र के निर्वनीकरण आंकड़ों का उपयोग किया और एशिया अमेरिका और अफ्रीका के क्षेत्रीय स्तर के साथ और ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, इंडोनेशिया, और डॉमिनीक रिपब्लिक ऑफ कांगो में देशीय स्तर के साथ पेड़ों के क्षेत्र की हानि का विश्लेषण किया.
इस पड़ताल से खुलासा हुआ कि महामारी के दौरान निर्वनीकरण में थोड़ा बदलाव हुआ था. क्योंकि महामारी के पहले की जटिल गतिकी ने इस प्रक्रिया को जारी रखा, इस वजह से साल 2020 में लगे लॉकडाउन के बावजूद भी इस प्रक्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा शोधकर्ताओं का कहना है कि जहां सरकारों का बहुत कम दखल है वहां महामारी के कारण लॉकडाउन के बावजूद गैरकानूनी निर्वनीकरण जारी रही.
इसके अलावा महामारी के दौरान जंगलों पर भी आर्थिक दबावों के जरिए संतुलन स्थापित हो सकता था जिसमें मांग और आपूर्ति से संबंधित वैश्विक स्तर पर वृहद आर्थिक ताकतों और राष्ट्रीय स्तर पर जारी हुए आर्थिक पैकेज योगदान दे सकते थे. लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि निर्वनीकरण के इन नतीजों ने उन्हें हैरान नहीं किया है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि निर्वनीकरण दरअसल प्रमुख रूप से चरने वाले मवेशियों की संख्या, मवेशियों के उत्पादन संबंधित मांग जो लॉकडाउन के दौरान भी कायम रही, इनसे प्रभावित होता है. लॉकडाउन के दौरान लोगों के खाने खाने के तरीको में बदलाव देखने को मिला, लेकिन समान्यतः यह संसाधित भोजन और औद्योगीकृत कृषि पर विश्वसनीयता के कारण हुआ था.