अमृत चंद्र
वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है, जो आर्द्र हवा से बिजली बनाएगी. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ये तकनीक स्वच्छ और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में क्रांति ला सकती है. बता दें कि इस तरह से बिजली पैदा करने का कॉन्सेप्ट पहली बार भौतिक विज्ञानी निकाला टेस्ला ने दिया था.
वैज्ञानिकों ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी कामयाबी हासिल की है. उनकी नई खोज ने हमें हवा से बिजली पैदा करने के एकदम करीब पहुंचा दिया है. दरअसल, मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक ‘हाइग्रोइलेक्ट्रिसिटी’ विकसित कर ली है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, ये तकनीक नम हवा के अलावा किसी भी दूसरी चीज से बिजली पैदा नहीं कर सकती है. दूसरे शब्दों में कहें तो वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को सिर्फ आर्द्र हवा से बिजली बनाने के लिए ही विकसति किया है.
आर्द्र हवा से बिजली बनाने का कॉन्सेप्ट सबसे पहले प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी निकोला टेस्ला ने दिया था. तब से दुनियाभर के वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं. अब इस तकनीक ने वैज्ञानिकों को इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है. अब ऐसा लग रहा है कि जल्द ही हवा से बिजली हासिल करने का सपना सच हो सकता है. हाइग्रोइलेक्ट्रिसिटी की क्षमता की खोज की यात्रा तब शुरू हुई, जब मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी में एक आर्द्रता सेंसर ने आश्चर्यजनक तरीके से बिजली के स्रोत में प्लग किए बिना विद्युत सिग्नल पैदा करना शुरू कर दिया.
उपकरणों को लगातार मिलेगी बिजली!
बिना प्लग किए विद्युत सिग्नल मिलने की घटना से उत्सुक होकर वैज्ञानिक जून याओ के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने हवा की नमी से बिजली पैदा करने की संभावनाओं की गहराई से जांच करने का फैसला किया. हाइग्रोइलेक्ट्रिसिटी की खोज स्वच्छ और नवीकरण ऊर्जा स्रोतों की खोज में अहम कदम है. हवा की नमी से मिलने वाली ऊर्जा के विशाल भंडार का दोहन करके वैज्ञानिकों ने शायद ऐसा समाधान ढूंढ लिया है, जो हमारे उपकरणों को लगातार बिजली दे सकता है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जैसे-जैसे शोध आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे पतली हवा से बिजली पैदा करने का सपना वास्तविकता बन सकता है, जो ज्यादा स्वच्छ और टिकाऊ भविष्य की राह खोलेगा.
कैसे काम करता है ये छोटा उपकरण
आर्द्र हवा से बिजली प्राप्त करने की कुंजी एक छोटे उपकरण से जुड़ी है. इस उपकरण में दो इलेक्ट्रोड और नैनोपोर्स से भरी सामग्री की एक पतली परत होती है. ये नैनोपोर्स 100 नैनोमीटर से कम व्यास के होते हैं. ये हवा से पानी के अणुओं को डिवाइस से गुजरने देते हैं. जैसे ही ये अणु ऊपरी कक्ष से निचले कक्ष की ओर बढ़ते हैं, वे नैनोपोर्स के किनारों के साथ संपर्क करते हैं. इससे कक्षों के बीच विद्युत आवेश असंतुलन पैदा होता है. यह प्रक्रिया प्रभावी ढंग से डिवाइस को एक छोटी बैटरी में बदल देती है, जिससे लगातार बिजली पैदा होती है.
बादल से कर रहे तकनीक की तुलना
शोधकर्ता इस उपकरण की तुलना छोटे पैमाने के मानव निर्मित बादल से कर रहे हैं. जिस तरह तूफान के दौरान बादल विद्युत आवेश पैदा करते हैं और बिजली चमकती है, उसी तरह यह उपकरण हवा की नमी को उपयोगी बिजली में बदल देता है. इसके बहुत ज्यादा संभावित इस्तेमाल हैं, जिनमें छोटे कंप्यूटर और सेंसर को शक्ति देने से लेकर दूरस्थ स्थानों के लिए स्थायी ऊर्जा स्रोत उपलब्ध करना शामिल है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक का सबसे अहम फायदा इसकी बहुमुखी प्रतिभा है.
हवा में लगातार बनी रहती है नमी
वैज्ञानिकों का कहना है कि सौर और पवन जैसे दूसरे अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उलट हवा में नमी लगातार उपलब्ध रहती है, जो इसे ऊर्जा का स्थायी भंडार बनाती है. इसके अलावा इस तकनीक को लकड़ी और सिलिकॉन समेत सामग्रियों की विस्तृत श्रृंखला पर लागू किया जा सकता है. हालांकि, ये तभी तक किया जा सकता है, जब तक कि उनमें जरूरी नैनोपोर्स हों. वैज्ञानिकों की यह सफलता स्केलेबिलिटी की क्षमता को बढ़ाती है.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )