विकास शर्मा

कसरत के जरिए क्या वजन कम करना क्या वाकई कारगर होता है. यह बहस पिछले कुछ समय से वैज्ञानिक जगत में चल रही है. देखा गया है कि वजन कम करने में कसरत की कारगरता का दावा करने वाले अध्ययनों के नतीजे उतनी सटीक और व्यापक नहीं है और वजन कम करने और उसके बाद उसके काम रखने की प्रक्रिया जटिल होती है पर क्या इससे कसरत के महत्व को कम किया जा सकता है?

 

कसरत करने के बहुत सारे फायदे गिनाए जाते हैं. इससे दिल मजबूत रहते है. डायबिटिज काबू में रहती हैं, मोटापा नहीं बढ़ता है, शरीर चुस्त बना रहता है वगैरह वगैरह, लेकिन इस सूची में सबसे बड़ी वजह जिसकी वजह से लोग कसरत करने लगते हैं वह है वजन करना. और यही वह सबसे बड़ा प्रेरणा देने वाला कारक है जो लोगों को कसरत के प्रति आकर्षित भी करता है. लेकिन हाल में कुछ समय से वैज्ञानिक समुदाय में बहस हो गई है कि क्या वजन करने में कसरत वास्वत में कारगर है या इसके कुछ दुष्परिणाम ही देखने को मिलते हैं. आखिर किस पक्ष की दलील मे कितना दम है और क्यों?

 

कसरत की कारगरता का सवाल?
जहां तक विशेषज्ञों की बात है वे हमेशा ही वजन कम करने के लिए कसरत के साथ खुराक पर ही ध्यान देने पर जोर देते हैं. लॉस एन्जिलिस के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के व्यवहारिक विज्ञानिक और मनोचिकित्सा के सहयाक प्राध्यापक डोनाल्ड एम लैम्पकिन ने अपने एक लेख में इस बहस पर प्रकाश डाला है कि क्या वाकई कसरत करने से वजन कम हो जाता है या कसरत करने से इसका उल्टा असर भी हो जाता है.

 

वजन कम होने में समस्या
वैज्ञानिक समुदाय की बहस में असल सवाल यह है कि क्या ज्यादा कसरत करना नुकसानदायक नहीं हो जाएगा. इसमें कुल ऊर्जा खपत की अवधारणा को भी चर्चा में  शामिल किया जाता है कि कसरत से एक सीमा तक ही शरीर के फैट को जलाया जा सकता है. इसलिए कसरत  से वजन कम नहीं हो सकता भले ही इसके और फायदे ही क्यों ना हों.

 

प्रतिभागियों वाले परीक्षण!
कई यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण यानी बेहतरीन तरीके से जमा किए परीक्षण (आरसीटी) अवलोकित शोधों में पाया गया है कि कसरत वजन कम करने में मददगार होते हैं. लेकिन इस तरह के अध्ययनों में कुछ चुनिंदा प्रतिभागियों पर प्रयोग कर उनके नतीजों को रेखांकित किया जाता है. इन नतीजों को व्यापक तौर पर लागू करने लायक नहीं माना जा सकता है और इन पर व्यापक और व्यवस्थित अध्ययन की जरूरत पर भी बल दिया जाता है.

 

ऐसा होता तो
देखा यह गया है कि कसरत से वजन कुछ ही कम होता है और वह भी कुछ समय के लिए ही कम होता है. लेकिन बहस यहीं पर खत्म नहीं होती है. यदि कसरत से अतिरिक्त कैलोरी जल जाती तो फिर कसरत से साथ कम कैलोरी वाली खुराक के जरिए ही वजन का वापस बढ़ना रोका जा सकता है, लेकिन यही एक बड़ी चुनौती बन जाता है. देखा तो ये गया है कि वजन कायम रखने और वजन कम करने में बहुत ही ज्यादा अंतर होता है. यानि सभी नतीजे दोनों पर लागू नहीं होते दिखते हैं.

 

वजन का वापस बढ़ना और कसरत?
शोधकर्ताओं ने पाया है कि डायटिंग के साथ छह से 12 महीने की एरोबिक कसरत , प्रतिरोधक प्रशिक्षण, या दोनों वयस्कों को वजन वापस हासिल करने से नहीं रोक पाते हैं. इसके अलावा हर अध्ययन में प्रतिभागियों की कसरत करने की प्रक्रिया पर निगरानी नहीं रखी गई ना ही उनकी कसरत की प्रक्रियाओं को हर अध्ययन निश्चित तौर पर निर्धारित किया गया था. लेकिन कसरत को ऊर्जा संतुलन से जोड़ना भी जरूरत के साथ एक चुनौती भी रहा है क्योंकि ऊर्जा मापन एक आसान नहीं है.

 

कैलोरी कम करने की जटिलता
लेकिन कैलोरी कम करने या होने की कहानी में भी कम पेंच नहीं है. 2015 के अध्ययन में कसरत के जरिए कम की गईं दिन की कुल जलाई गई कैलोरी में और कसरत ना करने वालों की जलाई गई कुल कैलोरी में बहुत ज्यादा अंतर नहीं दिखा. इसकी एक वजह यह हो सकती है कि कसरत हमेशा ही कम वजन कायम रखने में मददगार नहीं होती और हमारा मेटाबॉलिज्म कसरत के बाद के समय में कम कैलोरी जला कर प्रतिक्रिया देता है. कुल ऊर्जा खपत की अवधारणा के इसी पहलू ने विवाद को पैदा किया था.

देखा गया है कि ज्यादा कसरत करने वालों की मेटाबॉलिज्म दर ही कम हो जाती है जिससे कसरत के बाद उनकी कैलोरी जलना कम हो जाती हैं. लैम्पकिन का कहना है कि इस बहस में शायद अभी तक दोनों ही पक्ष सही हैं. कम मात्रा मे वजन कम करने में कसरत मददगार हो सकती है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इससे खराब खुराक से बचने की जरूरत खत्म हो जाएगी. इसके अलावा वजन कम ना होने क इतर भी कसरत के बहुत से फायदे हैं जिन्हें कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

   (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार ) 

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