विकास शर्मा
प्रोफेसर सतीश धवन का जीवन आज के छात्रों के लिए एक प्रेरणा है. उन्होंने कई विषयों की पढ़ाई कर डिग्री हासिल करने के बाद एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महारत हासिल की. उन्होंने अपने गहन समर्पण से द्रव्य गतिकि के क्षेत्र में विशेष शोधकार्य किए और भारत के द्रव्य विज्ञान शोध के जनक के रूप में जाने गए. एक लोकप्रिय शिक्षक होने के साथ उन्होंने इसरो का कुशल नेतृत्व भी किया.
जब भी इसरों के प्रमुख वैज्ञानिकों को याद किया जाता है उनमें प्रोफेसर सतीश धवन का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है. वे केवल इसरो के प्रमुख ही नहीं बल्कि एक गणितज्ञ, एरोस्पेस इंजीनियर के साथ बड़े वैज्ञानिक थे जिन्हें भारत में द्रव्य गतिकी के शोधकार्यों का पिता कहा जाता है. इसके अलावा उनका भारत के स्वदेशी अंतरिक्ष कार्यक्रम में बड़ा योगदान दिया था. उनके सम्मान में श्रीहरिकोटा स्थित स्पेस सेंटर को उन्हीं का नाम दिया गया है, जो आज सतीश धवन स्पेस सेंटर कहलाता है. 25 सितंबर को उनकी जयंती एक ऐसा अवसर है जब उनके योगदान को याद किया जाए और उनकी छोड़ी गई विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया जाए.
घर में हुई शुरुआती शिक्षा
प्रोफेसर सतीश धवन का जन्म 25 सितंबर 1920 को श्रीनगर में हुआ था. वे पिता देवीलाल धवन और मां लक्ष्मी खोसला की दूसरे पुत्र थे. सतीश धवन के पिता देवीलाल आजादी से पहले पंजाब प्रांत में एक वकील थे जो बाद में लाहौर हाइकोर्ट में जज बन गए थे. पिता के व्यवसाय के कारण बचपन में सतीश धवन को परिवार के साथ बहुत शहरों में जाना पड़ा. उनकी पढ़ाई निजी शिक्षकों द्वारा घर पर ही कराई गई थी.
कई विषयों में डिग्री प्राप्त की
सतीश धवन बचपन से ही पढ़ाई में बढ़िया और विनम्र स्वभाव के थे. 1934 में उन्होंने मैट्रिक्युलेशन पास करने के बाद लुधियाना से विज्ञान में इंटर की परीक्षा पास की. लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से उन्होंने गणित और भौतिकी में बीए की परीक्षा पास की, फिर अंग्रेजी साहित्य में एमए भी किया. वे इससे ही संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने लाहौर के ही मैक्लैगन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया और प्रांत के पहले गोल्ड मेडलिस्ट बने.
एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता
बाद में वे एक साल के लिए बेंगलुरू में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के एरोनॉटिकल विभाग से भी जुड़े जहां उन्होंने युद्ध के विमानों की एसेंबली और मरम्मत का कार्य सीखा और एविएशन के क्षेत्र के विशेषज्ञ बन गए. 1945 में वे सरकारी वजीफे के जरिए आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए और मिनेपोलिस के मिनोसेटा विश्वविद्यालय से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री हासिल की.
शिक्षण में लोकप्रियता
1951 में भारत लौटने के बाद प्रो सतीश धवन बेंगलुरू के भारतीय विज्ञान संस्थान में सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर के रूप में काम किया. 1955 में वे एरोनॉटिकल विभाग के प्रमुख बन गए. उनका किसी भी विषय को समझाने का तरीका बहुत ही सरल था और इसी वजह से वे एक बेहतरीन शिक्षक के रूप में छात्रों के बीच लोकप्रियता अर्जित की.
खास तरह की हवाई सुरंग
शोध और शिक्षण के दौरान उनहोंने अपनी लैब के लिए खुद ही उपकरण तैयार किए. उन्हें भारत की पहली सुपरसॉनिक विंड टनल के विकास के लिए जाना जाता है. यह ऐसी ट्यूब होती है जिसमें हवा को मनचाही गति से भेजा जा सकता है और कंपन का वातावरण बनाया जा सकता है. इसके जरिए विमान आदि पर विभिन्न प्रवाहों के प्रभावों का परीक्षण किया जा सकता है.
भारत के द्रव्य विज्ञान शोध के जनक
विंड टनल या हवाई सुंरग का रॉकेट की वास्तविक उड़ान के परीक्षण के लिए भी उपयोग किया जाता है. प्रोफेसर धवन ने अपना शोध द्रव्य गतिकी पर केंद्रित किया और इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों की वजह से उन्हें भारत के द्रव्य विज्ञान शोध के जनक भी कहा जाता है. उन्होंने अपने शोधों में टर्बूलेंस और बाउंड्री लेयर में विशेष तौर पर पड़ताल की थी जिससे भारत को अपने स्वदेशी अंतरिक्ष कार्यक्रम कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिली थी.
1962 में प्रोफेसर धवन भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रमुख बने और इस पद पहुंचने वाले वे सबसे कम उम्र के वैज्ञानिक थे. उन्होंने करीब 20 साल तक इस संस्थान का निर्देशन किया. 1971 में, जब वे कुछ समय के लिए अमेरिका में थे, विक्रम साराभाई की असमय मृत्यु के बाद उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई और उन्होंने इसरो के पद के साथ भारतीय विज्ञान संस्थान को भी संभाला. उनके कार्यकाल में इसरो ने सबसे ज्यादा तरक्की की. रिटायर होने के बाद भी धवन ने विज्ञान और तकनीकी के विषयों के लिए कार्य करते रहे. 3 जनवरी 2002 को उनका निधन हो गया.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )