विकास शर्मा
सितंबर महीने के आखिर में पड़ने वाली पूर्णिमा कई लिहाज से विशेष है. यह पूर्णिमा सूपरमून है और इस जिस दिन पृथ्वी के दिन और रात बराबर होते है, उस दिन के पास भी पड़ रही है. सितंबर महीने में इस तरह से पूर्णिमा का होने उसे खास कॉर्न मून होने के साथ हार्वेस्ट मून भी कहा जाता है. दुनिया के कई देशों में हार्वेस्ट मून कहा जाता है. यानि इस साल का हार्वेस्ट मून कुछ खास ही है.
पूर्णिमा का चांद लोगों के लिए विशेष तरह का आकर्षण लेकर आता है. वैसे तो पृथ्वी के वायुमंडल और चंद्रमा की आकाशीय स्थिति उसके रंग में हल्के बदलाव लाकर उसे और आकर्षक बना देती है, लेकिन चंद्रमा की चमक, पूर्णिमा के साल में खास मौकों पर आना उसे खास नाम देते हैं. 28 सितंबर को भारत में भाद्रपद पूर्णिमा के तौर पर पहचाने जाने वाला फुल मून चंद्रमा की विशेष स्थिति के कारण अनोखी है. एक तो यह खगोलीय घटना सुपरमून होगी और इसके अलावा कई देशों में यह हार्वेस्ट मून के नाम से भी जानी जाती है. आइए जानते हैं कि यह हार्वेस्ट मून और सुपरमून क्या होते हैं, और सितंबर में यह खास क्यों है.
बन रहा है सुपरमून क्या होता है
गुरुवार को साल 2023 का आखिरी सुपरमून बन रहा है, यानि कि यह साल की सबसे चमकीली पूर्णीमा होगी. सुपरमून वह खगोलीय घटना है कि जो तब होती है जब पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाने वाली अपनी कक्षा में पृथ्वी के सबसे पास होती है. पास रहने से होता यह है कि चंद्रमा पृथ्वी पर लोगों को बड़ा दिखाई देता है और अन्य पूर्णिमाओं की तुलना में, आकाश में ज्यादा चमकीला भी दिखता है.
एक और खास बात
लेकिन इस बार सितंबर को पड़ने वाली पूर्णिमा तारीख के लिहाज से भी खास है यह ऑटम इक्यूनॉक्स या शरद विषुव के आसापास पड़ रही है, यानि उस दिन के पास पड़ रही है जब पृथ्वी पर दिन और रात का समय बराबर होता है. यह तरीख हर साल 23 सितंबर की होती और इस बार कीप पूर्णिमा 28 सितंबर को पड़ रही है.
क्या होता है हार्वेस्ट मून
23 सिंतबर के आसपास पड़ने के कारण इस बार गुरुवार को पड़ने वाली पूर्णिमा को की देशों में हार्वेस्ट मून भी कहा जाता है. लेकिन इसके साथ ही इस पूर्णिमा को कॉर्न मून भी कहा जा रहा है , क्योंकि यह गर्मी के मौसम के खत्म होने के बाद होने वाली फसलों के कटाई के समय आ रही है.
हमेशा सितंबर में नहीं
गौर करने वाली बात यह है कि शरद विषुव के दिन का पास होने के बाद बी हार्वेस्ट पूर्णिमा हमेशा ही सितंबर में नहीं आती है. कई बार इस पूर्णिमा की तारीख सितंबर से आगे खिसक कर अक्टूबर के पहले सप्ताह में चली जाती है. ऐसा हर तीन साल में एक बार देखने को मिलता है. यानि कि साफ है कि हर कॉर्न मून हार्वेस्ट मून नहीं होता है.
कृषि से गहरा नाता
हार्वेस्ट मून का कृषि संस्कृति से गहरा संबंध है. बताया जाता है कि पुराने समय में लोग चंद्रमा की तेज रोशनी में रात को खेतों में खड़ी फसल को काट पाते थे क्योंकि उन्हें अपनी खड़ी फसल को बारिश से पहले ही काट लेना होता था. वहीं हार्वेस्ट मून का समय उत्तरी गोलार्द्ध के कई देशों में शुरुआती पतझड़ में फसलों के पकने के समय से मेल खाता है. तब कार्य का बोझ बहुत ज्यादा होने से कटाई के मजदूरों को सूर्यास्त के बाद भी काम करना पड़ता था.
एक ही दिन नहीं मिलती ऐसी रोशनी
वहीं ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक हार्वेस्ट मून शब्द सबसे पहले 1706 में छपा था. इसके अलावा भी हार्वेस्ट मून की कई खूबियां होती हैं. दरअसल यह केवल पूर्णिमा से ही नहीं बंधा होता है. पूर्णिमा के आस पास की रातों का चंद्रमा जो चमकीली रोशनी बिखेरता है, उसे भी हार्वेस्ट मून कहते हैं. यह सूर्य के डूबने के समय ही आसमान आकर चमकने लगता है. लोगों को यह लगातार रोशनी देने का काम करता है.
इस तरह के चंद्रमा का फायदा ये होता है कि मजदूर खेतों में सूर्यास्त होने के बाद भी काम कर पाते हैं. एक और रोचक तथ्य यह है कि इसी दौरान ही दुनिया के कई देशों में त्योहारों का मौसम आ जाता है पूर्वी एशिया में मध्य शरद उत्सव चलते हैं जिन्हें चंद्रमा के उत्सव कहते हैं. हार्वेस्ट मून का कई तरह की किवदंतियों से संबंध बताया जाता है. इसके अलावा इसे रोमांस और रहस्यों से भी जोड़ कर देखा जाता है. हार्वेस्ट मून को समृद्धि, प्रचुरता और सर्दियों के लिए तैयार करने के संकेत के तौर पर भी देखा जाता है.