वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2021 के हवाले से कहा गया है कि 71 फीसदी भारतीय पौष्टिक आहार वहन नहीं कर सकते हैं जबकि वैश्विक औसत 42 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि एक औसत भारतीय के आहार में फलों, सब्जियों, फलियों, मेवा और साबुत अनाज की कमी होती है।
पौष्टिक आहार पर खर्च करने में 71 फीसदी भारतीय सक्षम नहीं है। इतना ही नहीं, हर साल 17 लाख लोग खराब आहार या भोजन के कारण होने वाली बीमारियों के चलते मर जाते हैं। यह खुलासा विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) और डाउन टू अर्थ मैगजीन ने अपनी रिपोर्ट में किया है।
रिपोर्ट ‘भारत के पर्यावरण की स्थिति 2022 : आंकड़ों में’ में कहा गया है कि आहार संबंधी जोखिम कारकों की वजह से होने वाली बीमारियों में श्वसन संबंधी बीमारियां, मधुमेह, कैंसर, स्ट्रोक और दिल की बीमारी शामिल हैं। रिपोर्ट में फलों, सब्जियों, साबुत अनाज के कम सेवन और प्रसंस्कृत मांस, लाल मांस और शर्करा वाले पेय के अधिक सेवन का जिक्र किया गया है। वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2021 के हवाले से कहा गया है कि 71 फीसदी भारतीय पौष्टिक आहार वहन नहीं कर सकते हैं जबकि वैश्विक औसत 42 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि एक औसत भारतीय के आहार में फलों, सब्जियों, फलियों, मेवा और साबुत अनाज की कमी होती है। हालांकि मछली, डेयरी और लाल मांस की खपत लक्ष्य के अंदर है।
आवश्यकता और उपभोग में बड़ा अंतर
खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक, एक पौष्टिक आहार को वहन योग्य नहीं माना जाता है जब इसकी कीमत एक व्यक्ति की आय के 63 फीसदी से अधिक हो। भारत में 20 वर्ष और इससे अधिक उम्र का वयस्क प्रतिदिन मात्र 35.8 ग्राम फल खाता है जबकि रोजाना 200 ग्राम फल खाने की सिफारिश की गई है।
इसी तरह से वयस्क व्यक्ति को रोजाना न्यूनतम 300 ग्राम सब्जियां खानी चाहिए लेकिन वह मात्र 168.7 ग्राम ही खाता है। इसी तरह से वह प्रतिदिन 24.9 ग्राम फलियां और 3.2 ग्राम मेवा खाता है जोकि सिफारिश किए गए इन आहारों का क्रमश: 25 और 13 प्रतिशत ही है।
चुकानी होगी भारी कीमत
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वस्थ आहार के मामले में थोड़ी प्रगति हुई है, लेकिन आहार पौष्टिक नहीं हो पा रहा है। साथ ही में देश में कुपोषण का भी अस्वीकार्य स्तर बना हुआ है। पौष्टिक आहार नहीं मिल पाने की स्थिति में यदि हम कार्य करने में विफल रहते हैं तो हमें इसकी अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
सीएफपीआई में 327 फीसदी की बढ़ोतरी
वैश्विक खाद्य प्रणाली स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए वैश्विक लक्ष्यों को हासिल करने से बहुत कम है। रिपोर्ट में खाद्य कीमतों का विश्लेषण भी किया गया है। इसमें कहा गया है कि उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) मुद्रास्फीति में पिछले एक साल में 327 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में 84 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। इसमें सीएफपीआई भी शामिल है। खाद्य सीपीआई मुद्रास्फीति का सबसे बड़ा कारक होता है। खाद्य मुद्रास्फीति का मौजूदा उच्च स्तर उत्पादन की बढ़ती लागत, अंतरराष्ट्रीय फसलों की कीमतों में वृद्धि और अत्यधिक मौसम संबंधी कारकों से प्रेरित है।
ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य कीमतों में ज्यादा बढ़ोतरी
सीएसई की शोध पत्रिका डाउन टू अर्थ के प्रबंध निदेशक रिचर्ड महापात्रा ने कहा कि हकीकत में क्रिसिल डाटा के विश्लेषण से पता चला है कि मार्च-अप्रैल 2022 में शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में खाद्य कीमतों में अधिक उच्च दर से वृद्धि हुई है।
दूध उत्पादन का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बड़ी हिस्सेदारी
खाद्य प्रणाली और प्रथाएं पर्यावरण पर प्रभाव डालती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दूध उत्पादन का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और भूमि इस्तेमाल में बड़ी हिस्सेदारी है।