जब भी 10वीं या 12वीं की बोर्ड की परीक्षा का वार्षिक परिणाम आता है प्राय एक वाक्य सुर्खियों में रहता है, इस बार भी लड़कियों ने बाजी मारी ।विज्ञान संकाय में भी अधिकतर यही स्थिति रहती है। लेकिन जैसे-जैसे ये लड़कियां ऊंची कक्षाओं में जाती हैं स्थिति बदलती जाती है। सँख्या की दृष्टि से लड़कियां कम होती जाती हैं। स्नातक कक्षाओं में विज्ञान संकाय में लड़के और लड़कियों के बीच अनुपात का अंतर बढ़ जाता है ।यह लगभग 53:47 रह जाता है। लड़कियां कुछ पिछड़ जाती है ।यह संख्या की दृष्टि से है गुणवत्ता की दृष्टि से नहीं। स्नातकोत्तर कक्षाओं में यह अंतर और बढ़ जाता है (57:43)। शोध तक आते-आते लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में लगभग एक तिहाई रह जाती है (28:72)। विज्ञान की दुनिया में विश्व में महिला वैज्ञानिकों की संख्या लगभग 28% है जबकि भारत में यह प्रतिशत 14%तक ही है ।ऐसा क्यों है ?
भारतीय विज्ञान संस्थान सन 1911 में स्थापित हुआ था ।यह एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थान है। उसी समय से यहां लड़कों के लिए हॉस्टल की व्यवस्था है। महिला हॉस्टल की व्यवस्था होने तक लगभग तीन दशक (1942 में ) का समय लग गया। भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु का एक रोचक किस्सा इस प्रकार बताते हैं। यह सन 1933 की बात है। इस संस्थान में विज्ञान संकाय में एक अप्रत्याशित घटना घटित हुई।उन दिनों संस्थान के निदेशक नोबेल वैज्ञानिक सर सी वी रमन थे। एक युवा लड़की( विद्यार्थी) ने इस संस्थान को झकझोर दिया। इस विद्यार्थी का नाम था कमला भागवत । इनका जन्म 1911 में हुआ था। ये एक संभ्रांत परिवार से थी ।इनके माता-पिता दोनों विज्ञान की ऊंची पढ़ाई लिए हुए थे । ये अपनी लड़की को भी एक वैज्ञानिक बनाना चाहते थे। इन्होंने पहले अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की ।बाद में ये विज्ञान की पढ़ाई के लिए मुंबई आ गई ।यहां से इन्होंने मेरिट में अपनी डिग्री प्राप्त की ।इनका सपना एक अच्छे संस्थान से वैज्ञानिक बनना था।
आगे पढ़ने के लिए इन्होंने एक शोधार्थी के रूप में बेंगलुरु संस्थान में आवेदन किया। सर सी वी रमन ने इनके आवेदन को खारिज कर दिया व इनको अपने संस्थान में दाखिला देने से इनकार कर दिया । यद्यपि ये मेरिट में आई थी । कमला भागवत ने इसका कारण जानना चाहा। सर सी वी रमन का कहना था कि वे किसी भी महिला को अपने संस्थान में वैज्ञानिक बनने के लिए दाखिला नहीं देते हैं । कमला भागवत में विरोध दर्ज करवाते हुए कहा कि यह तो कोई कारण नहीं हुआ। इन्होंने संस्थान के अंदर ही गांधीवादी तरीके से सत्याग्रह शुरू कर दिया और वापस हटने से बिल्कुल मना कर दिया ।अब स्थिति बड़ी विचित्र हो गई थी। इनकी ज़िद के सामने सर सी वी रमन को पीछे हटना पड़ा। अंत में सर सी वी रमन ने दाखिला देना स्वीकार कर लिया। लेकिन इनके सामने बहुत ही सख्त शर्ते रखी ।पहली शर्त तो यही थी कि जब तक वे स्वयं उनके काम (गुणवत्ता की दृष्टि से) से संतुष्ट नहीं होंगे उनके काम को स्वीकृत नहीं समझा जाएगा। दूसरी शर्त बहुत ही अजीब थी। वह थी कि दिन के समय प्रयोगशाला लड़कों के लिए ही उपलब्ध होंगी ,इसलिए इन्हें रात्रि को ही प्रयोगशाला में काम करने की अनुमति होगी ताकि लड़कों का काम प्रभावित न हो। 22 वर्षीय युवा कमला ने यह सब स्वीकार किया और कोई शिकायत भी नहीं की। और न ही इसे अपनी शान के खिलाफ समझा। यहां इन्हें गाइड के रूप में माननीय एम श्रीनिवासैया मिले। ये अपने समय के जाने-माने माइक्रोबायोलॉजिस्ट थे। इनके साथ काम करते हुए कमला ने दूध व दालों में प्रोटीन की उपस्थिति पर अपना शोध किया। सन 1936 में इनका यह शोध कार्य पूरा हुआ और शानदार उपलब्धियों के साथ इन्होंने अपनी एमएससी की डिग्री प्राप्त की।
यह कमला भागवत की उपलब्धियों के बाद ही संभव हुआ कि सर सी वी रमन ने सन 1937 के बाद से इस संस्थान के द्वार लड़कियों की पढ़ाई के लिए हमेशा -हमेशा के लिए खोल दिए। इसके बाद कमला ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की ।कैंब्रिज में इन्होंने डॉक्टर डीरेक रिकटर और डॉक्टर रोबिन जैसे महान वैज्ञानिकों के साथ काम किया। इन्होंने यहां नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक डॉक्टर फ्राड्रिक हॉपकिंस के साथ फेलोशिप लेते हुए अपना कार्य किया। यहां इन्होंने पौधों में पाए जाने वाले एंजाइम साइटोक्रोम सी पर मौलिक कार्य किया। सन 1939 में ये अपना शोध कार्य करने के उपरांत भारत वापस आयी। यहां इन्होंने माधव सोहिनी से शादी की और अब ये कमला सोहिनी बन गई ।सन 1947 में ये मुंबई आ गई और प्रतिष्ठित संस्थानों में जिम्मेवारी के पदों पर कार्य किया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इनके कार्य से बहुत प्रभावित हुए। कमला सोहिनी एक उच्च कोटि की विज्ञान लेखिका भी रही। इन्हें अनेक राष्ट्रीय स्तर के ऊंचे पुरस्कारों से नवाजा गया। सन 1998 में 86 वर्ष की आयु में ये इस दुनिया को विदा कह गई ।
हम जानते हैं कि सन 1973 में 13 जून को भारतीय महिला विज्ञान एसोसिएशन रजिस्टर्ड हुई। इसके मुख्य उद्देश्यों में वैज्ञानिक मानसिकता के प्रचार प्रसार के साथ दो उद्देश्य इस प्रकार थे ।देश में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए सामने आने वाली समस्याओं का अध्ययन करना व इनके समाधान की ओर बढ़ना। विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व कैसे सुनिश्चित हो। यद्यपि इस एसोसिएशन ने काफी कार्य किया है फिर भी अभी तक कोई उल्लेखनीय कार्य इस दिशा में नहीं हुआ है। इसी एसोसिएशन के समक्ष कमला सोहिनी ने अपनी यह दर्दभरी दास्तान सुनाई थी। इन्होंने मुखर होकर कहा था– यद्यपि सर सी वी रमन एक महान वैज्ञानिक थे लेकिन वे लैंगिक संवेदनशीलता के मामलों में बहुत तंग दिमाग थे। मैं कभी नहीं भूल सकती कि एक महिला होते हुए उन्होंने मुझसे ऐसा व्यवहार किया। यह मेरा बड़ा अपमान था ।उस समय महिलाओं के प्रति यह कितना बुरा पूर्वाग्रह किया गया। किसी से क्या उम्मीद की जाए जबकि एक नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिक इस प्रकार व्यवहार करता हो।
एसोसिएशन के समक्ष अनेक महिला वैज्ञानिकों ने अपनीअपनी बहुत ही हैरतअंगेज आप बीती बातें बताई हैं। एक वैज्ञानिक श्रीमती डी के पदमा बताती हैं कि मेरे गाइड श्री MRA Rao ने मुझसे कहा कि वे पहले मेरे पति से मिलेंगे। उन्होंने मेरे पति के सामने यह शर्त रखी कि वे मुझे तभी यह शोध करने की अनुमति देंगे जब वे उन्हें आश्वस्त कर दे कि वे 5 वर्ष तक कोई संतान पैदा नहीं करेंगे ।एक अन्य महिला वैज्ञानिक के सामने तो एक उच्च अधिकारी ने तो यहां तक कह दिया कि आपने एक व्यक्ति( पुरुष ) का कैरियर कम कर दिया है।एक महिला वैज्ञानिक के सामने वैसे ही अनेक विभागीय समस्याएं व अन्य व्यावहारिक समस्याएं रहती हैं ।इनके साथ साथ यह लैंगिक भेदभाव एक बहुत बड़ी रुकावट है ।वैज्ञानिक मानसिकता के दायरे में यह पुरुषवादी वर्चस्व की मानसिकता सबसे बड़ी अड़चन है ।इस मामले में अभी हम बहुत पिछड़े हुए हैं।
वेदप्रिय
( लेखक हरियाणा के प्रमुख विज्ञान लेखक, विज्ञान संचारक एवं देश के जन विज्ञान आंदोलन की महत्वपूर्ण शख्सियत हैं )