देश में यौन हिंसा का दंश झेलने वाली 82% शादीशुदा महिलाओं का गुनहगार कोई और नहीं, बल्कि उनके पति ही हैं। ये पत्नी की सहमति के बिना उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की ताजा रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है।
देश में 6% विवाहित महिलाओं ने जीवन में कभी न कभी यौन हिंसा झेली है। रिपोर्ट के मुताबिक उम्र बढ़ने के साथ-साथ यौन हिंसा के मामले बढ़ते जाते हैं। मसलन, 18-19 साल की 4%, 20-24 साल की 5%, 25-29 साल की 6% और 30 से ज्यादा उम्र की 7% शादीशुदा महिलाएं यौन हिंसा का शिकार होती हैं। यौन हिंसा पीड़ित 25% महिलाओं के शरीर पर किसी न किसी तरह के जख्म के निशान हैं। 6% विवाहिताएं तो गहरे घाव, हडि्डयां और दांत तोड़ने जैसी ज्यादतियां भी बर्दाश्त कर चुकी हैं। 3% को तो जलाया तक गया है।
जिन महिलाओं के लड़के-लड़की दोनों हैं, वे सबसे ज्यादा पीड़ित
NFHS-5 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक यौन हिंसा झेलने वाली महिलाओं में 32.4% ऐसी हैं, जिनके सिर्फ बेटे हैं। 31.2% की सिर्फ बेटियां हैं, 37.7% के बेटा-बेटी दोनों हैं और 18.6% ऐसी हैं, जिनकी कोई संतान नहीं है। यानी जिन महिलाओं के लड़के-लड़की दोनों हैं, वे सबसे ज्यादा शारीरिक और यौन हिंसा झेल रही हैं, जबकि जिनके बच्चे नहीं हैं, वे सबसे कम। यौन हिंसा पीड़ितों में 9% ऐसी हैं, जो कभी स्कूल नहीं गईं। जबकि 12वीं या उससे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिलाएं 4% ही हैं। यानी पढ़े-लिखे होने से भी इस पर असर पड़ता है।
नहीं बदल रही पुरुषों की मानसिकता
सर्वे में 19% पुरुषों ने माना कि अगर पत्नी यौन संबंध से इनकार करती है तो पति को गुस्सा करने व महिला को फटकारने या पीटने का अधिकार है। इनमें भी 6% पुरुष मानते हैं कि उन्हें पत्नी को डांटने, उसे पैसे नहीं देने व जबरन शारीरिक संबंध का अधिकार है।
यौन हिंसा के पीछे शराब एक बड़ा कारण
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर, परिवेश, शराब, उम्र आदि का हवाला दिया गया है. शराब की बात करें, तो यह महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा का एक बड़ा कारण है. जहां पति शराब पीते हैं, वहां 70 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, जबकि जिन घरों में शराब का प्रचलन नहीं है, वहां केवल 23 फीसदी महिलाएं इसका शिकार हुई हैं.
हिंसा के बाद भी महिलाएं नहीं लेती मदद
घरेलू और यौन हिंसा की शिकार होने वाली महिलाएं मदद लेने में पीछे रही हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—3 से लेकर अब तक बहुत बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. 2005-06, में ये दर 24 फीसदी थी, 2015-2017 में ये घटकर 14 फीसदी रह गई, जबकि 2019-21 में भी आंकड़ा 14 फीसदी ही रहा.
महिलाओं की संरक्षण के लिए कानून
घर के अंदर महिलाओं को यौन शोषण से बचाने के लिए 2005 में घरेलू हिंसा कानून लगा गया था. ये कानून महिलाओं को घर में यौन शोषण से संरक्षण देता है. इसके अलावा हिंदू मैरिज एक्ट भी है, जिसमें पति और पत्नी की जिम्मेदारियां तय है. इसमें प्रावधान है कि सेक्स के लिए इंकार करना क्रूरता है और इस आधार पर तलाक लिया जा सकता है.
झारखंड की 31.5 फीसदी महिलाएं, 67.5 फीसदी बच्चियां एनीमिक
झारखंड में 31.5 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं. 67.5 फीसदी बेटियां एनीमिया (रक्ताल्पता) की शिकार हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NHFS-5) की ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.
कर्नाटक (48%) देश में सबसे ऊपर
महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले में कर्नाटक (48%) देश में सबसे ऊपर है. उसके बाद बिहार, तेलंगाना, मणिपुर और तमिलनाडु का नंबर है. देश में लक्षद्वीप ऐसा है, जहां महिलाओं से सबसे कम (2.1%) घरेलू हिंसा हुई. शारीरिक हिंसा के मामले में ग्रामीण और शहरी इलाकों का फर्क भी साफ नजर आता है. ग्रामीण क्षेत्रों में 32% महिलाओं ने हिंसा की बात बताई जबकि शहरी क्षेत्रों में 24% के साथ ही ऐसी घटनाएं हुईं.