संतोष शर्मा
यह आजादी का 75 वां वर्ष है। आजादी के करीब सात दशक बाद तथा विज्ञान-तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद समाज में अंधविश्वास चरम पर है। 21वीं सदी के वर्तमान दौर में भी, झारखंड समेत देश के कई राज्यों में मौजूद डायन-बिसाही प्रथा एवं डायन हत्या की घटनाएं चिंता पैदा करने वाली हैं। इसकी जड़ें एक ओर ओझा-गुणी, तांत्रिक आदि एवं इसकी आड़ में लाभ उठाने वाले तत्वों तक जाती है, वहीं समाज में मौजूद पुरुष वर्चस्व वाली मानसिकता एवं महिलाओं का संपत्ति में अधिकार का मामला भी इससे जुड़ा है। सत्ता – व्यवस्था के साथ ही समाज के ताकतवर, वर्चस्ववादी समूहों का समर्थन व संरक्षण भी वैसे तत्वों को भरपूर प्राप्त होता रहता है। इसके कारण समाज में अंधविश्वास, कुरीति, लूट एवं पाखंड फैलाने, उसे बढ़ावा देने वाले लोग अक्सर कानून के शिकंजे में फंसने से बच जाते हैं या पकड़ में आने के बाद भी आसानी से छूट जाते हैं। संविधान ने वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया था पर देश की आजादी के सात दशकों बाद भी परिणाम हम सबके सामने है। प्रस्तुत है इसी तथ्य को रेखांकित करता कोलकाता के पत्रकार एवं विज्ञान संचारक संतोष शर्मा का यह आलेख
भारत आज शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान आदि क्षेत्रों में क्रमशः तरक्की कर रहा है। विज्ञान व स्वास्थ्य क्षेत्र में आये दिन नए- नए खोज हो रहे हैं । लोगों में जहाँ विज्ञान के प्रति उत्साह बढ़ रहा है वहीं अनेक अंधविश्वास जनता के मन- मस्तिष्क से धीरे धीरे कम होता जा रहा है। यह तो सिर्फ देश के एक हिस्से की छवि है। दूसरे हिस्से की छवि में आज भी अनेक लोग झाड़-फूंक, तंत्रमंत्र, भूत-प्रेत, ओझा- तांत्रिक, अलौकिक घटना, काल्पनिक कहानियों आदि में विश्वास करते हैं और इन सब का फायदा उठाते हुए झाडफ़ूंक , तंत्रमंत्र, ओझा- तांत्रिकों, ज्योतिषियों का ठगी का धंधा फलफूल रहा है। आज भी ओझा, तांत्रिक, बाबा-माताजी झाड़ङ्गूंक व तंत्रमंत्र की मदद से किसी भी बीमारी या मानवीय समस्या का समाधान करने का दावा करत रहते हैं। जबकि तंत्रमंत, झाडफ़ूंक, चमत्कारी शक्ति से किसी भी बीमारी से छुटकारा दिलवाने का दावा करना कानूनन जुर्म है। लेकिन मौजूदा कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए सिर्ङ्ग औलोकिक शक्ति, तंत्रमंत्र या झाड़फूंक से किसी भी बीमारी का इलाज या समस्या का समाधान करने के नाम पर, लूट पाखंडी धंधा चल रहा है।
चमत्कारी चिकित्सा शिविर :
तथाकथित अलौकिक शक्तिधारी एक बाबा तो सिर्फ झाडफ़ूंक से अंधे को रौशनी, गूंगे को बोली और बहरे को श्रवण शक्ति प्रदान करने का दावा तक करता है। सिर्फ दावा ही नहीं बल्कि बाबा का चमत्कारी चिकित्सा शिविर का भी आयोजन किया जाता है। ऐसी ही एक घटना पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर के दासपुर थानातंर्गत जानापाड़ा की है, जहाँ बाबा पंचानन माइती अपनी अलौकिक शक्ति द्वारा अंधे, गूंगे और बहरे सहित किसी भी तरह के शारीरिक तथा मानसिक बीमारी छूटकारा दिला रहे थे। इस धंधे में बाबा को दो चेले अरूण गोस्वामी और सुकुमार सामंत मदद करते थे। इस चिकित्सा शिविर में इलाज करवाने के लिए आने वाले हर एक मरीज को 10 रूपये में एक कॉपी दी जाती थी जबकि इस कॉपी का दाम केवल एक रूपय था। उस कॉपी में कलम से कई श्लोक लिखीं रहती थीं। खुले मैदान में आयोजित चमत्कारी शिविर में इलाज के लिए आये अंधे, गूंगे, बहरे या अपंग जैसे विकलांगों और मरीजों को उस कॉपी में लिखी ईश्वर भक्ति का पाठ करवाया जाता था।
बाबा पंचानन किसी अंधे की आँखों पर हाथ फेरते हुए मंत्र पड़कर उस पर फूंक मारते थे। इसे साथ ही बाबा उस मरीज से कहते है, “ देखो तो तुम्हे कुछ दिखाई दे रह है या नहीं ।” यदि अंधे ने ना में जवाब दिया तो उस पर बाबा फिर पहले जैसा कारनामा दोहराते । इसके साथ ही बाबा यह तसल्ली देते – “मेरे पास और दो- चार बार आओ, तुम्हें हर चीज साफ दिखाई देगी। तु देख सकेगा।” अब एक गूंगे की बारी। किसी गूंगे से बुलबाने के लिए बाबा ने उस गूंगे की जीभ को हाथ से जबरन खींचकर बाहर की ओर निकाला एवं उस जीभ को अपने जीभ से स्पर्ष करा कर गूंगे के मुंह से कुछ बुदबुदाया। और फिर बाबा ने चीख कर गूंगे से कहा – “बोलो माँ, बोलो बाबा।” बाबा के इस कारनामे के बाद भी गूंगा पहले जैसा बेजबान बना इधर – उधर देखता रहा।
बहरे के इलाज में बाबा पंचानन ने किसी बहरे के कानों में मंत्र पढ़कर उसमें फूंक मारा। बाबा के शिविर में आये अन्य मरीजों का भी पंचानन इसी तरह से चमत्कारी इलाज कर रहे थे। चमत्कारी इलाज के बाद मरीजों से कहा गया कि “ बाबा के शिविर में आये लोग और मरीज दानपेटी में 5 से 100 रूपये का अवश्य दान करें।” कुल मिलाकर चमत्कारी इलाज और दान-पुण्य के नाम पर गरीब, लाचार लोगों और मरीजों से मनमर्जी रुपये की वसूली की जाती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की धज्जियाँ उड़ाते हुए सिर्फ तंत्रमंत्र, झाडफ़ूंक और चमत्कार द्वारा अंधे को रौशनी, गूंगे को बोली और बहरे को सुनने की शक्ति प्रदान करने के नाम पर विकलांग लोगों के साथ गंदा मजाक किया जा रहा है। रोग से छूटकारा दिलाने के नाम पर पंचानन बाबा का पाखंडी चिकित्सा शिविर चल रहा था, वहीं अश्चर्य की बात थी कि इस पाखंजी शिविर को बंद करने में आरंभ में पुलिस व प्रशासन ने चुप्पी साध रखी थी।
अंततः ‘भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति (साइंस एंड रेशनालिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) की ओर से पंचानन बाबा के इस चमत्कारी चिकित्सा शिविर के खिलाफ दासपुर थाने में लिखित शिकायत कर्ज करायी गयी। जिसके आधार पर पुलिस ने गुमखपोता के निवासी बाबा पंचानन माइती और उनके 2 चेले रामदेव के निवासी अरूण गोस्वामी एवं राजनगर के निवासी सुकुमार सामंत को पहले अपने हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की। पूछताछ में ठीकठाक जवाब नहीं मिलने पर पुलिस ने इन तीनों को गिरफ्तार कर लिया। बाबा पंचानन सहित तीनों अभियुक्तों को पुलिस ने घाटाल अदालत में पेश किया, जहाँ से उन्हें हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस सूत्रों के अनुसार पंचानन बाबा समेत उनके दोनों चेलों पर औषधि एवं चमत्कारी उपचार आक्षेपाई विज्ञापन अधिनियम, 1954 एवं धारा 417 के तहत मामला शुरू किया गया। अब प्रश्न है, क्या शिकायत मिलने के बाद ही पुलिस व प्रशासन पाखंडी धंधे को कानूनन बंद करने के लिए क दम उठाएगी ? यह घटना सिर्फ एक उदाहरण मात्र है लेकिन आज भी पाखंडी बाबा, ओझा, तांत्रिक, ज्योतिषी के चंगुल में फंसकर अनेक अंधविश्वासी लोग रुपये आदि गंवाने में लगे हुए हैं।
चमत्कार से इलाज करना कानूनन अपराध :
भारतीय कानून में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ताबीज, कबच, ग्रहरत्न, तंत्रमंत्र, झाड़फूंक, चमत्कार, दैवी औषधी आदि द्वारा किसी भी समस्या या बीमारी से छुटकारा दिलवाने का दावा तक करना जुर्म है। तंत्रमंत्र, चमत्कार के नाम पर आम जनता को लूटने वाले ज्योतिषी, आोझा, तांत्रिक जैसे पाखंडियों को कानून की मदद से जेल की हवा तक खिलाई जा सकती है। विडंबना यह है कि आज भी अनेक लोगों को कानून के बारे में सही सटीक जानकारी नहीं है लेकिन एक आम आदमी भी कानून की मदद से धोखेबाज ओझा, तांत्रिक, बाबाजी, ज्योतिषी को जेल की हवा खिला सकता है। यहाँ कुछ जरूरी कानूनों की जानकारियाँ पेश कर रहा हूँ।
औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 :
औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 (ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940) औषधियों तथा प्रसाधनों के निर्माण, बिक्री तथा समवितरण को विनियमित करता है। इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति या फर्म राज्य सरकार द्वारा जारी उपयुक्त लाइसेंस के बिना औषधियों का स्टाक, बिक्री या वितरण नहीं कर सकता। इस कानून के तहत किसी भी रोग से मुक्ति दिलवाने के दान पर दिये जाने वाले ताबीज, कबच, मंत्र युक्त जल आदि को औषध के रूप में स्वीकार्य होगा। बिना लाइसेंस के औषध के निर्माण बिक्री तथा समविरतण को जुर्म माना जाएगा। इसके अलावा, ताबीज, कबच इत्यादि द्वारा रोग मुक्ति नहीं होने पर या मरीज की मृत्यु होने पर भारतीय दंज संहिता की धारा एस-320 के तहत दोषी को सजा होगी। ध्यान दें- वर्ष 2008 में इस कानून में संशोधन किया गया। अब से इस कानून का उल्लंघन करने वाले को 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। साथ ही 10 लाख रुपये तक का जुर्माना भी होगा।
कहां दर्ज करें शिकायत ? :
केंद्र या राज्य सरकार के औषध नियंत्रण कार्यालय में औषध से संबंधित शिकायत दर्ज की जा सकती है। यदि किसी ज्योतिषी, तांत्रिक ने किसी समस्या से छुटकारा दिलवाने के नाम पर ताबीज, कबच, ग्रहरत्न आदि दिया हो तो उसे लेकर औषध नियंत्रण कार्यालय में उस ज्योतिष या तांत्रिक के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी जा सकती है।
औषधी एवं चमत्कारी ( आक्षेपाई विज्ञापन ) अधिनियम , 1954 :
औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 (ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आबजेक्शनबर एडवर्टाइजमेंट ) एक्ट, 1954)। आज भी जहां-तहां नीम-हकीमों, तांत्रिकों, रहस्यमय तरीकों से इलाज करने तथा जिन रोगों का कोई इलाज न भी हो उन्हें चमत्कारिक तरीके से ठीक कर देने वाले लोगों व इन पर विश्वास करने वालों की भारी तादाद है। अधिनियम के तहत तंत्र-मंत्र, गंडे, ताबीज आदि तरीकों के उपयोग, चमत्कारिक रूप से रोगों के उपचार या निदान आदि का दावा करने वाले विज्ञापन निषेधित हैं। इसके अनुसार ऐसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रमित करने वाले विज्ञापन दण्डनीय अपराध हैं जिनके प्रकाशन के लिये विज्ञापन प्रकाशित व प्रसारित करने वाले व्यक्ति के अतिरिक्त समाचार पत्र या पत्रिका आदि का प्रकाशक व मुद्रक भी दोषी माना जाता है।
इस अधिनियम के अनुसार पहली बार ऐसा अपराध किये जाने पर 6 माह के कारावास अथवा जुर्माने या दोनों प्रकार से दंडित किये जाने का प्रावधान है जबकि इसकी पुनरावृत्ति करने पर 1 वर्ष के कारावास अथवा जुर्माने या दोनों से दंडित किये जाने की व्यवस्था है। यहाँ यह तथ्य ध्यान देने योग्य है। ध्यान दें, वर्ष 1963 में इस कानून में संशोधन कर धारा (9ए) जोड़ी गयी। अब से इस कानून का उल्लंघन करना गैर-जमानती अपराध माना चाएगा।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 :
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये कोई भी सामान अथवा सेवाएँ खरीदता है वह उपभोक्ता यानी क्रेता है। जब आप किसी ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा से कोई ताबीज, कबज, ग्रहरत्न खरीदते हैं तो और इससे यदि आपको कोई लाभ नहीं मिलता है तो आप एक उपभोक्ता के रूप में विक्रेता ज्योतिषी, तांत्रिक या बाबा के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मामला दायर कर सकते हैं। इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुये जीवन तथा सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो आप शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 420 :
भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत किसी भी व्यक्ति को कपट पूर्वक या बेईमानी से उत्प्रेरित कर आर्थिक, शारीरिक, मानसिक, संपत्ति या ख्याति संबंधी क्षति पहुंचाना शामिल है। यह एक दंडनीय अपराध है। इसके तहत 7 साल तक के कारावास की सजा का प्रावधान है। धर्म, आस्था, ईश्वर के नाम पर ज्योतिषी, तांत्रिक जैसे पाखंडों का सिर्फ और सिर्फ एक ही काम है, अंधविश्वास के दलदल में डूबे लोगों को तन, मन और धन से लूटना। बाबा, ओझा, तांत्रिक सिर्फ और सिर्फ जालसाज हैं। ऐसे जालसाज से ठगी का शिकार बने लोग धारा 420 के तहत शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
चमत्कार को 25 लाख रुपये की चुनौती :
युक्तिवादी समिति के अध्यक्ष प्रबीर घोष ने कहा -“अंधविश्वास के जाल में अनपढ़ ही नहीं बल्कि पढ़े – लिखे लोग भी फंसे हुए हैं। अंधविश्वास देश के विकास में भारी रूकावट है। इसके चक्कर में लोग आर्थिक एवं सामाजिक शोषण का शिकार हो रहे हैं। हम 21 वीं सदी में जी रहे हैं। यह युग विज्ञान का है, लेकिन विभिन्न टीवी चैनलों पर कवच , सिद्ध माला, सिद्ध अंगूठी, धन प्राप्ति यंत्रों का व्यापक अन्धविश्वास के नाम पर, पाखंडी ओझा, तांत्रिक, बाबाओं, ज्योतिषियों का धंधा चल रहा है। जिसका खतरनाक प्रभाव देश के भविष्य करोड़ों बच्चों पर पड़ रहा है।
टोटका, तंत्रमंत्र आदि कमजोर दिमाग की उपज है। कोई व्यक्ति जब विभिन्न रोग से बीमार होता है, तब उनके परिवार के लोगों की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती है क्योंकि वे अपने परिजनों को स्वस्थ करने के लिए एक जगह से दूसरी जगह ले ले जाकर परेशान हो जाते हैं। वे चाहते हैं कि किसी भी कीमत पर उनका परिजन स्वस्थ्य हो जाए। इसलिए वे इसी तरह के धोखेबाज बाबाओं के चंगुल में आसानी से फंस जाते हैं।” घोष ने कहा, ‘’मैं ने और मेरी समिति ने कई सौ बाबाओं, ओझाओं, ज्योतिषियों की पोल खोली है, जबकि कई बाबाओं को जेल की हवा तक खिलाई है।” चमत्कारी शक्ति का दावा करने वालों को 25 लाख रुपये की चुनौती देते हुए प्रबीर घोष ने कहा कि यदि कोई भी ओझा, तांत्रिक, बाबा, ज्योतिषी यदि उनके सामने चमत्कारी शक्ति का प्रमाण पेश करने में सक्षम हो जाए, तो वे उन्हें 25 लाख रुपये देंगे और समिति का कामकाज बंद कर दिया जाएगा।”
उन्होंने कहा, ‘’मेरा आम लोगों के लिए यह संदेश है कि वे चमत्कार में विश्वास नहीं करें। चमत्कार के नाम पर किसी भी समस्या से मुक्ति दिलवाने का दावा करने वाले बाबा, ओझा, तांत्रिक सिर्फ और सिर्फ जालसाज हैं। ऐसे जालसाजों से दूर रहें। यदि आप को कहीं पर चमत्कार के नाम पर किसी बाबा का धंधा चलता हुआ दिख जाए तो उसके खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराएं। इस काम में युक्तिवादी समिति आपके साथ है।”
संतोष शर्मा
( पत्रकार एवं विज्ञान संचारक तथा संप्रति भारतीय विज्ञान एवं युक्तिवादी समिति, कोलकाता, पश्चिम बंगाल के उपाध्यक्ष हैं )