यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ‘2024 ग्लोबल एड्स अपडेट’ नामक रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में करीब चार करोड़ लोग एचआईवी संक्रमित हैं, यह संक्रमण एड्स का कारण बनता है।
रिपोर्ट के मुताबिक 1990 के बाद से देखें तो नए एचआईवी संक्रमितों का यह आंकड़ा सबसे कम है। मतलब की आज पहले से कहीं ज्यादा लोग एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी ले रहे हैं और यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। इसी तरह एड्स से संबंधित मौतें 2004 में अपने चरम पर पहुंचने के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गई हैं।
इसी तरह यदि 2010 की तुलना में देखें तो 2023 में 39 फीसदी कम लोग एचआईवी से संक्रमित हुए हैं। हालांकि इसके बावजूद यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि हर साल 13 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित होते रहेंगे, तो 2030 तक इससे निपटना कहीं ज्यादा जटिल और महंगा हो जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार एचआईवी उन्मूलन की दिशा में जिस रफ्तार से प्रयास किए जा रहे हैं वो यदि ऐसी ही बनी रही तो 2050 में करीब 4.6 करोड़ लोग एचआईवी से पीड़ित होंगें।
बता दें कि 2023 में एचआईवी संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका क्षेत्र में सामने आए हैं, जहां 4.5 लाख लोग इसका शिकार बने थे। इसके बाद एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में एचआईवी संक्रमण के तीन लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में करीब चार करोड़ लोग एचआईवी के साथ जीवन काटने को मजबूर हैं। इनमें से 93 लाख से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्हें उपचार नहीं मिल पा रहा है। नतीजन एड्स से जुड़े कारणों की वजह से हर मिनट एक जान जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक 2023 में 6.3 लाख लोगों की मौत एड्स की वजह से हुई थी। हालांकि 2010 में मरने वालों का यह आंकड़ा 13 लाख दर्ज किया गया था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2025 तक एड्स से जुड़ी मौतों को 250,000 से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया था। वहीं यदि एड्स से होने वाली मौजूदा मौतों को देखें तो यह आंकड़ा लक्ष्यों के दोगुने से भी अधिक है।
यूएन एड्स के मुताबिक कई देशों में एचआईवी संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि जिन क्षेत्रों में संक्रमण के मामले बढ़ें हैं, उनमें मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी यूरोप एवं मध्य एशिया, के साथ दक्षिण अमेरिका शामिल है।
यह समस्या पुरुषों, सेक्स वर्कर और ट्रांसजेंडर लोगों के साथ उन लोगों में कहीं ज्यादा गंभीर है जो ड्रग्स लेते हैं। दुनिया भर में एचआईवी के जितने भी नए मामले आए हैं, उसका 55 फीसदी इन्हीं लोगों में दर्ज किए गए हैं। देखा जाए तो यह आंकड़ा 2010 की तुलना में 44 फीसदी अधिक है।
यह वो क्षेत्र हैं जहां एचआईवी की रोकथाम पर बहुत कम पैसा खर्च किया जा रहा है। बोत्सवाना की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रोफेसर शीला ट्लौ ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “एचआईवी महामारी बदल चुकी है। ऐसे में अब हमें इसकी रोकथाम के लिए निष्पक्ष और प्रभावी उपाय करने के लिए मजबूत प्रणालियों की आवश्यकता है।”
गौरतलब है कि प्रोफेसर शीला ट्लौ वैश्विक स्तर पर एचआईवी रोकथाम के लिए बनाए गठबंधन (जीबीसी) की सह-अध्यक्ष भी हैं। जीबीसी की स्थापना 2017 में की गई थी। तब से यह गठबंधन एचआईवी की रोकथाम के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता को मजबूत करने और बनाए रखने के लिए काम कर रहा है।
विश्लेषण के मुताबिक जीपीसी के सदस्य देशों के बीच एड्स की रोकथाम की दिशा में हो रही प्रगति में काफी भिन्नता है। एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में सबसे बड़ी गिरावट पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में देखी गई है। इन देशों में केन्या, मलावी और जिम्बाब्वे शामिल हैं, जहां संक्रमण में 66 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है।
दवाओं और उपचार को किफायती और सुलभ बनाना है बेहद जरूरी
कहीं न कहीं यह आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि यह देश 2030 तक नए मामलों में 90 फीसदी की कमी के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इसी तरह पश्चिमी और मध्य अफ्रीकी देशों में भी कुछ हद तक प्रगति देखी गई है। देखा जाए तो यह सफलता एचआईवी उपचार तक बेहतर पहुंच और रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करने का ही नतीजा है।
यूएनएड्स कार्यक्रमों की उप कार्यकारी निदेशक एंजेली आचरेकर का कहना है कि, “एचआईवी की रोकथाम पर ध्यान देने का समय आ गया है।” “आज हमारे पास रोकथाम के ज्यादा विकल्प हैं, जैसे लंबे समय तक काम करने वाले एंटीरेट्रोवायरल और लेनाकापाविर दवाओं जैसे विकल्प मौजूद हैं। लेनाकापाविर एचआईवी की रोकथाम के लिए साल में दो बार दिए जाने वाले इंजेक्शन है।”
गौरतलब है कि हाल ही में एचआइवी की रोकथाम के लिए बनाई दवा लेनाकापाविर के क्लीनिकल ट्रायल में आशाजनक नतीजे मिले हैं। युगांडा और दक्षिण अफ्रीका की महिलाओं पर किए गए ट्रायल से पता चला है कि नई एंटीवायरल दवा के साल में दो बार इंजेक्शन लेने से महिलाओं में एचआइवी का खतरा नहीं रह गया था। ऐसे में इस तरह की दवाएं एचआइवी से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
विश्लेषण के मुताबिक आने वाले वर्षों में प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस जैसी तकनीकें नए एचआईवी संक्रमणों को रोकने में महत्वपूर्ण होंगी। बता दें कि प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस एंटीरेट्रोवायरल दवा है जो एचआईवी को रोकने में मददगार हो सकती है।
समय के साथ प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस तक पहुंच बढ़ी है, हालांकि वो अभी भी कुछ देशों तक ही सीमित है। आंकड़ों के मुताबिक 2023 में करीब 35 लाख लोग इन दवाओं का उपयोग कर रहे थे। वहीं 2017 में यह आंकड़ा महज दो लाख या उससे थोड़ा अधिक था। यह अभी भी 2025 तक एक करोड़ लोगों तक इन दवाओं के पहुंचाने के लक्ष्य के काफी पीछे है।
एचआईवी की रोकथाम से जुड़े कई उत्पाद निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें लंबे समय तक काम करने वाला इंजेक्शन कैबोटेग्राविर (सीएबी-एलए) और लेनाकापाविर जैसी दवाएं शामिल हैं जिनके आशाजनक नतीजे सामने आए हैं।
हालांकि इन दवाओं को सुलभ और किफायती बनाना बेहद महत्वपूर्ण है। कम कीमत पर इन विकल्पों की उपलब्धता उन देशों के लिए महत्वपूर्ण होगी, जिन्हें इनकी ज्यादा जरूरत है। यह इन जीवन रक्षक दवाओं तक पहुंच बढ़ाने में महत्वपूर्ण होगी।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि एचआईवी की रोकथाम में अभी भी एक बड़ा अंतराल मौजूद है। उदाहरण के लिए एचआईवी के उच्च प्रकोप वाले केवल 61 फीसदी क्षेत्रों में युवा महिलाओं को इससे बचाने के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसी तरह आधे से भी आधे से भी कम यौनकर्मियों और केवल एक तिहाई समलैंगिक पुरुषों और नशे की लत का शिकार लोगों को नियमित रूप से एचआईवी की रोकथाम के लिए सहायता मिल रही है।
यूएन एड्स ने कंडोम को एचआईवी से बचाव का सबसे प्रभावी और किफायती तरीका माना है। हालांकि इसके बावजूद 2010 से 2022 के बीच निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कंडोम की खरीद या वितरण में 27 फीसदी की गिरावट आई है। इसी तरह इनके सामाजिक वितरण में भी गिरावट आई है, जो 2011 में 350 करोड़ से घटकर 118 करोड़ पर पहुंच गया है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि एचआईवी की रोकथाम और उससे जुड़े सामाजिक कार्यक्रमों के लिए अभी भी संसाधनों की बेहद जरूरत है। उदाहरण के लिए 2023 के दौरान निम्न और मध्यम आय वाले देशों में इन कार्यक्रमों के लिए केवल 240 करोड़ डॉलर उपलब्ध थे, लेकिन 2025 तक इन कार्यक्रमों के लिए 950 करोड़ डॉलर की जरूरत है।
ऐसे में एचआईवी की रोकथाम से जुड़े इन कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए निवेश की बेहद जरूरत है। यह कार्रवाई का समय है, एचआईवी की रोकथाम के लिए मजबूत राजनीतिक नेतृत्व के साथ कानूनों और नीतियों पर ध्यान देना जरूरी है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )