दयानिधि
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पुणे शहर में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 26 मामले सामने आए हैं। शहर के तीन बड़े अस्पतालों ने जीबीएस के बढ़ते मामलों के बारे में स्वास्थ्य अधिकारियों को सचेत किया है। डॉक्टरों ने मीडिया को बताया कि मरीज मुख्य रूप से सिंहगढ़ रोड, धायरी और आस-पास के इलाकों से हैं।
आखिर गुइलेन बैरे सिंड्रोम होता क्या है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से परिधीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है। यह स्थिति कमजोरी, सुन्नता और गंभीर मामलों में लकवा का कारण बन सकती है। हालांकि गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन इसके सटीक कारण की अभी तक जानकारी नहीं है।
जीबीएस से सभी उम्र के लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन यह वयस्कों और पुरुषों में अधिक आम है। अधिकांश लोग गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के सबसे गंभीर मामलों से भी पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। ठीक होने का समय अलग-अलग होता है, अधिकतर लोग कुछ हफ्तों से लेकर महीनों में ठीक हो जाते हैं। लगभग 80 फीसदी लोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, जबकि 15 फीसदी में कमजोरी रह सकती है और पांच फीसदी को गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के क्या लक्षण हैं?
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के लक्षण आमतौर पर अचानक दिखाई देते हैं और कुछ दिनों या हफ्तों में तेजी से बढ़ सकते हैं। आम लक्षणों में कमजोरी और झुनझुनी शामिल है जो अक्सर पैरों से शुरू होती है और बाहों और चेहरे तक फैल सकती है। लोगों को चलने में भी कठिनाई होती है जो गतिशीलता और संतुलन को प्रभावित कर सकती है।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का क्या कारण है?
सबसे आम बैक्टीरियल संक्रमण जैसे कि कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी (अधपके मुर्गी में पाया जाता है) और संक्रामक संक्रमण जैसे कि एपस्टीन-बार वायरस, साइटोमेगालोवायरस या जीका वायरस शामिल हैं। ये संक्रमण प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं जो गलती से परिधीय तंत्रिकाओं को निशाना बनाता है। दुर्लभ मामलों में, कुछ टीके, जैसे कि इन्फ्लूएंजा या टेटनस के लिए, जीबीएस की शुरुआत से जुड़े हुए हैं। हालांकि टीकाकरण के फायदों की तुलना में पूरा जोखिम बेहद कम रहता है।
विशेषज्ञों को चिंता इस बात की है कि गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के मामलों में इतनी वृद्धि पहले कभी नहीं देखी। बड़े अस्पतालों में आम तौर पर महीने में एक या दो जीबीएस के मामले सामने आते हैं, इसलिए एक सप्ताह में 26 मामले बहुत बड़ी संख्या है, इसलिए इसकी गहराई से जांच की जानी चाहिए।
कैसे होती हैं इसकी जांच?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, जांच व लक्षणों और न्यूरोलॉजिकल जांच के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें डीप-टेंडन रिफ्लेक्स में कमी या नुकसान शामिल है। सहायक जानकारी के लिए लंबर पंचर या इलेक्ट्रोमायोग्राफी (ईएमजी) किया जा सकता है, हालांकि इससे उपचार में देरी नहीं होनी चाहिए। जीबीएस का निदान करने के लिए रक्त परीक्षण जैसे अन्य परीक्षणों की आवश्यकता नहीं होती है। जिस किसी को भी जीबीएस होने की आशंका है, उसे सांस लेने में कठिनाई होती है तो उसकी गहराई निगरानी की जानी चाहिए।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का उपचार और देखभाल
डब्ल्यूएचओ की मानें तो गुइलेन-बैरे सिंड्रोम वाले लोगों के उपचार और देखभाल के लिए रोगियों को अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए ताकि उनकी गहराई से निगरानी की जा सके। देखभाल में सांस लेने, दिल की धड़कन और रक्तचाप की निगरानी शामिल है। ऐसे मामलों में जहां किसी व्यक्ति की सांस लेने की क्षमता कमजोर होती है, उसे आमतौर पर वेंटिलेटर पर रखा जाता है। सभी जीबीएस रोगियों की जटिलताओं के लिए निगरानी की जानी चाहिए, जिसमें असामान्य दिल की धड़कन, संक्रमण, रक्त के थक्के और उच्च या निम्न रक्तचाप शामिल हो सकते हैं।
जीबीएस के लिए कोई ज्ञात इलाज नहीं है, लेकिन उपचार जीबीएस के लक्षणों को बेहतर बनाने और इसकी अवधि को कम करने में मदद कर सकते हैं। रोग की स्वप्रतिरक्षी प्रकृति को देखते हुए, इसके तीव्र चरण का आमतौर पर इम्यूनोथेरेपी से इलाज किया जाता है, जैसे रक्त से एंटीबॉडी को हटाने के लिए प्लाज्मा एक्सचेंज या अंतःशिरा इम्युनोग्लोबुलिन। लक्षण दिखने के सात से 14 दिन बाद शुरू किए जाने पर यह सबसे अधिक फायदेमंद होता है। ऐसे मामलों में जहां बीमारी के तीव्र चरण के बाद भी मांसपेशियों में कमजोरी बनी रहती है, मरीजों को अपनी मांसपेशियों को मजबूत करने और फिर से बहाल करने के लिए पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता हो सकती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )