रिचर्ड महापात्र

पिछले लगभग पचास वर्षों तक भारतीयों ने लंबा और स्वस्थ जीवन जिया। लेकिन कोविड-19 महामारी के बुरे दौर के दौरान जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई.

13 मार्च 2020 को, भारत सरकार की प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) ने देश के नवीनतम जीवन प्रत्याशा आंकड़ों की घोषणा की। जनगणना एवं रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय के अनुमान का हवाला देते हुए पीआईबी ने कहा, “जन्म पर औसत जीवन प्रत्याशा 1970-75 के दौरान 49.7 थी, जो 2013-17 में बढ़कर 69.0 हो गई है। यानी के इस अवधि में जन्म प्रत्याशा में 19.3 वर्षों की वृद्धि हुई।” जन्म पर जीवन प्रत्याशा एक देश के विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। भारत के मामले में देखें तो मृत्यु दर में गिरावट, समग्र स्वास्थ्य मानकों में सुधार और नागरिकों का लंबे समय तक जीना विकास का महत्वपूर्ण संकेत है। देश में जीवन प्रत्याशा में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। अब इसमें गिरावट की कल्पना भी करना मुश्किल है।

लेकिन यह खुशखबरी उस समय दी गई, जब दुनिया एक जानलेवा वायरस का सामना सामना करने वाली थी। 11 मार्च को, पीआईबी के प्रेस नोट से महज 48 घंटे पहले, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 महामारी के फैलने की घोषणा की थी। उस समय भारत में कोविड-19 के मरीजों की संख्या केवल 60 थी। मुट्ठी भर लोग ही इस महामारी के बारे में जानते थे, जिसके घातक परिणाम हो सकते थे। 50 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय लंबे और स्वस्थ जीवन जीने के आदी हो चुके थे। महामारी के कारण लाखों लोगों की मौत और यहां तक कि विश्व जनसंख्या में गिरावट आना, यह पहले के समय की एक सच्चाई थी और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति की कोई संभावना नहीं थी।

पांच साल बाद 7 मई 2025 को सरकार ने जीवन प्रत्याशा पर नवीनतम आंकड़े जारी किए। जिसके मुताबिक जीवन प्रत्याशा 0.2 वर्ष घट गई है। यह आंकड़ा कहता है, “भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 2017-21 की अवधि के लिए 69.8 वर्ष अनुमानित की गई है, जो 2016-20 की तुलना में 0.2 वर्ष कम है।” आंकड़े संग्रहित करने की यह अवधि महामारी के दो सबसे खराब वर्षों से मेल खाती है। क्या यही जीवन प्रत्याशा में गिरावट का कारण है? आधिकारिक आंकड़े इस बात को सीधे तौर पर नहीं कहता। लेकिन, इसमें इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि वायरस इसका कारण हो सकता है, भले ही इसे औपचारिक रूप से नहीं जोड़ा गया हो।

आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि मृत्यु दर 2020 में 6.0 से बढ़कर 2021 में 7.9 हो गई। मृत्यु दर में एक तेज वृद्धि देखी गई। 2020 में 81 लाख लोगों की मौत हुई, जो 2021 में बढ़कर 1.02 करोड़ हो गई। ऐसा लगभग 55 वर्षों में पहली बार हुआ है। सरकार ने बताया था कि कोविड-19 की वजह से 6 लाख लोगों की मौत हुई है। लेकिन इस अवधि के दौरान “अतिरिक्त मौतों” के आंकड़ों से संदेह उत्पन्न होता है। सांस के रोगों से होने वाली मौतें 2020 में 181,160 से बढ़कर 2021 में 305,191 हो गईं। इसके अलावा, परिसंचरण तंत्र (वह तंत्र जो हमारे शरीर में खून को दिल से बाकी अंगों तक पहुंचाता है। इसमें दिल, रक्त नलिकाएं (जैसे रक्त वाहिकाएं, शिराएं) और खून शामिल होते हैं) से संबंधित बीमारियों से होने वाली मौतें भी इसी अवधि में 5,80,751 से बढ़कर 7,14,072 हो गईं। इन अभूतपूर्व वृद्धि का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है। इन स्थितियों के लक्षण कोविड-19 से मिलते-जुलते हैं।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के शोधकर्ताओं ने आंकड़ों का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला कि साल 2021, जो कोविड-19 से जुड़ी मौतों के मामले में सबसे खराब साल था में भारत ने जीवन प्रत्याशा में 1.6 साल की कमी देखी। इसका प्रभाव लिंग आधारित है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पुरुषों की जीवन प्रत्याशा में गिरावट के कारण 2021 में लिंग अंतर 3.2 साल बढ़ गया है, जबकि महामारी से पहले यह अंतर 2.8 साल था। यह अंतर 2013 के स्तर के बराबर है। दूसरे शब्दों में, हम एक दशक के दौरान की गई प्रगति को खो चुके हैं। सितंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र की “मानव विकास रिपोर्ट 2021-2022” ने भी अनुमान जताया कि भारत की जीवन प्रत्याशा 2019 में 69.7 साल से घटकर 2021 में 67.2 साल हो गई।

संयुक्त राष्ट्र इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 70 प्रतिशत देशों में जीवन प्रत्याशा में गिरावट आई, जिसे महामारी से जोड़ा गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 85 प्रतिशत देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, ने महामारी के दौरान आय में गिरावट दर्ज की। महामारी का वास्तविक मानव संकट समय के साथ सामने आएगा, चाहे इसे परिभाषाओं के खेल से ढका जाए या नहीं।

ऐसे समय में, जब हम आर्थिक नुकसानों से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, तब संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट का एक और निष्कर्ष बताता है, “2021 में महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार के बावजूद स्वास्थ्य संकट बढ़ गया और दो-तिहाई देशों ने जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में और अधिक कमी दर्ज की।” यह महामारी के बाद की स्थिति को संभालने के तरीके पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता को दर्शाता है। महामारी एक स्थायी, बहु सिर वाली, सामाजिक-आर्थिक समस्या की तरह है, जो हमें समय के साथ जकड़े रखेगी।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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