विकास शर्मा
चीनी साइंटिस्ट्स की एक रिसर्च ने इस बात की वजह का पता लगाया है कि सांस संबंधी रोग महिलों के मुकाबले पुरुषों में अधिक क्यों होते हैं. उन्होंने नाक और सांस की नली के अंदर मिलने वाले सूक्ष्मजीवों के बायोम का अध्ययन कर पाया कि महिला और पुरुषों के बायोम के जीवों के लिंग संबंधी अंतर होते हैं, जिनकी वजह से महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा प्रतिरोधी और मजबूत सूक्ष्मजीवी होते हैं.
वैसे तो इंसानों में महिला और पुरुष में बहुत से अंतर होते हैं. पर कई अंतर अजीब से भी देखे गए हैं. एक धारणा है कि सांस के रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा होते हैं. कई अध्ययनों में ऐसा पाया गया है कि ये सच है. पर ऐसा क्यों है? क्या ये अंतर केवल कभी कभी होने वाला संयोग है? या इसके पीछे कोई खासा वैज्ञानिक कारण है. चीन के साइंटिस्ट्स की रिसर्च में इसके कारण की खोज करने का प्रयास किया है. उन्होंने पाया कि इसकी वजह दोनों के नाक के अंदर पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों की संरचना का अंतर है जिसका सीधा संबंध इंसान के जेंडर यानी लिंग से है.
महिलाओं में क्या कुछ खास है?
स्टडी का कहना है कि उनकी पड़ताल के नतीजे इस बात की व्याख्या कर सकते हैं कि पुरुषों में सांस के रोग अधिक क्यों होते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि है कि महिलाओं में मजबूत नेजल माइक्रोबायोटा ज्यादा होते हैं. इन सूक्ष्मजीवों में सांस की नली के संक्रमणों से लड़ने की ज्यादा ताकत होती है. पुरुष महिलाओं की तुलना में हर उम्र के वर्ग में ऐसे संक्रमण का ज्यादा अनुभव करते हैं. यहां तक कि ऐसा कोविड-19 महामारी में भी देखने को मिला था, जहां हर उम्र में मरने वालों की संख्या पुरुषों की अधिक थी.
जेंडर की बड़ी भूमिका?
स्टडी के मुताबिक, बहुत सारे रोगों में जेंडर या लिंग एक अहम कारक होता है, पर अभी तक यह साफ नहीं था कि सेक्स क्रोमोजोम, सेक्स जीन्स और सेक्स हॉरमोन की वजह से इम्यूनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता में कितना अंतर आता है? दुनिया की सबसे बड़ी जीनोम रिसर्च संस्था, बीजीआई रिसर्च की टीम ने बताया, “इस विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने नाक के सूक्ष्मजीवों के समुदायों में खास सेक्स संबंधी अंतर की पहचान की, जो सांस की बीमारियों में सेक्स या लिंग वाले अंतरों की समझ को बढ़ा सकती है.”
नमूनों का विशाल संग्रह
टीम ने करीब 1600 स्वस्थ्य युवाओं की नाक और सांस की नली में पाए जाने सूक्ष्मजीवों, जिन्हें नेजल बायोम कहते हैं, का विश्लेषण विश्लेषण किया. इसके लिए नमूने साल 2018 में चीन के दक्षिणी शहर शेनझेन से लिए गए थे. यह तब तक का जमा किया गया सबसे बड़ा नमूना संग्रह था. नेजल माइक्रोबल संरचना की लिंग आधारित गुणों और कार्यों का पता लगाने के अलावा टीम ने 2 हजार नए जीन क्लस्टर्स पाए जो नए एंटी बायोटिक को प्रेरित कर सकते हैं.
महिलाओं में खास तरह के काबिलियत
इसी महीने पियर रीव्यू जर्नल जीनोम बायोलॉजी में प्रकाशित स्टडी में टीम ने लिखा, “हमने खास तौर से पुरुषों की तुलना में महिलाओं के नेजल बायोम में अधिक स्थायित्व और प्रतिरोधी क्षमताओं को पकड़ा. ये आंकड़े सुझाव देते हैं कि नाक के माइक्रोबायोटा नए एंटीबायोटिक्स या अन्य फार्मास्यूटिकल्स के लिए एक समृद्ध भंडार के रूप में काम कर सकते हैं.” बीजीआई रिसर्च के एक सहयोगी शोधकर्ता, प्रमुख लेखक गुओ रुइजिन ने अध्ययन को “छोटे नथुने के भीतर एक विशाल दुनिया” को उजागर करने की तरह बताया.
नाक एक बहुत बड़ा स्रोत
चूंकि दवा प्रतिरोध दुनिया की सेहत के लिए एक बढ़ता हुआ खतरा है, इसलिए वैज्ञानिक प्रदूषण और एंटीबायोटिक्स से अछूते, गहरे समुद्र और ग्लेशियरों जैसे चरम वातावरण में नए एंटीबायोटिक उत्पादक जीवों की खोज कर रहे हैं. गुओ के मुताबिक मानव शरीर भी एक संभावित स्रोत हो सकता है. उन्होंने कहा, “नाक का छेद एक गतिशील वातावरण है जिसमें प्रत्येक सांस लगातार बदलाव लाती है. माइक्रोबायोटा ने उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए, स्थिर रहने की क्षमता विकसित की है, खासकर तब जब रोगजनकों का आक्रमण होता है. एंटीबायोटिक्स सहित रोगाणुरोधी पदार्थ रक्षात्मक हथियार हैं.
नए एंटिबायोटिक्स की प्रेरणा
“मनुष्य चलते फिरते सक्रिय प्राणी हैं और अन्य जानवरों की तुलना में अधिक जटिल वातावरण के संपर्क में हैं. हम अक्सर अपेक्षाकृत खुले वातावरण के साथ बातचीत करते हैं, जिससे हमारे शरीर में नए एंटीबायोटिक्स का विकास होता है.” उन्होंने कहा कि रोगाणुरोधी पदार्थों के उत्पादन को आनुवंशिक सिक्वेंसिंग से देखा जा सकता है और यह नए एंटीबायोटिक्स के विकास को प्रेरित कर सकता है.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )