ललित मौर्या

यदि आप भी टी-बैग से बनी चाय पीते हैं तो सावधान हो जाएं। यह आपके स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ बार्सिलोना (यूएबी) से जुड़े वैज्ञानिकों ने इसको लेकर किए नए अध्ययन में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। इस रिसर्च से पता चला है कि पॉलिमर बेस्ड टी-बैग, गर्म पानी के डालने के बाद माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स (एमएनपीएल) के लाखों कण छोड़ते हैं।

यह पहला मौका है जब वैज्ञानकों ने पुष्टि की है कि टी बैग द्वारा छोड़े प्लास्टिक के यह महीन कण हमारी आंतों की कोशिकाओं द्वारा अवशोषित किए जा सकते हैं, जहां से यह रक्त में प्रवेश कर सकते हैं। इस तरह यह पूरे शरीर में फैल सकते हैं। गौरतलब है कि प्लास्टिक के यह टी-बैग आमतौर पर नायलॉन-6, पॉलीप्रोपाइलीन और सेलूलोज जैसी चीजों से बने होते हैं। अध्ययन के नतीजे जर्नल केमोस्फीयर में प्रकाशित हुए हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में चाय को बेहद पसंद किया जाता है। बात चाहे थकान मिटाने की हो या मेहमानों के स्वागत की, चाय की प्याली अक्सर इसमें साथ निभाती है। कई लोग सर्दियों में खुद को गर्म, तरोताजा रखने के लिए भी इसे पीना पसंद करते हैं। हालांकि आज की भागती दौड़ती दुनिया में समय की कमी और चाय की बढ़ती मांग को देखते हुए इन दिनों टी-बैग वाली चाय भी चलन में आने लगी है, जो बनाने में आसान होती है। इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल ऑफिस और होटलों में किया जाता है।

आज दुनिया में बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुका है, जो पर्यावरण के साथ लोगों के स्वास्थ्य और भविष्य को भी प्रभावित कर रहा है। पिछले शोधों से पता चला है कि खाद्य पैकेजिंग प्लास्टिक कणों के इन महीन कणों का एक प्रमुख स्रोत है, जो खाने या सांस के जरिए लोगों के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। यही वजह है कि अपने इस अध्ययन में ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ बार्सिलोना से जुड़े वैज्ञानिकों ने अलग-अलग तरह के टी-बैग में मौजूद प्लास्टिक के इन महीन कणों का अध्ययन कर उनकी पहचान की है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने टी-बैग्स से निकलने वाले कणों का अध्ययन करने के लिए इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (एसईएम और टीईएम), इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एटीआर-एफटीआईआर) जैसे उन्नत उपकरणों की मदद ली है। साथ ही इनके आकार और गति को मापने के लिए डीएलएस, एलडीवी और एनटीए जैसी तकनीकों का उपयोग किया है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि जब इन टी-बैग्स को गर्म पानी में डाला जाता है तो इनसे बड़ी मात्रा में प्लास्टिक के महीन कण निकलते हैं जो हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

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शरीर में घुलता प्लास्टिक

इस रिसर्च में जिन टी-बैग्स का अध्ययन किया गया वो नायलॉन-6, पॉलीप्रोपाइलीन और सेल्यूलोज से बनी थीं। रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि पॉलीप्रोपाइलीन के बने टी-बैग से प्रति मिलीलीटर 120 करोड़ कण निकलते हैं। इन कणो का औसत आकार करीब 137 नैनोमीटर होता है।

वहीं सेल्यूलोज से बने टी-बैग से प्रति मिलीलीटर 13.5 करोड़ कण मुक्त होते हैं, जिनका औसत आकर 244 नैनोमीटर होता है। इसी तरह नायलॉन-6 से बने टी-बैग्स ने प्रति मिलीलीटर 81.8 लाख कण मुक्त किए, जो आकार में औसतन 138 नैनोमीटर के थे।

वैज्ञानिकों ने इन कणों का परीक्षण मानव आंतों की कोशिकाओं पर भी किया ताकि यह देखा जा सके कि वे किस तरह परस्पर क्रिया करते हैं। उन्होंने पाया कि बलगम बनाने वाली कोशिकाओं ने सबसे अधिक सूक्ष्म कणों और नैनोप्लास्टिक को अवशोषित किया, वहीं कुछ कण तो कोशिका के नाभिक तक भी पहुंच गए।

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निष्कर्ष बताते हैं कि प्लास्टिक के इन कणों को अवशोषित करने में इंटेस्टाइनल म्यूकस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो बाद में शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक लंबे समय तक इनका संपर्क स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकता है, यह समझने के लिए और अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

बता दें कि प्लास्टिक के अत्यंत महीन टुकड़ों को माइक्रोप्लास्टिक के नाम से जाना जाता है। इन कणों का आकार एक माइक्रोमीटर से पांच मिलीमीटर के बीच होता है। प्लास्टिक के इन महीन कणों में भी जहरीले प्रदूषक और केमिकल होते हैं जो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। वहीं मैकगिल यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किए एक अन्य अध्ययन में सामने आया है कि टी बैग चाय के साथ करोड़ों छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण छोड़ते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं।

एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि हम इंसान अपनी सांस के जरिए हर घंटे माइक्रोप्लास्टिक्स के करीब 16.2 कण निगल सकते हैं। निगले गए इस माइक्रोप्लास्टिक्स की यह मात्रा कितनी ज्यादा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि हफ्ते भर निगले गए इन प्लास्टिक के महीन कणों को जमा किया जाए तो इनसे एक क्रेडिट कार्ड बनाने जितना प्लास्टिक इकट्ठा हो सकता है।

जर्नल एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स हमारे पाचन तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं। साथ ही यह आंत से शरीर के दूसरे अहम अंगों जैसे लीवर, किडनी और यहां तक की मस्तिष्क तक पहुंचने की राह बना रहे हैं।

आंतों से शरीर के दूसरे अंगों तक राह बना रहा माइक्रोप्लास्टिक, वैज्ञानिकों ने किया खुलासा
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बता दें कि वैज्ञानिकों को इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल और अन्य अंगों के साथ-साथ दिमाग में भी माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के सबूत मिले हैं जो स्वास्थ्य के लिए बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों को इंसानी अंगों के साथ रक्त, दूध, सीमन और यूरीन में भी माइक्रोप्लास्टिक के पाए जाने के सबूत मिले हैं।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने फूड पैकेजिंग से हो रहे प्लास्टिक प्रदूषण को मापने के लिए मानक परीक्षणों की आवश्यकता पर जोर दिया है। साथ ही इन्हें कम करने के लिए नियमों की आवश्यकता जताई है। दुनिया में जिस तरह फूड पैकेजिंग में प्लास्टिक का उपयोग बढ़ रहा है, वो बेहद चिंता का विषय है, जिससे निपटने स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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