ललित मौर्या
हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज में वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। उन्होंने दुनिया का सबसे छोटा पेसमेकर बनाने में सफलता हासिल की है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के इंजीनियरों द्वारा बनाया यह पेसमेकर आकार में इतना छोटा है कि इसे इंजेक्शन के जरिए भी शरीर में इंजेक्ट किया जा सकता है।
खास बात यह है कि काम खत्म होते ही यह पेसमेकर अपने आप शरीर में घुलकर खत्म हो जाता है। यानी न सर्जरी, न टांके, न तकलीफ। बता दें पेसमेकर एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसे हृदय की धड़कन को नियंत्रित करने के लिए लगाया जाता है। इसे कार्डियक पेसिंग डिवाइस भी कहते हैं। यह उपकरण दिल की धड़कन को सामान्य ताल पर बनाए रखने में मदद करता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक हालांकि यह पेसमेकर सभी आकार के दिलों के साथ बेहतर तरीके से काम कर सकता है, लेकिन इसे खासतौर पर उन नवजात शिशुओं के लिए बनाया गया है, जिनमें जन्म से ही ह्रदय सम्बन्धी दोष होता है, नतीजन उनके दिल का ऑपरेशन करना पड़ता है। ऐसे में ऑपरेशन के बाद उनके दिल की धड़कन को अगले कुछ दिनों तक नियंत्रित रखने के लिए पेसमेकर की जरूरत पड़ती है।
कैसे काम करता है यह पेसमेकर
चावल के दाने से भी छोटा यह पेसमेकर मरीज की छाती पर पहने जाने वाले एक नरम, वायरलेस डिवाइस के साथ काम करता है। जब डिवाइस अनियमित दिल की धड़कन को महसूस करता है, तो यह पेसमेकर को सक्रिय करने और दिल की धड़कन को सामान्य करने के लिए त्वचा और मांसपेशियों के माध्यम से प्रकाश की एक छोटी सी पल्स भेजता है। इससे यह पेसमेकर सक्रिय हो जाता है और मरीज के दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है।
गौरतलब है कि अभी तक इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक पेसमेकर में तारें शरीर से बाहर रहती हैं और बाद में इन्हें सर्जरी करके निकालना पड़ता है, जिससे संक्रमण और घाव का खतरा बना रहता है। गौरतलब है कि जब यह तार बाहर निकाले जाते हैं, तो वे हृदय की मांसपेशियों को संभावित रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रांग की मृत्यु इसी तरह हुई थी। बाईपास सर्जरी के बाद उन्हें एक अस्थाई पेसमेकर लगाया गया था। जब तार निकाले गए, तो उन्हें इंटरनल ब्लीडिंग हुई थी। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह पेसमेकर उन मरीजों के लिए डिजाईन किया गया है जिन्हें अस्थाई तौर पर इसकी जरूरत होती है। ऐसे में जब पेसमेकर की आवश्यकता खत्म हो जाती है, तो यह खुद ही शरीर में घुल जाता है। इसके सभी हिस्से ऐसे पदार्थों से बने हैं, जो शरीर के तरल पदार्थों में आसानी से घुल जाते हैं। इसलिए इसे बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती।
बता दें कि इन उपकरणों में सामग्री की संरचना और मोटाई में परिवर्तन करके, रोजर्स और उनके शोधकर्ताओं का दल यह नियंत्रित कर सकता है कि इसे घुलने से पहले वे कितने दिनों तक काम करना है। इसके बारे में विस्तृत जानकारी अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुई है। इस अध्ययन से पता चला है कि यह डिवाइस बड़े-छोटे जानवरों और मानव हृदय (जो अंगदान करने वाले लोगों से लिए गए थे) पर सफलतापूर्वक काम करता है। इस बारे में जानकारी देते हुए अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता जॉन ए रोजर्स ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि दुनिया में करीब एक फीसदी बच्चे हृदय दोष के साथ पैदा होते हैं। सर्जरी के बाद, इन बच्चों को आमतौर पर बस कुछ दिनों के लिए पेसमेकर की आवश्यकता होती है। ज्यादातर मामलों में, उनका दिल एक सप्ताह के भीतर अपने आप ठीक से काम करना शुरू कर देता है। लेकिन इन 7 दिनों के दौरान, पेसमेकर उनकी जान बचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इससे पहले बनाया गया घुलनशील पेसमेकर भी अच्छी तरह से काम कर रहा था, लेकिन सर्जनों ने इसे और छोटा बनाने की मांग की ताकि इसे खासकर छोटे बच्चों में भी आसानी से लगाया जा सके। पहले वाला पेसमेकर मोबाइल जैसी एनएफसी तकनीक से चलता था, जिसमें एंटीना की जरूरत होती थी। इस वजह से उसे छोटा करना मुश्किल था।
वहीं अब वैज्ञानिकों ने नई तकनीक विकसित की है, जिसमें पेसमेकर को रोशनी की मदद से कंट्रोल किया जाता है। इससे इसका आकार काफी छोटा हो गया। इसके अलावा, यह नया पेसमेकर खुद बिजली पैदा करता है। इसमें दो अलग-अलग धातुओं का इस्तेमाल किया गया है, जो शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आने से बैटरी की तरह काम करती हैं और दिल को जरूरी इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजती हैं।
यह पेसमेकर इन्फ्रारेड लाइट से चलता है, जो शरीर के अंदर तक सुरक्षित रूप से पहुंचती है। जब दिल की धड़कन तय सीमा से कम होती है, तो सीने पर लगा डिवाइस इसे पहचान कर अपने आप लाइट ऑन कर देता है। यह लाइट सामान्य दिल की गति के अनुसार चमकती है। यह पेसमेकर बेहद छोटा है जो महज 1.8 मिलीमीटर चौड़ा, 3.5 मिलीमीटर लंबा और एक मिलीमीटर मोटा है, लेकिन यह बड़े डिवाइस जितनी ही पावरफुल है।
इलाज की दुनिया में क्रांति ला सकती है यह तकनीक
छोटा आकार होने से इसे लगाना आसान है, इससे शरीर को कम नुकसान होता है और निकालने के लिए सर्जरी की जरूरत भी नहीं पड़ती क्योंकि यह खुद-ब-खुद घुल जाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह पेसमेकर इतने छोटे हैं कि जरूरत पड़ने पर डॉक्टर दिल के अलग-अलग हिस्सों में कई पेसमेकर लगा सकते हैं। हर पेसमेकर को अलग रंग की लाइट से कंट्रोल किया जा सकता है। इससे दिल की धड़कन को ज्यादा बेहतर तरीके से कंट्रोल किया जा सकता है, खासकर जब दिल की गति अनियमित हो।
वैज्ञानिकों का कहना है कि छोटे पेसमेकर दिल के बाहर कई जगह लगाए जा सकते हैं और हर एक को अलग से कंट्रोल किया जा सकता है। इससे दिल की धड़कन को बेहतर और एकसमान बनाया जा सकता है। इतना छोटा होने की वजह से इसे हार्ट वाल्व जैसे अन्य इम्प्लांट्स से भी जोड़ा जा सकता है। ऐसे में जरूरत पड़ने पर इन्हें एक्टिव कर मरीज की रिकवरी के दौरान आने वाली परेशानियों को दूर किया जा सकता है। इससे इलाज और बेहतर हो सकता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ बच्चों में ही नहीं, बल्कि बड़ों के इलाज में भी किया जा सकता है। उन्हें भरोसा है कि यह तकनीक सिर्फ दिल के इलाज तक सीमित नहीं है। यह बायो-इलेक्ट्रॉनिक दवाओं में उपयोग के लिए अन्य संभावनाओं के द्वार खोलती है। भविष्य में इसका इस्तेमाल नसों और हड्डियों को जोड़ने, घाव भरने और दर्द कम करने जैसे इलाज में भी किया जा सकता है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )