ललित मौर्या
क्या आप जानते हैं कि महिलाओं की सुनने की शक्ति पुरुषों से कहीं ज्यादा होती है? बात हैरान कर देने वाली लेकिन सच है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि सुनने की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि सुनने वाला पुरुष है या महिला। नतीजे दर्शाते हैं कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में बेहतर सुन सकती हैं।
सुनने की क्षमता, मानव विकास का एक ऐसा पहलू है जिस पर बेहद कम अध्ययन किया गया है। देखा जाए तो आज दुनिया भर में सुनने की समस्या तेजी से बढ़ रही है। उम्र बढ़ने के साथ सुनने की क्षमता कम होना तो आम बात है। ऐसे में अधिकांश शोध इसी पर केंद्रित रहे हैं।
हालांकि इसे प्रभावित करने वाले अन्य जैविक और पर्यावरणीय कारकों, जैसे सुनने वाला पुरुष है या महिला, भाषा, जातीयता और स्थानीय परिवेश पर बहुत कम शोध किए गए हैं। वहीं दूसरी ओर जानवरों में, वैज्ञानिकों ने व्यापक रूप से इस बात का अध्ययन किया है कि उनके आस-पास के वातावरण के अनुसार ध्वनियां और सुनने की क्षमता कैसे प्रभावित होती है। ऐसे में इसे समझने के लिए फ्रांस के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड एनवायर्नमेंटल रिसर्च से जुड़ी डॉक्टर पैट्रिसिया बालरेस्क और ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ की प्रोफेसर टुरी किंग के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने एक नया अध्ययन किया है।
इस अध्ययन में फ्रांस, इंग्लैंड, इक्वाडोर, गेबॉन, दक्षिण अफ्रीका और उज्बेकिस्तान समेत 13 देशों के 450 लोगों की सुनने की क्षमता की जांच की गई। इनमें जंगलों में रहने वाले लोगों से, पहाड़ों पर बसे समुदायों और शहरों में शोरगुल के बीच रहने वाले लोग शामिल थे। इन आबादियों का चुनाव इसलिए किया गया ताकि अलग-अलग पर्यावरणीय और सांस्कृतिक परिस्थितियों में रहने वाले लोगों की सुनने की क्षमता को समझा जा सके। इसमें ग्रामीण इलाकों और गैर-यूरोपीय समुदायों को भी शामिल किया गया था, जिन्हें आमतौर पर ऐसे शोधों में कम ही जगह मिलती है।
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कान के अंदर मौजूद कॉख्लिया या कॉक्लिया की जांच की है। यह कान की झिल्ली के बाद का हिस्सा होता है, जो आवाज को दिमाग तक पहुंचाने में अहम भूमिक निभाता है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने एक विशेष जांच ‘क्षणिक उत्प्रेरित श्रवण ध्वनि उत्सर्जन (टीईओएई)’ के जरिए यह समझने का प्रयास किया है कि अलग-अलग तरह की आवाजों जैसे धीमी, तेज, ऊंची या नीची आदि को सुनकर कॉक्लिया कैसे प्रतिक्रिया करता है। वैसे तो यह पहले से ही ज्ञात है कि आमतौर पर दाएं कान की सुनने की क्षमता बाएं कान से बेहतर होती है। साथ ही उम्र बढ़ने के साथ सुनने की क्षमता कम होती जाती है। लेकिन इस रिसर्च में वैज्ञानिक यह जानकर हैरान रह गए कि सुनने की क्षमता पर लिंग और वातावरण का भी गहरा असर पड़ता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।
क्यों कम होती है पुरुषों और पहाड़ी लोगों के सुनने की क्षमता
अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि इंसान की सुनने की क्षमता पर उम्र से ज्यादा जेंडर यानी इस बात का असर पड़ता है कि सुनने वाली महिला है या पुरुष। रिसर्च में पाया गया कि महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों के मुकाबले औसतन दो डेसिबल अधिक होती है।
इसके बाद सुनने की क्षमता पर सबसे बड़ा असर पर्यावरण यानी आस-पास के वातावरण का पड़ता है। सिर्फ आवाज की तेजी ही नहीं, बल्कि किस आवाज की कितनी फ्रीक्वेंसी (तरंगें) कान तक पहुंच रही हैं, इसमें भी पर्यावरण की अहम भूमिका देखी गई। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि यह फर्क दुनियाभर की लगभग हर आबादी में एक जैसा था।
इसी तरह जो लोग शांत और प्राकृतिक माहौल में रहते हैं, उनकी सुनने की क्षमता शहरी लोगों से बेहतर पाई गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक शहरों में रहने वाले लोग ज्यादा ऊंची फ्रीक्वेंसी की आवाजों को बेहतर सुन पाते हैं। शायद इसकी वजह शहरी शोर (जैसे गाड़ियों की आवाज) से खुद को बचाने की आदत हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक एक वयस्क यदि सप्ताह में 40 घंटे तक 80 डेसिबल (डीबी) से ज्यादा शोर में रहता है तो वो उसके लिए सुरक्षित नहीं है। देखा जाए तो 80 डेसिबल करीब-करीब एक दरवाजे की घंटी से होने वाली आवाज के बराबर है। हालांकि यदि शोर का स्तर इससे बढ़ता है, तो इसके संपर्क में सुरक्षित रहने की समय सीमा बड़ी तेजी से कम होने लगती है। दूसरी तरफ पहाड़ी या ऊंचाई वाले इलाकों में रहने वाले लोगों की सुनने की क्षमता कम दर्ज की गई। वैज्ञानिकों के मुताबिक जंगलों या उसके करीब रहने वाले लोगों में सुनने की शक्ति इसलिए अधिक हो सकती है क्योंकि वहां अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जानवरों या प्राकृतिक आवाजों पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी होता है। इसके अलावा वहां शोर या प्रदूषण भी कम होता है।
पहाड़ी इलाकों में ऑक्सीजन की कमी, हवा का कम दबाव, ऊंचाई पर ध्वनि का कम पहुंचना और अलग तरह की पर्यावरणीय चुनौतियां सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। अध्ययन के बारे में प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए प्रोफेसर टुरी किंग ने कहा, “यह पहले से ज्ञात है कि उम्र बढ़ने के साथ सुनने की क्षमता कम हो जाती है। साथ ही तेज आवाज और तंबाकू के धुएं जैसे रसायनों के संपर्क में आने से भी सुनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है।“
उनके मुताबिक हैरानी की बात है कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों के मुकाबले औसतन दो डेसीबेल बेहतर होती है। इसकी वजह गर्भ में विकास के दौरान शरीर में हार्मोनल बदलाव या कान की अंदरूनी बनावट में मामूली अंतर हो सकता है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि महिलाओं की सुनने की क्षमता ही नहीं, बल्कि आवाज पहचानने और उसे समझने की क्षमता भी पुरुषों से बेहतर है। इसका मतलब कि उनका दिमाग जानकारी को सुनकर बेहतर तरीके से प्रोसेस कर सकता है।
हालांकि इसके पीछे की वजह साफ नहीं है। शोधकर्ताओं का कहना है कि तेज आवाज या शोर से नींद में कमी, दिल की बामारियां जैसे कारणों से सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। ऐसे में शोर भरे वातावरण में सुनने की बहुत ज्यादा संवेदनशील क्षमता होना हर बार फायदेमंद नहीं होता।
ऐसे में अध्ययन दर्शाता है कि सिर्फ बढ़ती उम्र या बीमारी ही नहीं, बल्कि हमारे आसपास की दुनिया — शोर-शराबा, ऊंचाई, इलाका, भाषा और रहन-सहन भी हमारी सुनने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। यानी आने वाले समय में अगर सुनने की समस्याओं से निपटना है, तो पर्यावरण और जीवनशैली को भी समझना और उनमें सुधार लाना महत्वपूर्ण होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर हम सुनने की क्षमता पर पड़ने वाले इन तमाम कारकों के असर समझ लें, तो भविष्य में सुनने से जुड़ी बीमारियों का इलाज और बेहतर तरीके से किया जा सकेगा।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )