ललित मौर्या
वैश्विक स्तर पर बुजुर्गों में त्वचा संबंधी कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। इस बात का खुलासा चीन की चोंगकिंग मेडिकल यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में किया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह वृद्धि मुख्य रूप से उम्रदराज लोगों की बढ़ती संख्या के कारण हो रही है।
खास बात यह है कि यह बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को करीब दो गुना अधिक प्रभावित कर रही है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल जामा डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी से जुड़े आंकड़ों का उपयोग किया है। अध्ययन में उन्होंने 1990 से 2021 के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसका मकसद यह जानना था कि मेलानोमा, स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा और बेसल सेल कार्सिनोमा जैसे त्वचा कैंसर 65 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों को दुनियाभर में किस तरह प्रभावित कर रहे हैं।
गौरतलब है कि त्वचा संबंधी कैंसर इलाज के लिहाज से पहले ही सबसे महंगे कैंसरों में शामिल है। वहीं जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बुजुर्ग होती हो रही है, वैसे-वैसे सूरज की पराबैंगनी किरणों से होने वाला नुकसान भी बढ़ रहा है। पिछले शोधों से पता चला है कि त्वचा कैंसर के नए मामलों में करीब तीन-चौथाई मरीज 65 साल या उससे ज्यादा उम्र के होते हैं। हालांकि इस उम्र वर्ग में बीमारी के बढ़ते रुझान को लेकर वैश्विक स्तर पर आंकड़े अब भी बेहद सीमित हैं। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया के 204 देशों और क्षेत्रों को कवर किया है। साझा आंकड़ों से पता चला है कि 2021 में त्वचा कैंसर के करीब 44 लाख नए मामले सिर्फ बुजुर्गों में सामने आए थे।
स्टडी में यह भी सामने आया है कि स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा की दर 1990 से हर साल करीब दो फीसदी की दर से बढ़ी है, यानी यह दर 35 साल में करीब दोगुनी हो गई है। इसी तरह बेसल सेल कार्सिनोमा और मेलानोमा के मामले में लगातार बढ़ रहे हैं।
1990 की तुलना में 2021 में त्वचा कैंसर के लाखों नए मामले सामने आए है और इस बीमारी की वजह से हजारों लोगों ने अपने स्वस्थ जीवन वर्षों को खो दिया है। विश्लेषण के मुताबिक 2021 में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा ने इन तीनों तरह के कैंसरों में सबसे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। प्रति लाख लोगों पर करीब 237 लोग इस बीमारी से ग्रस्त पाए गए, जबकि मौतों के मामले में यह आंकड़ा 6.16 दर्ज किया गया। इसी तरह प्रति लोगों पर इसकी वजह से जीवन के 95.5 स्वस्थ वर्षों का नुकसान हुआ है।
पुरुषों में जोखिम दोगुना
वहीं दूसरी तरफ बेसल सेल कार्सिनोमा का प्रसार सबसे अधिक दर्ज किया गया। इसके प्रति लाख आबादी पर करीब 372 नए मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, त्वचा कैंसर का बोझ महिलाओं की तुलना में पुरुषों में करीब दोगुना है। इसके अलावा, विकसित देशों यानी जिन देशों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति कहीं बेहतर हैं वहां इस कैंसर के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया है कि पिछले 30 वर्षों में इस बीमारी से जुड़े मामलों में जो वृद्धि हुई है, वह सिर्फ उम्र बढ़ने की वजह से नहीं, बल्कि आबादी बढ़ने के कारण भी हुई है।
2050 तक जारी रह सकता है इनके बढ़ने का सिलसिला
अध्ययन में यह भी अंदेशा जताया गया है कि 2050 तक बेसल और स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा के मामले लगातार बढ़ते रहेंगे। हालांकि मेलानोमा के मामलों में कमी या स्थिरता आ सकती है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2021 में न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में मेलानोमा कैंसर के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए। वहां प्रति लाख लोगों पर 158 नए मामले सामने आए, जबकि कुल मरीजों की संख्या 1,165 प्रति लाख रिकॉर्ड की गई।
वहीं इससे होने वाली मौतों की दर 27.8 प्रति लाख रही। इतना ही नहीं इसकी वजह से प्रति लाख लोगों पर औसतन 502.2 स्वस्थ जीवन वर्षों का नुकसान इस बीमारी की वजह से हुआ है। इनके बाद समृद्ध देशों जैसे उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी, मध्य और पूर्वी यूरोप में भी मेलानोमा के मामले काफी ज्यादा रहे।
रिसर्च रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 1990 से 2021 के बीच पूर्वी एशिया में बेसल सेल कार्सिनोमा के मामलों में सबसे तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई। यहां सालाना मामलों की संख्या, कुल मरीजों और खोए हुए स्वस्थ जीवन वर्षों में 6 फीसदी से ज्यादा की औसत बढ़ोतरी हुई है।
अध्ययन से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक त्वचा संबंधी कैंसर दुनियाभर में बुजुर्गों, खासकर पुरुषों के लिए तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है। राहत की बात यह है कि इस बीमारी को काफी हद तक समय पर जांच और इलाज से रोका या ठीक किया जा सकता है। यह रिपोर्ट नीति-निर्माताओं, डॉक्टरों और आम जनता की यह समझने में मदद कर सकती है कि किन क्षेत्रों और लोगों में यह बीमारी सबसे तेजी से बढ़ रही है, ताकि समय रहते इसे नियंत्रित करने के कदम उठाए जा सकें।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )