विकास शर्मा
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो का बहुप्रतीक्षित अभियान चंद्रयान-3 जुलाई के महीने के बीच के सप्ताह में प्रक्षेपित किया जाएगा. पिछले अभियान चंद्रयान-2 के ही फॉलोअप अभियान में एक लैंडर और रोवर चंद्रमा पर भेजा जाएगा. यह अभियान इसरो के इतिहास में एक बड़े कदम के तौर पर दर्ज होगा.
भारत का इसरो अमेरिका में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के कारण सुर्खियों में इसरो नासा के साथ आर्टिमिस समूह में शामिल हो रहा है और साथ ही अगले साल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री भी पहुंचाने पर सहमति कायम हुई है. वहीं आर्टिमिस करार से चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण को क्या फायदा होगा इसकी भी चर्चा है. चंद्रयान-3 अगले महीने के मध्य में प्रक्षेपित किया जा सकता है. लेकिन चंद्रयान-3 इसरो के साथ भारत के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा. इसरो ने हाल ही में इसके लैंडर की तस्वीरें भी जारी की हैं.
चंद्रयान-3 में मूल रूप से एक लैंडर और एक रोवर होगा और इसे इसरो के लॉन्च व्हीलकल मार्क-3 सिस्टम के जरिए प्रक्षेपित किया जाएगा. यह सिस्टम लैंडर और रोवर को अपने प्रपल्शन मॉड्यूल में 100 किलोमीटर की ऊंचाई स्थित चंद्रमा की कक्षा तक ले जाने का काम करेगा. इस मॉड्यूल में स्पैक्ट्रो पोलरमैट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (शेप) नाम का उपकरण भी होगा.
चंद्रयान-3 वास्तव में चंद्रयान-2 का फॉलोअप अभियान है जिसका लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोवरिंग क्षमता का प्रदर्शन करना है. इसे श्रीरहिकोटा से 12 स 19 जुलाई के बीच में प्रक्षेपित किया जाएगा. चंद्रमा पर रोवर के जरिए वहां पर कुछ प्रयोग किए जाएंगे जिसमें चंद्रमा की मिट्टी का रासायनिक विश्लेषण शामिल है.
लैंडर में चंद्रा सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE) होगा जिसका कार्य चंद्रमा की सतह की ऊष्मीय सुचालकता और तापमान का मापन करना होगा. उसके साथ इंस्ट्रयूमेंट फॉर लूनार सीज्मिक एक्टिविटी (इल्सा) चंद्रमा की सतह की भूकंपीय गतिविधि का मापन करने का काम करेगा. लैंडर के साथ जा रहा लैंगम्युइर प्रोब (एलपी) चंद्रमा की प्लाज्मा घनत्व और उसकी विविधताओं का आंकलन करने का काम करेगा. इनके अलावा नासा पैसिव लेजर रेट्रोरिफ्लैक्टर ऐरे को भी इसमें जगह दी गई हैजिसे लूनार लेजर रेंजिंग अध्ययन किए जा सकें.
चंद्रयान-3 के साथ जा रहे रोवर में एल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पैक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) और लेजर इंड्यूज्ड ब्रेकडाउन स्पैक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस) लैंडिंग साइट के आसपास की रासायनिक संरचना के अध्ययन के लिए काम में आएंगे. इसमें चंद्रमा की मिट्टी की विश्लेषण भी शामिल है. रोवर कीसफलता चंद्रयान-3 के लिए बहुत अहम है क्योंकि 2019 में चंद्रयान-2 में रोवर की लैंडिंग ही नाकाम हो गई थी जिससे इसरो के रोवर से संबंधित प्रयोग टल गए थे.
अभियान की सफलता के लिए कई तकनीकों का उपगयोग किया जा रहा है जिसमें लेजर और अवरक्त तरंगों वाले ऑल्टीमीटर, वेलोसिमीटर कैमरा, इनर्शियल मापन केलिए एक्सेलोमैटर पैकेज, प्रपल्शन सिस्टम, नेवीगेशन गाइडेंस एंड कंट्रोल, हजार्ड डिटेक्शन एंड अवॉइडेंस , लैंडिंग लेग मैकेनिज्म का उपयोग किया जाएगा.
अभी तक केवल तीन ही देश चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल हो पाए हैं. सोवियत संघ, अमेरिका और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश हो जाएगा. इससे पहले 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 के तहत ऐसा प्रयास किया था जो नाकाम रहा था. इसरो की योजना चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों पर रोवर को उतारने की है. साल 2008 में भेजा गया चंद्रयान-1 एक अभियान ने चंद्रमा के ध्रुवों पर बर्फ की उपस्थिति का पता लगाया था.
(‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )