ललित मौर्या

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने पानी में आर्सेनिक प्रदूषण की पहचान के लिए एक नया उपकरण विकसित किया है। यह सेंसर प्रभावी होने के साथ-साथ बेहद किफायती भी है।

वैज्ञानिकों को भरोसा है कि यह तकनीक इंसानों और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन रहे आर्सेनिक से निपटने में मददगार साबित हो सकती है। इस अध्ययन से जुड़े नतीजे वैज्ञानिक जर्नल नैनोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में आईआईटी जोधपुर सहित मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और सामग्री अनुसंधान और इंजीनियरिंग संस्थान सिंगापुर से जुड़े शोधकर्ताओं ने भी अपना योगदान दिया है।

यह उपकरण खासतौर पर ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों के लिए बेहद उपयोगी है, जहां पीने के लिए सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह पहला ऐसा सेंसर है जो बिना किसी जटिल लैब उपकरणों या विशेषज्ञ तकनीशियन की मदद के, मौके पर ही सटीक और बार-बार दोहराए जा सकने वाले परिणाम देता है। गौरतलब है कि पानी में आर्सेनिक की मौजूदगी स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। यह बहुत कम मात्रा में भी त्वचा संबंधी कैंसर जैसी बीमारियां और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को पैदा कर सकता है।

क्यों खास है यह भारतीय सेंसर

देखा जाए तो अब तक आर्सेनिक की जांच के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपिक और इलेक्ट्रोकेमिकल तकनीकों का उपयोग होता रहा है, जो बेहद संवेदनशील जरूर हैं, लेकिन साथ ही यह बहुत महंगी और तकनीकी रूप से जटिल भी होती हैं। ऐसे में ये तकनीकें गरीब और दूरदराज के इलाकों के लिए व्यावहारिक नहीं हैं।

शोध से पता चला है कि आईआईटी जोधपुर द्वारा विकसित यह नया उपकरण आधुनिक तकनीक से पानी में आर्सेनिक आयन की बहुत कम मात्रा को भी तेजी से पहचान सकता है। यह सेंसर कितना प्रभावी है इसे इसी से समझा जा सकता है कि यह महज 3.2 सेकंड में 0.90 पार्ट्स पर बिलियन (पीपीबी) तक की आर्सेनिक की मात्रा को माप सकता है।

अपनी खोज पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता महेश कुमार ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “हमने इस सेंसर को आसान इस्तेमाल के हिसाब से बनाया है, ताकि दूर-दराज़ के लोग भी इसका लाभ उठा सकें।” उनके मुताबिक इसे एक सर्किट बोर्ड और ‘आर्डुइनो’ मॉड्यूल से जोड़ा गया है, जिससे यह तुरंत रियल टाइम में भी आंकड़े भेज सकता है। इसकी वजह से यह मौके पर ही जांच के लिए उपयुक्त बन जाता है।

उनका आगे कहना है, “हमारा मकसद आर्सेनिक से होने वाली बीमारियों और मौतों को कम करना और सभी को सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध कराना है।” जियोसाइंस फ्रंटियर्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि दुनिया में अभी भी 250 करोड़ से ज्यादा लोग पीने के पानी के लिए भूजल पर निर्भर हैं। भले ही भूजल को पीने के लिए सुरक्षित माना जाता है, लेकिन इसमें मौजूद आर्सेनिक जैसी भारी धातुएं स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती हैं।

शोध से पता चला है कि दुनियाभर में भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अब तक करीब 108 देशों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय मानकों (10 पीपीबी) से अधिक पाई गई है। इस अध्ययन के मुताबिक भारत के भी 20 राज्य और चार केंद्र शासित प्रदेश भूजल में आर्सेनिक की समस्या से प्रभावित हैं।

अध्ययन से पता चला है कि दुनिया में 23 करोड़ से ज्यादा लोग, जिनमें 18 करोड़ एशियाई हैं, आर्सेनिक प्रदूषित पानी के कारण खतरे में हैं। वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि लम्बे समय तक आर्सेनिक युक्त पानी पीने से स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

Spread the information