औद्योगिक गतिविधियों और ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रियाओं में बड़े पैमाने पर अपशिष्ट-ताप उत्सर्जित होता है। यह गर्मी वायुमंडल में अवशोषित हो जाती है। भारत में वैज्ञानिकों का एक समूह कुछ नए मेटेरियल्स पर काम कर रहा है जो इन प्रक्रियाओं से होने वाली कचरे की गर्मी को साकारात्मक उपयोग के लायक बना सकते हैं। 

कनिष्क बिस्वास और जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR) में शोधकर्ताओं की टीम ने कई नए स्मार्ट मटेरियल (आदर्श रासायनिक यौगिक) की पहचान की है जो कचरे की गर्मी यानी अपशिष्ट ताप से छोटे घरेलू उपकरणों, ऑटोमोबाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रमों को बिजली दे  सकते हैं।

जो मटेरियल अपशिष्ट-ताप को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सकते हैं, उन्हें थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स कहा जाता है। इन मटेरियल्स के एक सिरे को गर्म और दूसरे छोर को ठंडा किया जाता है जिससे ताप प्रवणता (ढलान) का निर्माण होता है, इस तरह इलेक्ट्रिक वोल्टेज उत्पन्न किया जाता है। 

इस थर्मोइलेक्ट्रिक प्रभाव के लिए तीन अलग-अलग गुणों के मटेरियल्स को एक खास मटेरियल में फिट किया जाता है। इसमें बहरीन विद्युत चालक धातुओं, विद्युत के अर्धचालक थर्मोइलेक्ट्रिक और कम तापीय चालकता वाले कांच को शामिल किया जाता है। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। वैज्ञानिक मटेरियल्स को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए कई तकनीकों का उपयोग करते हैं।

बिस्वास ने बताया, “मटेरियल्स को और अधिक प्रभावी बनाकर हम इलेक्ट्रॉनिक संरचना और नैनोस्ट्रक्चरिंग के मेरे मॉड्यूलेशन को अधिक प्रभावी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।” 

नए और प्रभावी थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स में देश को नए युग के टिकाऊ टेक्नोलजी के क्षेत्र में छलांग लगाने और देश के ‘नेशनल मिशन फॉर एन्हांस्ड एनर्जी एफिशिएंसी (NMEEE)’ की यात्रा को सुविधाजनक बनाने की क्षमता है। ‘नेशनल मिशन फॉर एन्हांस्ड एनर्जी एफिशिएंसी’ देश में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ राष्ट्रीय अभियानों में से एक है। यह कार्बन की निम्न अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करता है।

ये मटेरियल्स जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में भी योगदान कर सकते हैं। हाल ही में पेरिस समझौते के तहत प्रस्तुत किए गए भारत के निर्धारित महत्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को राष्ट्रीय स्तर पर सुविधाजनक बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स के उपयोग 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स को बेहद प्रभावी शीतलन (कूलिंग) और प्रशीतन (रेफ्रिजरेशन) में एनर्जी स्केवरिंग, सेंसिंग और थर्मोपावर सिस्टम में उपयोग किया जाता है। उनका उपयोग कुछ कारों के ‘सीट क्लाइमेट कंट्रोल सिस्टम’ में भी किया जाता है, जिसके तहत इंजन से निकलने वाली गर्मी से बिजली उत्पन्न करने के लिए थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरणों का उपयोग किया जाता है।

कनिष्क बिस्वास ने बताया, “थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स एक स्थायी ऊर्जा का विकल्प देते हैं। ऊर्जा के लिए लगातार बढ़ती मांग को मुख्य रूप से पृथ्वी के अक्षय स्रोतों का उपयोग करने से जोड़ा जाता है, जिसमें से छटांक भर (बहुत कम) हिस्से का उपयोग किया जाता है और 65% से अधिक गर्मी के रूप में बर्बाद हो जाता है। थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस पर्यावरणीय संकट और ऊर्जा की जरूरतों को कम करने का समाधान देते हैं। जैसा कि ये अपशिष्ट-ताप यानी कचरे की गर्मी का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए करते हैं, गर्मी की सर्वव्यापी प्रकृति को देखते हुए, थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस वैश्विक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। 

बड़े पैमाने पर अपशिष्ट-ताप पैदा करने वाले संस्थानों में बहु-संस्थागत सहयोग के माध्यम उद्योगों और घरेलू उपकरणों में उपयोग के लिए बेहतर-प्रदर्शन वाले थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स और उपकरणों का व्यवसायीकरण करने की कोशिश की जा रही है।

बिस्वास द्वारा विकसित किए गए बेहतर प्रदर्शन करने वाले मटेरियल्स के साथ, इंटरनेशल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेराल्लुर्ग्य एंड न्यू मैटेरियल्स (ARCI) से डी. शिवाप्रहसम एक स्केलेबल थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस पर टाटा स्टील के साथ काम कर रहे हैं। जो कम स्तर के अपशिष्ट-ताप को बिजली में परिवर्तित कर सकता है।

शिवाप्रहसम ने बताया, “हमने टाटा स्टील के सहयोग से एक थर्मोइलेक्ट्रिक डिवाइस के प्रोटोटाइप (मूलरूप) को विकसित किया है और इसका परीक्षण किया है। अब इसे स्केल-अप करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास (IITM) से एक स्टार्टअप के साथ काम कर रहे हैं। 

इन मटेरियल्स के शोध का अंतरिक्ष अभियानों में भी बड़ा महत्व है। इस तरह की ऊर्जा को रूपांतरित करने वाले थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स का उपयोग यूं. एस. नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) द्वारा उनके गहन अंतरिक्ष मिशन में रेडियोधर्मी प्लूटोनियम द्वारा उत्पन्न ताप की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिए किया गया था। जो 30 से अधिक वर्षों के लिए उपग्रहों के ऊर्जा का स्रोत हो सकता है, क्योंकि प्लूटोनियम का आधा जीवन लगभग 30 साल है।

अपने अंतरिक्ष अभियानों के लिए संगठन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के साथ काम कर रहा है। अंतरिक्ष में ऊर्जा के निरंतर स्रोतों के लिए इसरो की योजना कई अभियानों के साथ एक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की है। इसरो के आगामी अभियानों में द फर्स्ट इंडियन ह्युमन स्पेस फ्लाइट मिशन, गगनयान, द फर्स्ट इंडियन सोलार आब्जरवेटरी, अदित्य एल-1, द सेकेंड इंडियन स्पेस टेलिस्कोप, एक्स-रे पोलेरिमीटर सेटेलाईट, मंगलायान-2, इंडियाज सेकंड इंटरप्लेनेटरी मिशन टू मार्स, चंद्रयान-3, द लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन और वीनस ऑर्बिटर मिशन, और शुक्रयान शामिल हैं।    

इसे पूरा करने के लिए सभी उपग्रहों के डिजाइन और विकास के लिए इसरो का मुख्य केंद्र, उर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) एक रेडियोसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर (RTG) विकसित कर रहा है। आरटीजी एक प्रकार की परमाणु-संचालित बैटरी है जो उपयुक्त रेडियोधर्मी वस्तुओं के क्षय द्वारा उत्सर्जित ताप को बिजली में परिवर्तित करने के लिए थर्मोइलेक्ट्रिक का उपयोग करती है।

जबकि सामान्य उपग्रहों में, ऊर्जा उत्पादन के लिए भारी उपकरणों का उपयोग करने से उपग्रह भारी हो जाते हैं, आरटीजी सिस्टम कम भारी और बेहतरीन ईंधन वाले होते हैं और ये उपग्रह की यात्रा को तेज और सहज बनाते हैं। इसके अलावा, चूंकि यह सौर ऊर्जा पर काम नहीं करता है, इसलिए यह उपग्रह के जटिल पक्ष पर काम कर सकता है। इस तरह की तकनीक को कुशल स्वदेशी रूप से विकसित थर्मोइलेक्ट्रिक सामग्री के उपयोग की आवश्यकता होगी।

सेंटर फॉर ऑटोमोटिव एनर्जी मटेरियल्स (सीएईएम), आरसीआई के वैज्ञानिक आर. प्रकाश ने बताया, “भारत को थर्मोइलेक्ट्रिक सामग्रियों की दक्षता में सुधार करने और उन्हें लागत प्रभावी बनाने के लिए निर्माण के तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है।”

मटेरियल्स को प्रभावी बनाने की कोशिश 

जेएनसीएएसआर (JNCASR) के वैज्ञानिकों का समूह अकार्बनिक रासायनिक यौगिक के एक खास वर्ग जिन्हें सीसा, बिस्मथ, टिन, जर्मेनियम और नोबल मेटल्स के चालकोजेनिड्स के रूप में जाना जाता है, इनके थर्मोइलेक्ट्रिक गुणों के साथ काम करता है, वे कांच की तापीय चालकता और क्रिस्टल की विद्युत चालकता जैसी आंतरिक गुण-धर्म का पता लगाते हैं। वे उन मटेरियल्स का पता लगाते हैं जो अपनी खास संरचना से कांच में तापीय चालकता और क्रिस्टल में विद्युत चालकता पैदा करते हैं।

जर्नल ऑफ अमेरिकन केमिकल सोसाइटी में प्रकाशित एक हालिया पेपर में, शोधकर्ताओं ने तापीय परिवहन से जुड़े बेहतर प्रदर्शन करने वाले विभिन्न थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स में रासायनिक प्रक्रिया और रसायनिक संरचना की भूमिका को रेखांकित किया है। इस शोध के निष्कर्ष भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने वाली थर्मोइलेक्ट्रिक मेटेरियल्स के डिजाइन और निर्माण में मदद कर सकते हैं।

पिछले साल जर्नल साइंस में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने सिल्वर एंटीमनी टेलुराइड (AGSBTE2) में कैडमियम (CD) को एक प्रक्रिया के माध्यम से परिचय कराया जिसे डोपिंग के रूप में जाना जाता है। ताकि विद्युत परिवहन के गुणों को बढ़ाया जा सके, जिससे मटेरियल्स और बेहतर बनता है।

जबकि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित अधिकांश प्रभावी थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स में प्रमुख घटक तत्व के रूप में सीसा का उपयोग किया जाता है, इस वजह आम बाजार में इसके उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है। AGSBTE-2 सीसे से मुक्त था और इसलिए इसके विषाक्त पर्यावरणीय परिणाम नहीं थे। इसकी वजह से थर्मोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स पर शोध में एक अहम बदलाव आया है। शोधकर्ता विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के नेटवर्क के साथ काम करते हैं।

नेटवर्क में जेएनसीएएसआर (JNCASR) से थ्योरिटिशियन (सिद्धांतकार) उमेश वी वाघमारे, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISC) से अभिषेक सिंह, आईआईटी मंडी से अजय सोनी, जो नए मटेरियल्स

 की संरचना का अध्ययन करने के लिए रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी पर काम करते हैं। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) से शोवित भट्टाचार्य और आरसीआई (ARCI) से डी. शिवप्राहसम, नए मटेरियल्स को उपकरणों में रुपांतरी करते हैं। टीम में विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञ इस तरह की नई ऊर्जा बचत की स्मार्ट मटेरियल्स के विकास में मदद करते हैं।

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