विकास शर्मा
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन कई अनोखी खूबियों वाली मानव कृति है. यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अभूतपूर्व मिसाल है जिसके जरिए वैज्ञानिक बहुत सारे अंतरिक्ष अभियानों को सफल बना पाए हैं और भविष्य के अभियानों को संभव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. यह अंतरिक्ष में भेजी गई इंसान की सबसे भारी वस्तु है और इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि इसका उम्मीद से कहीं ज्यादा समय तक अब भी चलते रहना है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन दुनिया की मानव निर्मित सबसे अनोखी वस्तुओं में से एक है. कई देशों के सहयोग से बना एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना है जिसने वैज्ञानिक शोध के जरिए अंतरिक्ष और सूक्ष्मगुरुत्व को समझने में वैज्ञानिकों की बहुत अधिक मदद की है. पिछले कई सालों से यह लंबे मानव अंतरिक्ष अभियानों की तैयारी के लिए किए जाने वाले प्रयोगों के लिए जाना जाता रहा है. और इसमें कई बड़ी सफलताएं भी दिलावाई हैं. इनमें सबसे प्रमुख इंसानी शरीर पर अंतरिक्ष के वातावरण में लंबे समय तक प्रभावों का अध्ययन प्रमुख है. आज यह अनुपम मानव निर्मित कृति कई खूबियों के लिए जाना जाता है.
पांच स्पेस एजेंसी और 15 देशों का सहयोग
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बनाने के विचार पर 1980 के दशक से ही काम करना शुरू हो गया था. जिसके बाद 20 नवंबर 1998 में इसका प्रक्षेपण हो सका था. यह दुनिया के पांच स्पेस एजेंसी- अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा, कनाडा की स्पेस एजेंसी सीएसए, रूसी स्पेस एजेंसी रोसकोसमोस, जापानी स्पेस स्पेस एजेंसी जाक्सा, और यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईसा और 15 देशों के के सहयोग से बनी एक बहुत ही बड़ी परियोजना है.
एक बहुत ही बड़ी और लंबी परियोजना
एक बहुत ही बड़ी परियोजना है. इसकी परिकल्पना 1980 के दशक में सबसे बनी थी. स्पेस स्टेशन फ्रीडम के तहत दुनिया की प्रमुख स्पेस एजेंसियों ने आपस में सहयोग करने पर काम करना शुरू किया था. लेकिन इस परियोजना का अमली जामा 1990 के दशक में पहनाया जाने लगा जिसके नतीजे में पांच स्पेस एजेंसी के इस कार्यक्रम का पहला प्रक्षेपण 20 नवंबर 1998 में हुआ. लेकिन स्टेशन को पूरी तरह से तैयार होने में साल 2011 तक का वक्त लगा था. पहले इसकी केवल 15 साल की योजना रखा गया था, लेकिन यह उससे कहीं लंबी होती चली गई.
लगातार विकसित होता रहा ये स्टेशन
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की खासियत यह है कि यह लागतार निर्मित होता रहा, विकसित होता रहा. यह ऐसी कृति है जिसमें एक बार किसी सैटेलाइट को बना कर छोड़ देने का काम नहीं हुआ. पहले प्रक्षेपण में तीन रूसी अंतरिक्ष यात्री इस पर पहुंचे थे. बाद में इसके कई हिस्से जुड़ते चले गए और विभिन्न स्पेस एजेंसियों ने अलग अलग हिस्सों के रखरखाव की जिम्मेदारी ले रखी है.
16 सूर्योदय और सूर्यास्त
आज इस स्टेशन में इतने हिस्से जुड़ चुके हैं कि इसका वजह 4.5 लाख किलोग्राम हो चुका है. और यह 27,600 किलोमीटर प्रति घंटा की दर से पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है. यह एक चक्कर केवल 90 मिनट में लगा लेता है और इस वह से यहां के अंतरिक्ष यात्री दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देख पाते है, जबकि पृथ्वी की सतह पर 24 घंटों में केवल एक ही बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखा जा सकता है.
माइक्रोग्रैविटी की चुनौती
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सबसे अधिक प्रयोग माइक्रोग्रैविटी यानी की सूक्ष्मगुरुत्व के ही हुए हैं. यही अंतरिक्ष में रहने में इंसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी है और इसी वजह से यहां रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को रोज खा तरह की कसरत करनी होती है जिससे उन्हें यहां के माहौल में समय गुजारने में परेशानी ना हो. आज यहां अंतरिक्ष यात्रियों को छह महीने से लेकर एक साल तक के समय के लिए भेजा जाता है. इसके लिए उन्हें बहुत कड़े प्रशिक्षण से गुजरना होता है.
अब तक की सबसे महंगी चीज
यह संभवतः दुनिया की ऐसी वस्तु है जो अब तक की सबसे महंगी निर्मित वस्तु हो गई है. बताया जाता है कि 2010 तक इसकी लागत पहले ही 150 अरब डॉलर तक पहुंच गई थी जिसमें अमेरिका का 58.7 अरब डॉलर, रूस का 12 अरब डॉलर, जापान और यूरोप का 5 अरब डॉलर और कनाडा का 2 अरब डॉलर खर्च हो गया था. इसमें अंतरिक्ष यात्रियों को लाने और ले जाने का खर्चा अलग है जो कि कम नहीं है.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर कई अनोखे प्रयोग हुए हैं जिनमें इंसान की सेहत से लेकर अंतरिक्ष में सलाद ऊगाने की प्रयोग तक शामिल हैं. इसके जरिए ही वैज्ञानिकों को पता चल रहा है कि इंसान पर लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने का क्या असर होता है यह जानकारी भविष्य के लंबे अंतरिक्ष अभियानों में काम आएंगे. यहां अब तक 250 अंतरिक्ष यात्री ठहर चुके हैं यहां एक रोबोट अंतरिक्ष यात्री भी रहता है. इसके 2030 तक काम करते रहने की संभावना है. लेकिन जब यह काम करने बंद कर देगा तो इस पृथ्वी की निचली कक्षा से आगे धकेलने योजना पर काम कर चल रहा है.