प्रिया गौतम

कम वजन के साथ पैदा होने वाले नवजात बच्‍चों के लिए नियोनेटल केयर यूनिट से भी ज्‍यादा मां का साथ जरूरी है. डब्‍ल्‍यूएचओ फंडेड स्‍टडी में खुलासा हुआ है कंगारू मदर केयर, एनआईसीयू से ज्‍यादा फायदेमंद है और इससे बच्‍चों की मृत्‍यु दर में गिरावट के साथ ही बेहतर रिकवरी देखी गई है.

मां भगवान होती है या मां का स्‍पर्श बच्‍चे के लिए बेस्‍ट हीलिंग टच होता है, ये बातें आपने भी सुनी होंगी. लेकिन अब इस बात को विज्ञान भी मान गया है. हाल ही में डब्‍ल्‍यूएचओ फंडेड पांच देशों में की गई स्‍टडी में सामने आए नतीजों से साइंस भी हैरान है. मां के स्‍पर्श और मां के नजदीक रहने की वजह से नवजात बच्‍चों में मृत्‍यु दर में कमी देखी गई है. इतना ही नहीं कम वजन के साथ पैदा हुए बच्‍चों के स्‍वस्‍थ होने और वजन हासिल करने की क्षमता भी 25 से 30 प्रतिशत बढ़ी हुई देखी गई है.

दिल्‍ली के सफदरजंग अस्‍पताल की ओर से दी गई जानकारी में बताया गया कि अंडरवेट पैदा होने वाले बच्‍चों के लिए नियोनेटल केयर यूनिट यानि एनआईसीयू से भी ज्‍यादा फायदेमंद कंगारू मदर केयर यानि एनएनआईसीयू को पाया गया है. एनआईसीयू या एमएनआईसीयू में से अंडरवेट नवजात बच्‍चों के लिए क्‍या फायदेमंद है, इस पर की गई स्‍टडी के लिए भारत के सफदरजंग अस्‍पताल के नियोनेटल वॉर्ड को चुना गया था. जिसमें एनआईसीयू बेड्स के अलावा और कंगारू मदर केयर के लिए बच्‍चों के बेड के साथ ही मां के बेड भी लगाए गए.

स्‍टडी में पाया गया कि 1 किलो से लेकर 1.8 किलोग्राम तक के नवजात बच्‍चों की गंभीर हालत में, जब उनकी मांओं को उनके पास 24 घंटे रखा गया तो बच्चों के ठीक होने की संभावना 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़ गई. जबकि एनआईसीयू में मां के संपर्क से दूर रहने वाले बच्‍चों पर ऐसा प्रभाव नहीं देखा गया.

अध्‍ययन के तहत केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से सफदरजंग अस्पताल में 15 बेड पर नियोनेटर केएमसी यानि कंगारू मदर केयर की सुविधा दी गई. अस्पताल की एमएस डॉ वंदना तलवार और आईसीएमआर के निदेशक डॉ राजीव बहल ने 5 अगस्त 2023 को सफदरजंग अस्पताल में मदर नियोनेटल आईसीयू का औपचारिक उद्घाटन भी किया. जिसमें बच्‍चे की मां बच्‍चे के साथ 24 घंटे रह सकती थी. इसके लिए कंगारू मदर केयर में यह भी सुनिश्चित किया गया कि ढाई किलोग्राम से कम वजन के नवजात को बिना किसी बाधा के मां का दूध मिलता रहे.

इसके 3 महीने बाद जो नतीजे आए वे काफी चौंकाने वाले थे. जो बच्‍चे कंगारू मदर केयर में मां के साथ थे, वे जल्‍दी ठीक हुए और उनके ठीक होने का प्रतिशत ज्‍यादा था. जबकि सामान्‍य एनआईसीयू में रहने वाले बच्‍चों में मृत्‍यु दर ज्‍यादा देखी गई.

वजन कम होने पर ये होती है दिक्‍कत
सफदरजंग अस्पताल की ओर से बताया गया कि कम वजन के साथ पैदा होने वाले शिशुओं में अक्‍सर सांस लेने में दिक्कत या हाइपोथर्मिया, सेप्सिस या संक्रमण की संभावना ज्‍यादा होती है. इसके लिए नवजात शिशुओं को तुरंत राहत देने के लिए नियो नेटल इंटेसिव केयर यूनिट में रखा जाता है जहां उसका इलाज तो होता है लेकिन वह मां से दूर होता है. जबकि कंगारू मदर केयर में मां बराबर उसके पास रहती है और उसे स्‍तनपान से लेकर अपना स्‍पर्श देती है.

सफदरजंग में बढ़ाए गए कंगारू मदर केयर बेड्स
बता दें कि सफदरजंग अस्पताल में हर महीने 150 से 200 नवजात बच्‍चे इलाज के लिए यूपी, हरियाणा, पंजाब, बिहार, राजस्थान से रेफर होकर आते हैं. ऐसे में यहां एनएनआईसीयू में बेड की संख्या जनवरी महीने में बढ़ाकर 40 कर दी गई. जिसका असर यह हुआ कि बीते तीन महीने में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर मात्र 16 प्रतिशत रह गई जबकि पहले नवजात शिशु मृत्यु दर 30 से 40 प्रतिशत थी.

        (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )

Spread the information