विकास शर्मा
अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चंद्रयान-1 के आंकड़ों का अध्ययन कर पाया है कि चंद्रमा पर पानी की उपस्थित में पृथ्वी के उच्च वायुमंडलीय प्रक्रियाओं की भूमिका हो सकती है. शोध में पाया गया है कि पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड और सौर पवनों की अंतरक्रिया के कारण उच्च ऊर्जा के महीन कणों के प्रवाह के कारण ही चंद्रमा पर पानी के निर्माण कि स्थितियां बनी है.
चंद्रमा पर पानी के होने का बहुत अधिक महत्व है. आने वाले समय में चंद्रमा पर जाने वाले मानव अभियान के यह जानकारी होना बहुत ही जरूरी है कि वहां पानी किस रूप में, कितनी मात्रा में कहां कहां मौजूद है. इसके अलावा वहां पर पानी का स्रोत क्या है यानि पानी वहां कैसे आया. क्या उसका चंद्रमा पर ही कुछ पुरानी प्रक्रियाओं द्वारा निर्माण हुआ था या अब भी हो रहा है. साल 2008 में भारत के चंद्रयान 1 ने खुलासा किया था कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी बर्फ के रूप में हैं. अब अमेरिकी अध्ययन ने उसी के आंकड़ों से खुलासा किया है कि यह पानी पृथ्वी की प्लाज्मा शीट की वजह से वहां पहुंचा है.
चंद्रमा के मौसम पर असर
चंद्रमा पर इंसानों को भेजने की कवायद पर तेजी से काम चल रहा है. नासा के आर्टिमिस अभियान के तहत चंद्रमा पर पानी की तलाश शिद्दत से हो रही है. इसलिए अमेरिका में चंद्रमा पर शोधकार्य भी खूब हो रहे हैं. नए अध्ययन में मानोआ में यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि पृथ्वी की प्लाज्मा शीट के उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन चंद्रमा के मौसम को बहुत प्रभावित करते हैं.
काफी कुछ योगदान
शोधकर्ताओं का कहना है कि पृथ्वी की यही प्रक्रिया ही चंद्रमा पर पानी की निर्माण की प्रक्रिया में बड़ी भूमिका निभा रही है. यह संबंध चंद्रमा पर उन इलाकों मे जहां सूर्य की किरणें नहीं पहुंच रही हैं, वहां बर्फीले पानी के होने पर काफी रोशनी डाल सकता है. इस पूरी प्रक्रिया में सूर्य की सौरपवनों के साथ पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड की अंतरक्रिया से ही प्रक्रियाएं होती हैं.
मैग्नेटोस्फियर और सौर पवनें
पृथ्वी के चारों ओर एक चुंबकीय बल का क्षेत्र होता है जिसे मैग्नेटोस्फियर कहते हैं जो पृथ्वी की अंतरिक्ष से आने वाले हानिकारक विकरणों से रक्षा करता है. सूर्य से आने वाली सौर पवनें जो कि आवेशित कणों की धाराएं होती है इस मैग्नेटोस्फियर को प्रभावित करते हैं. इससे पृथ्वी के रात वाले हिस्से में एक लंबी पूंछ जिसे मैग्नेटोटेल कहते हैं बनती है, जो वास्तव में एक प्लाज्मा शीट होती है.
चंद्रमा के मौसम पर
इसी प्लाज्मा शीट में उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन और आयनीकृत महीन कण होते हैं जो पृथ्वी और सौर पवन से निकलते है. इसी से चंद्रमा का मौसम प्रभावित होता है. सौर पवन में प्रोटोन जैसे उच्च आवेशित कण होते हैं और ये ही चंद्रमा पर पानी बनाने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं. शोध के प्रमुख लेखक शुआई ली पहले इस बात को रेखांकित कर चुके हैं कि कैसे पृथ्वी के मैग्नेटोटेल चंद्रमा के ध्रुवीय इलाकों के लोहे में जंग लगाने में योगदान देती है.
मैग्नेटोटेल के अंदर और बाहर
उसी पड़ताल को आगे बढ़ाते हुए ली का यह जानने का प्रयास था कि जब चंद्रमा पृथ्वी की मैग्नेटोटेल से होकर गुजरता है तो तब उसके मौसम पर क्या असर होता है. यह क्षेत्र चंद्रमा को सौर पवनों से तो बचा लेता है, लेकिन सूर्य की रोशनी को नहीं रोकता है. ली बताते हैं कि मैग्नटोटेल एक तरह से प्राकृतिक प्रयोगशाला की तरह काम करती है. जब चंद्रमा उसके बाहर होता है तो चंद्रमा पर सौर पवनों की बारिश होती है, लेकिन जब वह मैग्नेटोटेल के अंदर होती है तो सौर पवन का प्रभाव काफी कम हो जाता है.
एक बड़ा अंतर
मैग्नटोटेल के प्रभाव से बाहर होने पर ही पानी के निर्माण की प्रक्रिया धीमी हो जाती होगी. चंद्रयान-1 के आंकडों के विश्लेषण से पता चला कि पृथ्वी की मैग्नेटोटेल के अंदर पानी तभी बनता है जब चंद्रमा उससे बाहर होता है. इससे पता चलता है कि पानी के निर्माण का कोई ऐसा स्रोत है जिसका सौर पवनों के प्रोटोन से कोई संबंध नहीं है. वास्तव में मैग्नेटोटेल के अंदर उच्च ऊर्जा कणों पर विकिरण का प्रभाव वैसा ही था जैसा कि सौर पवन के प्रोटोन का होता है.
इससे साफ पता चलता है कि पृथ्वी और चंद्रमा एक दूसरे से कितनी मजबूती से जुड़े हुए हैं. ली को उम्मीद है कि नासा के आर्टिमिस कार्यक्रम से जुड़ पाएंगे जिससे वे प्लाज्मा वातावारण और चंद्रमा की सतह पर पानी की निगरानी कर सकें जब चंद्रमा पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरता है. नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित अध्ययन में पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की गतिकी प्रक्रियाओं को रेखांकित करता है.