मस्तिष्क पर हुए नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि उल्टी के दौरान वह कैसे काम करता है. शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि पेट में गैर जरूरी पदार्थ को पहचानने के बाद कैसे दिमाग सक्रिय होकर पेट से लेकर मुंह तक के अंगों का क्रियाशील कर उल्टी की प्रक्रिया पूरी करता है. इससे उल्टी के उपचार के लिए सही दवा खोजने में भी मदद मिलेगी.

हमारे शरीर की हर क्रिया मस्तिष्क से ही संचालित होती है. सामान्य शारीरिक गतिविधियों पर तो वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क पर बहुत से शोधकार्य किए हैं. लेकिन फिर भी दिमाग की असमान्य स्थितियों में प्रतिक्रिया भी अलग से ही अध्ययन का विषय है. जब हम दूषित भोजन करते हैं, तब उसमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया आदि उल्टी की प्रक्रिया के जरिए बाहार निकलते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को बारीकी से समझने के लिए वैज्ञानिकों की एक टीम ने चूहों में पेट से लेकर दिमाग तक  इसी तरह की प्रक्रिया का गहन अध्ययन किया.

चूहे उल्टी नहीं करते फिर भी
चूहे वास्तव में उल्टी करते ही नहीं हैं, शायद इसकी वजह उनके शरीर का आकार और उनके  कमजोर मांसपेशियां हैं. लेकिन उन्हें उबकाई जरूर आती है जो उनके अंदर विषाक्त भोजन के संक्रमण का जैविक संकेत होता है और इसी का अध्ययन शोधकर्ताओं के लिए काफी था. जिसके जरिए वे इंसान में उल्टी की प्रक्रिया को समझ सके.

उबकाई और उल्टी
बीजिंग के नेशनल इस्टीट्यूट ऑप बायोलॉजिकल साइसेस के न्यूरोबायोलॉजिस्ट पेंग काओ बताते हैं कि उबकाई का जो तंत्रिका प्रक्रिया है वह उल्टी की तंत्रिका प्रक्रिया की ही तरह होती है.  इस प्रयोग में उन्होंने चूहों में विषाक्त द्वारा उबकाई की स्थितियां पैदा की जिससे वे इन विषाक्त पदार्थों से निपटने केलिए दिमाग के रक्षात्मक प्रतिक्रियाओं को समझ सके.

क्या किया अध्ययन में
शोधकर्ताओं को दिमाग की इस प्रक्रिया को आणविक और कोशिकीय स्तर पर समझने का मौका मिला. चूहों को बैक्टीरिया विषाक्त स्टैफिलोकोकल एन्टरोटॉक्सिन (SEA) का सैंपल दिया जो स्टैफिलोकोकस औरेअस से पैदा होता है और उससे इंसानों में भी भोजन के जरिए पैदा होने वाली बीमारी होती है.

कौन से अंग होते हैं सक्रिय
शोधकर्ताओं ने पाया कि इससे जानवरों का मुंह असामान्य रूप से खुल जाता है और डायफग्राम और पेट की मांसपेशियों में सिकुड़न भी होती है. इस तरह की प्रक्रिया उन्हें कुत्तों में भी उल्टी के दौरान देखने को मिली थी. उन्होंने चूहों में इस प्रक्रिया को फ्लोरोसेंट लेबलिंग के जरिए अध्ययन किया जिसमें पाया कि न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन के निकलने से आंतें सक्रिय हुई.

तंत्रिका और न्यूरॉन
सेरोटोनिन एक रासायनिक प्रक्रिया को शुरू करता है जिससे वेगस तंत्रिका के जरिए एक संदेश जाता है. यह तंत्रिका पेट और दिमाग के बीच संपर्क के तार के रूप में कार्य करती है. इसके जरिए वह मस्तिष्क में Tac1+DVC न्यूरॉन से जुड़ती है. शोधकर्ताओं ने जब इस न्यूरॉन को कृत्रिम तरीके से निष्क्रिय किया तो उन्होंने पाया कि उबकाई की गतिविधि में कमी आ गई है.

बेहतर दवाओं की संभावना
ऐसा ही कुछ मतली (नोजिया) में भी होता है. जब किसी कैंसर मरीज को कैमियोथेरेपी मे किसी को डॉक्सोरूबिसिन नाम की दवाई दी जाती है तब भी उसे ऐसी  ही मतली महसूस होती है. जब Tac1+DVC न्यूरॉन को बंद किया जाता है या फिर सेरोटोनिन का उत्पादन रोका जाता है तो चूहों की उबकाई बहुत कम हो जाती है. काओ का कहना है कि इस अध्ययन से हम मतली और उल्टी की प्रणाली को आणविक और कोशिकीय स्तर पर समझ कर बेहतर दवाएं बना सकेंगे.

एन्ट्रोक्रोमाफिन कोशिकाएं से बनी आंतों के ऊतक पेट में सेरोटोनिन निकलने के लिए जिम्मेदार होते हैं. और वहीं शोधकर्ताओं ने पाया है कि भविष्य के अध्ययन यह बता सकते हैं कि विषाक्त कैसे इन कोशिकाओं को उल्टी की प्रक्रिया को सक्रिय करते हैं. इस अध्ययन से वैज्ञानिकों को विषाक्त भोजन और कीमियोथेरेपी दोनों के प्रभावों को समझने में मदद मिलेगी. इन नतीजों को मानवों में होने वाली प्रक्रियाओं के लिहाज भी अध्ययन करना जरूरी है.

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