विकास शर्मा

बच्चों का मोबाइल, टैबलेट और टीवी स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है. जापान में हुए अध्ययन में पाया गया है कि स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने का खराब असर पड़ता है. पाया गया कि बच्चों का ज्यादा बाहर खेलना इसके बुरे असर को बहुत हद तक कम कर सकता है.

छोटे बच्चों के माता पिता आमतौर पर इस बात से चिंतित होते हैं कि वे स्क्रीन, चाहे कम्प्यूटर, टीवी, टेबलेट्स या मोबाइल की हो, ज्यादा समय बिताते हैं. वे इस बातसे भी परेशान होते हैं की स्क्रीन पर समय बिताने से उनके विकास पर कितना विपरीत असर होता होगा और क्या ऐसा तरीका है जिससे उसका नाकारात्मक प्रभाव कम किया जा सके. ओसाका यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओ ने खोजा है कि युवा मस्तिष्क में स्क्रीन टाइम के हानिकारक प्रभावों को कम करना वैसा ही हो सकता है जैसे कि बच्चों को घर के बाहर खेलने के लिए प्रेरित करना.

किन क्षमताओं पर होता है असर
हाल ही में जापान में हुए अध्ययन में पाया गया है कि 2 साल की उम्र में ज्यादा स्क्रीन समय होने का चार साल की उम्र तक कमजोर संचार और व्यवहारिक क्षमताओं से संबंध है. लेकिन जब बच्चों को घर के बाहर खेलने में लगाया जाता है तो स्क्रीन टाइम के कुछ नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है. JAMA पीडियाट्रिक्स में मार्च में प्रकाशित होने वाले इस अध्ययन में 885 बच्चों को शामिल किया गया जिनकी उम्र 18 महीनों से लेकर 4 साल तक की थी.

तीन कारकों की पड़ताल
शोधकर्ताओं ने तीन अहम कारकों के बीच संबंध की पड़ताल की. पहला, दो साल की उम्र पर औसत दैनिक स्क्रीन समय कितना है, दो साल की उम्र के बच्चे घर बाहर कितने समय तक खेलते हैं और तीसरा, तंत्रिकाविकास के नतीजे,  जिसमें विशेष तौर पर संचार, दैनिक जीवन की क्षमताएं और सामाजीकरण या समूहीकरण अंक शामिल हैं, जिन्हें चार साल की उम्र में मानकीकृत वाइनलैंड अडाप्टिव बिहेवियर स्केल 2 के आंकलन उपकरण के जरिए मापा गया.

ज्यादा स्क्रीन समय के नुकसान
ओसाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक केंजी जे सुचिया ने बताया कि हालाकि संचार और दैनिक जीवन क्षमताएं दोनों ही 4 साल की उम्र के बच्चों में खराब थी जिनका 2 साल की उम्र में स्क्रीन समय ज्यादा था, बाहर खेलने वाले समय का इन दो तंत्रिकाविकास के इन दो नतीजों पर बहुत ही अलग प्रभाव पड़ा.

सभी क्षमताओं पर एक सा असर नहीं
उन्होंने बताया कि शोधकर्ता इस बात से हैरान थे कि संचार के मामले में बाहर खेलने से स्क्रीन के समय के नाकारात्मक समय के प्रभाव नहीं बदले, लेकिन इससे दैनिक जीवन की क्षमताओं पर जरूर असर पड़ा. खास तौर दैनिक जीवन क्षमताओ पर स्क्रीन टाइम के प्रभावों का करीब 20 फीसद हिस्सा बाहर खेलने कम हो गया जिसका मतलब यह है कि बाहर खेलने के समय स्क्रीन के समय को नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है.

तंत्रिकाविकास के लिए जरूरी
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जहां सामाजीकरण, जिसका स्क्रीन समय से कोई संबध नहीं था, उन चार साल के बच्चों में बेहतर था जिन्होंने दो साल 8 महीने की उम्र में बाहर खेलने में ज्यादा समय बिताया है. इस अध्ययन की वरिष्ठ लेखक तोमोको निशमूरा का कहना है कुल मिलाकर पड़ताल दर्शाती है कि स्क्रीन का समय कम करना बच्चों के तंत्रिकाविकास के लिए वास्तव में बहुत जरूरी है.

केवल इतना करना भी काफी
निशिमूरा कहती हैं कि उन्होंने यह भी पाया कि स्क्रीन टाइम का समाजिक नतीजों से संबंध नहीं है और यह भी कि यदि स्क्रीन टाइम ज्यादा भी हो तो केवल घर के बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करने से ही बच्चे सहेतमंद रह सकते हैं और उनका ठीक से विकास हो सकता है. ये नतीजे हाल ही में कोविड-19 महामारी के माहौल के लिहाज से बहुत अहम है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड महामारी में दुनिया भर में हुए लॉकडाउन लगा था जिससे बच्चों का बाहर निकलना तक नामुमकिन हो गया था. इतना ही नहीं तब बहुत सारे स्कूलों ने बच्चों के लिए आनलाइन क्लासेस चलाई थीं जिससे बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया था क्योंकि डिजिटल उपकरणों का उपयोग बच्चों के लिए भी रोकना मुश्किल हो गया था.अब इस बात पर भी शोध हो रहा है कि स्क्रीन टाइम के जोखिम और लाभ को कैसे संतुलित किया जा सकता है.

   (‘न्यूज 18 हिन्दी’ से साभार )

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