ललित मौर्या

नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया में 15 वर्ष से कम उम्र के 140 करोड़ बच्चे सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के फायदों से वंचित हैं। ऐसे में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से यह दूरी उन्हें बीमारी, कुपोषण, अशिक्षा, असमानता और गरीबी के भंवर जाल में धकेल सकती है।

विडम्बना देखिए कि इस मामले में कमजोर देशों में रह रहे बच्चों की स्थिति कहीं ज्यादा खराब है, जहां 90 फीसदी से ज्यादा बच्चे सरकारों से बच्चों को मिलने वाले फायदों से दूर हैं। यह आंकड़े अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ द्वारा जारी किए गए हैं, जो समृद्ध देशों की तुलना में एक बड़े अंतर को उजागर करते हैं।

गौरतलब है कि बच्चों को दिए जाने वाले यह लाभ सामाजिक सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण रूप है, जिनका उद्देश्य दीर्घावधि में बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करना है। यह लाभ चाहे नकद तौर पर दिए जाएं या टैक्स क्रेडिट के रूप में, वे गरीबी को कम करने के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल, पोषण, शिक्षा, पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, ये लाभ खासतौर पर संकट के समय में सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देते हैं।

मौजूदा समय में देखें तो अनेकों बच्चे गरीबी से बचने के लिए आवश्यक बुनियादी संसाधनों और सेवाओं से दूर हैं, जो उन्हें भूख और कुपोषण के दलदल में धकेल रहा है। इतना ही नहीं यह दूरी बच्चों को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोक रही है। ऐसे में तीनों संगठनों ने सभी देशों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि सभी बच्चों को इन सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का फायदा मिल सके।

आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 14 सालों में वैश्विक स्तर पर इस स्थिति में मामूली सुधार जरूर हुआ है। जहां 2009 में 20 फीसदी बच्चों को इन योजनाओं का फायदा मिल रहा था। वहीं 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 28.1 फीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि इसके बावजूद आज भी करीब 72 फीसदी बच्चे इन योजनाओं के फायदों से वंचित हैं।

इतना ही नहीं जो प्रगति हुई है उसमें भी बेहद असमानता है। एक तरफ जहां कमजोर देशों में 15 वर्ष से कम आयु के केवल नौ फीसदी बच्चे को ही सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। वहीं अमीर देशों में इन योजनाओं के दायरे में आने वाले बच्चों का आंकड़ा 84.6 फीसदी दर्ज किया गया है। इस बारे में आईएलओ के सामाजिक सुरक्षा विभाग की निदेशक शाहरा रजवी का कहना है कि यह उन करीब 100 करोड़ बच्चों और उनके देशों के लिए खतरा है जो सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे से बाहर हैं।

ऐसे में उनके मुताबिक इस अंतराल को कम करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाने की तत्काल आवश्यकता है। उनका यह भी कहना है कि इसकी कवरेज और प्रगति में क्षेत्रीय असमानताएं चिंताजनक हैं। उनके अनुसार अधिकांश क्षेत्रों में इस मामले में थोड़ी बहुत प्रगति हुई है हालांकि इसके बावजूद बहुत सारे बच्चे पीछे छूट गए हैं।

बता दें कि इस अंतराल को भरने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ), सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ ने ग्लोबल ‘चाइल्ड बेनिफिट ट्रैकर’ नामक टूल भी जारी किया था। आंकड़ों की माने तो यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक स्तर पर करीब 82.9 करोड़ बच्चे ऐसे घरों में रह रहे हैं, जिनकी दैनिक प्रति व्यक्ति आय 3.65 अमेरिकी डॉलर से कम है और बाल गरीबी को दूर करने की दिशा में हो रही प्रगति काफी हद तक रुकी हुई है।

जलवायु संवेदनशील क्षेत्रों में कहीं ज्यादा खराब है स्थिति

यदि क्षेत्रीय तौर पर देखें तो इसमें मौजूद असमानता साफ तौर पर देखी जा सकती है। आंकड़ों के मुताबिक जहां पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र 2009 के दौरान करीब  9.2 फीसदी बच्चे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में थे।

वहीं 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 16 फीसदी पर पहुंच गया। इसी तरह पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में यह कवरेज 9.6 फीसदी से बढ़कर 12.3 फीसदी पर पहुंची है। पश्चिम और मध्य अफ्रीका में जहां यह आंकड़ा महज 3.1 फीसदी था वो बढ़कर 2023 में 11.8 फीसदी पर पहुंच गया है। इसी तरह पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में, कवरेज 59 फीसदी से बढ़कर 61.4 फीसदी पर पहुंच गई है।

हालांकि उत्तरी अमेरिका में स्थिति पहले भी कहीं ज्यादा बेहतर थी, वहां यह आंकड़ा 78.1 फीसदी से बढ़कर 84 फीसदी पर पहुंच गया है। इस मामले में पश्चिमी यूरोप में, स्थिति सबसे बेहतर है जहां 2009 में 91 फीसदी बच्चों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का फायदा मिल रहा था वहां यह आंकड़ा बढ़कर 2023 में 93.2 फीसदी पर पहुंच गया है।

जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील देशों को देखें तो वहां बच्चों की सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आने की दर उन देशों की तुलना में एक तिहाई कम है, जिन्हें उच्च जोखिम के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। देखा जाए तो बच्चों को जलवायु संकट के सबसे बदतर प्रभावों से बचाने के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।

आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि इस दौरान दक्षिण एशिया में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं जहां यह दर 9.2 से बढ़कर 24.3 फीसदी पर पहुंच गई है। इसी तरह दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र में भी इसकी कवरेज 30.8 फीसद से बढ़कर 41.9 फीसदी पर पहुंच गई है। ऐसा ही कुछ मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में भी देखने को मिला है, जहां 22.7 फीसदी बच्चे इन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में थे वो आंकड़ा 2023 में बढ़कर 32.5 फीसदी पर पहुंच गया।

सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल के ग्लोबल पॉलिसी एंड एडवोकेसी लीड डेविड लैम्बर्ट टुमवेसिग्ये के मुताबिक यह सामाजिक सुरक्षा योजनाएं परिवारों को बेहतर पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा प्रदान करने में मदद करती हैं। साथ ही यह बच्चों के अधिकारों को साकार करने और वयस्कों के रूप में उनकी क्षमता को उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में भविष्य के लिए समावेशी और लचीली अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण के लिए बच्चों को दिए जाने वाले यह लाभ बेहद महत्वपूर्ण हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, कई देशों ने सामाजिक सुरक्षा में निवेश को प्राथमिकता नहीं दी है।

यूनेस्को ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट “एसडीजी मिडटर्म प्रोग्रेस रिव्यु” में जानकारी दी है कि 2021 से अब तक स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या कम होने की जगह बढ़ रही है और यह आंकड़ा पिछले दो वर्षों में 60 लाख की बढोतरी के साथ 25 करोड़ पर पहुंच गया है।

उप सहारा अफ्रीका में स्थिति सबसे खराब है जहां अब भी 9.8 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से दूर हैं। हैरानी की बात है कि इस क्षेत्र में शिक्षा से दूर इन बच्चों की संख्या कम होने की जगह लगातार बढ़ रही है। वहीं मध्य और दक्षिण एशिया इस मामले में दूसरे स्थान पर हैं, जहां स्कूली शिक्षा से दूर बच्चों का आंकड़ा करीब साढ़े आठ करोड़ दर्ज किया गया है।

वहीं यूनिसेफ ने अपनी एक अन्य रिपोर्ट में जानकारी दी है कि 98 फीसदी अफ्रीकी देशों के बच्चों पर जलवायु में आते बदलावों का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। हालांकि इसके बावजूद अफ्रीका में बच्चों के पास इन बदलावों का सामना करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। स्वास्थ्य की स्थिति का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि एचआईवी/एड्स हर दिन औसतन 274 बच्चों की जान ले रही है। इतना ही नहीं हर दिन 740 बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।

इस बारे में यूनिसेफ की नीति और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम की निदेशक नतालिया विंडर रॉसी का कहना है कि, “दुनिया भर में 33.3 करोड़ बच्चे बेहद गरीबी में जी रहे हैं, जो प्रतिदिन 2.15 डॉलर से भी कम पर गुजारा करने को मजबूर हैं।” वहीं 100 करोड़ बच्चे बहुआयामी गरीबी का शिकार हैं।

उनके मुताबिक यह बेहद दुखद है कि मौजूदा रफ्तार से सतत विकास के लक्ष्यों द्वारा निर्धारित गरीबी के लक्ष्य तक पहुंचना करीब-करीब असंभव है। यह अस्वीकार्य है। हालांकि, बच्चों में व्याप्त गरीबी को दूर करना एक नीतिगत विकल्प है, लेकिन गरीबी के खिलाफ जंग के रूप में बच्चों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना बेहद महत्वपूर्ण है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

Spread the information