दयानिधि

लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में डायबिटीज या मधुमेह से पीड़ित लगभग 10.1 करोड़ लोगों में से कम से कम 2.1 करोड़ लोगों की नजर कमजोर है। उनमें से 24 लाख लोग कुछ भी देख नहीं सकते हैं, अर्थात वे अंधे हैं।

अध्ययन में कहा गया कि निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के लोगों में कमजोर नजर और अंधेपन की व्यापकता अधिक पाई गई। अध्ययन में कहा गया है कि इसका उद्देश्य भारत में मधुमेह से पीड़ित लोगों में कमजोर नजर और अंधेपन की व्यापकता और खतरों के पीछे के कारणों को उजागर करना है।

देश भर में मधुमेह की व्यापकता एक समान नहीं है। कुछ राज्यों में यह चरम पर पहुंच गया है, जबकि कई अन्य राज्यों में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हमें चिकित्सा देखभाल तक पहुंच में असमानताओं से निपटना होगा और अंधापन सहित मधुमेह की जटिलताओं के बढ़ने से पहले जल्द ही उपचार मुहैया किया जाना चाहिए।

अध्ययन में 40 साल और उससे अधिक उम्र के कुल 42,147 वयस्क भारतीय की जांच की गई और मधुमेह से पीड़ित 7,910 लोगों ने अध्ययन के लिए स्वेच्छा से भाग लिया। जिनमें से मधुमेह से पीड़ित 26.5 फीसदी (2,224) लोगों को बहुत अच्छी तरह से दिखाई देता था। अन्य 52.4 फीसदी (4,347) को चश्मे की जरूरत थी।

हालांकि, उनमें से 18.7 फीसदी लोगों की नजर खराब थी, 2.4 फीसदी (126) अंधे थे। अध्ययन के परिणामों को मधुमेह पर पूरे भारत में किए गए अध्ययन से जोड़ते हुए, अध्ययनकर्ताओं का अनुमान है कि साल 2021 में ज्ञात या अज्ञात मधुमेह से पीड़ित 40 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 2.1 करोड़ वयस्कों की नजर कमजोर थी, जिनमें से 24 लाख लोग अंधे थे।

अध्ययनकर्ता मानते हैं कि अध्ययन को नजरअंदाज किया जा सकता है, क्योंकि इसमें केवल 40 वर्ष से ऊपर के लोगों की जांच की गई और समय के साथ बदलावों का आकलन नहीं किया गया है। इसके अलावा, इसमें 2011 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया था।

अध्ययन में पाया गया कि मधुमेह से पीड़ित लोगों में डायबिटिक रेटिनोपैथी की तुलना में आंख में मोतियाबिंद के कारण दिखाई न देना और अंधापन का एक अधिक सामान्य कारण है। अध्ययनकर्ता ने कहा कि मधुमेह वाले लोगों की नियमित रूप से आंखों की जांच की जानी चाहिए।

प्रमुख-अध्ययनकर्ता डॉ. राजीव रमन ने रेटिनोपैथी के खतरों के बारे में बताया कि जिन लोगों की नजर अच्छी है, वे रेटिनोपैथी के कारण अचानक देखने की क्षमता खो सकते हैं क्योंकि उन्हें आंख के पीछे के ऊतकों (रेटिना) में रक्त वाहिकाओं को होने वाले नुकसान के बारे में पता नहीं होता है।

ग्रामीण और शहरी निवासियों के बीच कमजोर नजर संबंधी दर में कोई बड़ा अंतर नहीं था। हालांकि, निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के लोग, जिनका वजन कम है और उनमें कोई मोटापा नहीं है, उनमें अज्ञात मधुमेह के कारण आंखें खराब होने का खतरा अधिक होता है।

अध्ययनकर्ताओं ने राष्ट्रीय सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए पाया कि केरल में त्रिशूर जिला एक उच्च महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर वाला राज्य है। इसके पीछे प्रजनन दर, मृत्यु दर, जनसंख्या और मृत्यु के प्रमुख कारणों में तेजी से बदलाव होना है, इसी कारण यहां नजर दोष का प्रसार सबसे कम देखा गया। जबकि उत्तर प्रदेश में महामारी संक्रमण स्तर कम था, इसलिए यहां नजर संबंधी हानि की व्यापकता सबसे अधिक थी।

अध्ययनकर्ता और एनआईएचआर बायोमेडिकल रिसर्च सेंटर की सोभा शिवप्रसाद ने कहा, आंखों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कम महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर वाले राज्यों को राष्ट्रीय संसाधनों को आवंटित करने से बिना-जोखिम स्तरीकृत बजट आवंटन की तुलना में तेजी से और बड़ा प्रभाव पड़ने के आसार हैं।

अध्ययन में सुझाव देते हुए कहा है कि मधुमेह से पीड़ित लोगों में दिखाई देने की समस्या और अंधेपन की व्यापकता के राष्ट्रीय अनुमान के लिए संसाधन आवंटन को जानकारी देना जरूरी होना चाहिए। मधुमेह से पीड़ित लोग मधुमेह रेटिनोपैथी जैसी स्थितियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं जो आंखो को खराब कर सकते हैं, जो अक्सर राष्ट्रीय अध्ययनों में छूट जाते हैं। मधुमेह वाले लोगों की नियमित रूप से आंखों की जांच की जानी चाहिए।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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