ललित मौर्या

कभी-कभी छोटी चीजें भी बड़ा प्रभाव डालती हैं और सिगरेट बट्स इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। अनुमान है कि हर साल करीब साढ़े चार लाख करोड़ सिगरेट बट्स को ऐसे ही खुले में फेंक दिया जाता है, जो स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी समस्या पैदा कर रहे हैं।

समस्या तब पैदा होती है जब सिगरेट के इन टुकड़ों का ठीक से निपटान करने की जगह ऐसे ही खुले में फेंक दिया जाता है। वैश्विक स्तर पर देखें तो सिगरेट के यह टुकड़े दुनिया भर में सबसे ज्यादा फेंका जाने वाला कचरा है, जो न केवल जमीन बल्कि नदियों, झीलों और समुद्रों तक को दूषित कर रहा है। गौरतलब है कि जब इन सिगरेट के बचे टुकड़ों को फेंक दिया जाता है तो छोटे और हल्के होने के कारण वो आसानी से पानी की निकासी के लिए बनाई नालियों की मदद से नदियों, झीलों और जलस्रोतों तक पहुंच जाते हैं।

अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर फेंकें गए करीब 40 फीसदी सिगरेट बट्स नदियों और समुद्रों में मिल रहे हैं। यह जानकारी सिगरेट के कारण पैदा हो रहे कचरे और उसके प्रभावों को लेकर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक आमतौर पर इन सिगरेट बट्स में सेल्युलोज एसीटेट से बना एक प्लास्टिक फिल्टर होता है, जो बायोडिग्रेडेबल की जगह फोटोडिग्रेडेबल होता है। तम्बाकू उत्पादक फिलिप मॉरिस इंटरनेशनल के अनुसार इस सिगरेट बट को नष्ट होने में 15 वर्षों तक वक्त लग सकता है।

इतना ही नहीं इसके नष्ट होने की प्रक्रिया के दौरान हजारों प्लास्टिक माइक्रोफाइबर पैदा होते हैं। बता दें कि यह माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण के लिए अपने आप में एक बड़ी समस्या हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इन तंबाकू उत्पादों से जुड़े कचरे में करीब 7,000 तरह के जहरीले केमिकल होते हैं। जो इसके बचे कचरे के साथ पर्यावरण में मिल सकते हैं।

सालाना 72,000,000,000,000,000 लीटर पानी को दूषित कर रहे सिगरेट बट

रिसर्च से पता चला है कि एक सिगरेट बट करीब 40 लीटर पानी को दूषित कर सकता है। कूड़े की दर और एक सिगरेट बट के औसत वजन के आधार पर रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है कि सालाना साढ़े तीन लाख टन से अधिक प्लास्टिक तंबाकू फिल्टर वैश्विक जलमार्गों में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में यदि 15 वर्षों का हिसाब लगाएं तो करीब 53 लाख टन तक सिगरेट के टुकड़े हमारी जल धाराओं में मौजूद हो सकते हैं।

देखा जाए तो नदियों समुद्रों पर पड़ता इनका प्रभाव प्लास्टिक प्रदूषण से कहीं ज्यादा है। अनुमान है कि जितनी मात्रा में यह सिगरेट के टुकड़े समुद्रों और नदियों में मिल रहे हैं वो हर साल 72,000,000,000,000,000 (72 क्वाड्रिलियन) लीटर पानी को दूषित कर सकते हैं।

इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि मछली, पक्षी और व्हेल सहित कई समुद्री प्रजातियां खाने के दौरान अनजाने में इन सिगरेट के टुकड़ों को निगल सकती हैं। जो इन जीवों के स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, यहां तक की इसकी वजह से इन जीवों की मृत्यु तक हो सकती है।

वहीं एक अन्य अनुमान के मुताबिक सिगरेट के इन टुकड़ों और बट से हर साल तकरीबन 76.6 करोड़ किलोग्राम हानिकारक कचरा पैदा हो रहा है। एक अध्ययन में यह भी सामने आया है कि सिगरेट के यह टुकड़े खाद्य श्रृंखला में भारी धातुओं के प्रवेश का कारण बन रहे हैं। जो स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट पैदा कर सकते हैं।

देखा जाए तो सिगरेट न केवल सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, साथ ही इसकी वजह से पैदा होता प्लास्टिक और अन्य हानिकारक कचरा भी जानलेवा साबित हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक तम्बाकू उद्योग हर साल करीब 200,000  हेक्टेयर भूमि साफ करता है, जिसके लिए 60 करोड़ पेड़ों को काट देता है।

इतना ही नहीं यह उद्योग हर साल करीब 2,200 करोड़ टन पानी का उपयोग करता है और करीब 8.4 करोड़ टन सीओ2 उत्सर्जित करता है, जो जलवायु में आते बदलावों में भी योगदान दे रही है। अनुमान है कि यह सिगरेट बट हर साल 350,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहे हैं।अनुमान है कि एक सिगरेट अपने जीवन चक्र में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य वायु प्रदूषकों के साथ करीब 14 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती है। इसके साथ ही यह हमारी जैवविविधता पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं।

वैश्विक स्तर पर इन सिगरेट फिल्टर्स के नकारात्मक प्रभावों को देखते इन पर प्रतिबंध जरूरी है। रिपोर्ट में भी इसकी पुरजोर वकालत की गई है। बता दें कि अप्रैल 2024 में प्लास्टिक प्रदूषण पर कनाडा में एक अंतराष्ट्रीय बैठक (आईएनसी-4) होनी है। ऐसे में रिपोर्ट में इन फिल्टर को प्लास्टिक संबंधी नियमों के दायरे में लाने की बात कही गई है। ऐसे में रिपोर्ट के अनुसार सिगरेट में इन फिल्टरों का उपयोग बंद करना न केवल लोगों बल्कि पर्यावरण को स्वस्थ रखने के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

        (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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