ललित मौर्या

भारत में 50 फीसदी से अधिक गर्भवती महिलाएं अनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित हैं। बता दें कि देश में गर्भावस्था से जुड़ा अनीमिया स्वास्थ्य से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है। जो न केवल मां बल्कि विकसित हो रहे भ्रूण दोनों पर बुरा असर डालता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अनीमिया एक ऐसी स्थिति है, जिसके दौरान रक्त में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है। बता दें कि मानकों के आधार पर यदि गर्भवती महिलाओं के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर या उससे कम होती है तो उन्हें अनीमिया से पीड़ित माना जाता है।

गौरतलब है कि शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह बना रहे इसके लिए हीमोग्लोबिन की आवश्यकता होती है। ऐसे में यदि शरीर में पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं और हीमोग्लोबिन नहीं है, तो इसकी वजह से रक्त, शरीर के ऊतकों तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं ले जा पाता, जिसके कारण थकान, कमजोरी, चक्कर आना और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं, कई मामलों में तो यह कमी जानलेवा भी साबित हो सकती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 52.2 फीसदी गर्भवती महिलाएं अनीमिया से पीड़ित हैं। हालांकि  एनएफएचएस-4 को देखें  तो यह आंकड़ा 50.4 फीसदी था।

कहां कितनी फीसदी गर्भवती महिलाएं हैं एनीमिया से पीड़ित

एनएफएचएस-5 के दौरान एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाएं जिनकी आयु 15 से 49 वर्ष के बीच है। आंकड़ों की गणना प्रतिशत में है। वहीं एनीमिया के प्रसार की गणना रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर या उससे कम के आधार पर की गई है

आंकड़ों के अनुसार जहां 2019-2021 के बीच शहरी क्षेत्रों में रहने वाली 45.7 फीसदी गर्भवती महिलाएं अनीमिया से पीड़ित थी वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 54.3 फीसदी रिकॉर्ड किया गया था। वहीं यदि 15 से 49 वर्ष की उम्र के बीच की सभी महिलाओं को देखें तो जहां 2015-2016 में किए सर्वेक्षण में इस आयु-समूह की 53.1 फीसदी महिलाएं अनीमिया का शिकार थीं, वहीं 2019-2021 के सर्वेक्षण में यह आंकड़ा चार फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 57 फीसदी पर पहुंच गया था।

स्पष्ट है कि इस दौरान सुधार आने की जगह स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर हुई है। ऐसे में यह गंभीरता से सोचने का विषय है कि क्यों भारत में इतनी बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं, जोकि उनके और भ्रूण दोनों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

भारतीयों के खान-पान में पोषण की कमी इसकी एक बड़ी वजह है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वो और कौन से कारक हैं जो इसके लिए जिम्मेवार हैं। हाल ही में इन्ही कारकों पर प्रकाश डालने के लिए एक अध्ययन किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।

यह अध्ययन जनसांख्यिकीय और स्वास्थ्य सर्वेक्षण में 2019 से 21 के लिए जारी आंकड़ों पर आधारित है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अनीमिया और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारकों के बीच संबंधों की जांच के लिए ची-स्क्वेर्ड और गामा परीक्षणों की मदद ली है। साथ ही भारत में गर्भवती महिलाओं में व्याप्त अनीमिया को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने ऑर्डिनल लॉजिस्टिक रिग्रेशन और मल्टीनोमियल लॉजिस्टिक रिग्रेशन जैसी सांख्यिकीय विधियों की मदद ली है।

एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के आंकड़े में कहां कितना आया बदलाव

एनएफएचएस-4 और 5 के दौरान एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाएं जिनकी आयु 15 से 49 वर्ष के बीच है। आंकड़ों की गणना प्रतिशत में है। वहीं एनीमिया के प्रसार की गणना रक्त में हीमोग्लोबिन के 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर या उससे कम के आधार पर की गई है.

जानिए कैसे मिल सकती है इससे निजात

राजस्थान के झालावाड़ में गर्भवती महिलाओं पर किएऐसे ही एक अध्ययन से पता चला है कि वहां ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली 81.1 फीसदी गर्भवती महिलाएं अनीमिया से पीड़ित हैं। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि गर्भावस्था के दौरान अनीमिया समय से पहले जन्म, भ्रूण के विकास के साथ-साथ गर्भपात और  उच्च शिशु मृत्यु दर से लेकर मातृ मृत्यु के 20 से 40 फीसदी मामलों के लिए जिम्मेवार है।

ऐसा नहीं है कि सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं है। भारत में गर्भवती महिलाओं में अनीमिया की रोकथाम के लिए कई उपाय किए गए हैं। उदाहरण के लिए गर्भवती महिलाओं के लिए आयरन और फोलिक एसिड की खुराक वितरित करना और पोषण के बारे में जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करना, जैसे प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। हालांकि इनके बावजूद, गर्भवती भारतीय महिलाओं में अनीमिया एक आम समस्या बनी हुई है।

इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक भारत में 50 फीसदी से अधिक गर्भवती महिलाएं अनीमिया से पीड़ित हैं, जिसका महत्वपूर्ण संबंध उनकी भौगोलिक स्थिति, शिक्षा के स्तर और आर्थिक समृद्धि से जुड़ा है। रिसर्च के मुताबिक गर्भावस्था से संबंधित अनीमिया अपर्याप्त पोषक आहार, आयरन की पर्याप्त मात्रा न मिल पाना या पहले से मौजूद स्थितियों के कारण हो सकता है।

अशिक्षित गर्भवती महिलाओं में 37 फीसदी अधिक है इसके प्रसार की आशंका

गर्भावस्था के दौरान होने वाला अनीमिया ग्रामीण क्षेत्रों कहीं ज्यादा आम है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं में गंभीर से मध्यम अनीमिया की आशंका 9.4 फीसदी कम होती है। इसी तरह सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी भारत में गर्भावस्था से जुड़े अनीमिया की व्यापकता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। जहां समृद्ध वर्ग की तुलना में सबसे गरीब तबके की गर्भवती महिलाओं के गंभीर से मध्यम अनीमिया से प्रभावित होने की आशंका 34.2 फीसदी अधिक है। इसी तरह शिक्षित महिलाओं में अनीमिया के प्रसार की आशंका कम होती है। उदाहरण के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं की तुलना में, न्यूनतम या अशिक्षित गर्भवती महिलाओं में इसके प्रसार की 37 फीसदी अधिक संभावना होती है।

हैरानी की बात है कि शौचालय भी इसपर व्यापक असर डालते हैं। रिसर्च के अनुसार बेहतर शौचालय सुविधाओं का उपयोग करने वाली महिलाओं में गंभीर से मध्यम अनीमिया होने की आशंका साढ़े सात फीसदी कम होती है। वहीं यदि भौगोलिक रूप से देखें तो भारत के दक्षिणी हिस्सों की तुलना में पूर्वी क्षेत्रों में अनीमिया का प्रसार 17.4 फीसदी अधिक है।

इसी तरह गर्भवती महिलाओं की उम्र और वजन भी इस लिहाज से मायने रखता है। शोध में सामने आया है कि जिन गर्भवती महिलाओं का वजन सामान्य से कम था उनमें अनीमिया की आशंका सबसे अधिक थी। इसी तरह जो महिलाएं किशोरावस्था में गर्भवती हुई थी उनमें भी अनीमिया होने की आशंका सबसे अधिक होती है। वहीं उम्र बढ़ने के साथ इसकी दर में कमी दर्ज की गई। इसी तरह कम बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाली गर्भवती महिलाओं में गंभीर से मध्यम अनीमिया होने की संभावना कहीं अधिक होती है।

शोध में यह भी सामने आया है कि माइल्ड अनीमिया के मामले में, किशोर गर्भवती महिलाएं चालीस और उससे अधिक की उम्र की गर्भवती महिलाओं की तुलना में 67.6 फीसदी अधिक संवेदनशील होती हैं। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि गर्भवती भारतीय महिलाओं में अनीमिया के प्रसार को कम करने में शिक्षा और सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार प्रभावी रूप से मददगार हो सकते हैं।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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