विकास शर्मा

चूहों पर हुए प्रयोगवादी अध्ययन के जरिए वैज्ञानिकों ने स्पष्ट तौर पर पाया है कि दिमाग का एक हिस्सा ही समय की समझ से निपटता है. शोध में पाया गया है कि इस हिस्से पर तापमान बढ़ने घटने से भी गतिविधियों के समय की दर को समझने में बदलाव आ जाता है. प्रयोगों में स्ट्रेटम नाम के हिस्से पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया गया.

समय के बारे में कई धारणाएं विज्ञान को चुनौती देती हैं. समय को लेकर सापेक्षता तो विज्ञान फंतासी के ज्यादा करीब लगती दिखाई देती है. फिर भी समय के बारे में कई बातों पर विज्ञान भी हैरान करता है, जैसे कि टाइम ट्रैवल विज्ञान फंसासी के साथ ही पूरी तरह से वैज्ञानिक शोध का विषय है. लेकिन क्या समय को लेकर हमारे दिमाग का बर्ताव अलग होता है. नए अध्ययन को लेकर वैज्ञानिकों को लगता है कि उन्होंने दिमाग के उस हिस्से का पता लगा लिया है जिसका समय से संबंध है. चूहों पर हुए एक उत्साजनक नतीजे देने वाले इस शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि दिमाग में समय को समझने का अलग हिस्सा होता है.

समय की समझ के खास क्षेत्र
यूके के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के साथ पुर्तगाल के चैम्लपैलिमॉड फाउंडेशन के शोधकर्ताओं ने चूहों पर किए गए परीक्षण में पाया है कि दिमाग के खोजे गए खास क्षेत्र में गतिविधि या सक्रियता धीमी या तेज करने से जानवरों में समय की समझ में बदलाव आ जाता है. अध्ययन में दिमाग के गहरे हिस्से जिसे स्ट्रेटम कहा जाता है, पर ध्यान केंद्रित किया  गया, जो मोटर और एक्शन प्लानिंग के साथ ही निर्णयन से भी संबंधित हैं.

बर्ताव में बदलाव के संकेत
स्ट्रेटम की तंत्रिकीय गतिविधि में में बदलाव के लिए तापमान में छोटे बदलाव करके देखे गए. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के बिहेवियरल इकोलॉजिस्ट टियागो मोंटेरियो ने बताया कि इससे पहले भी पिछले कुछ अध्ययनों में तापमान का जानवरों के बर्ताव में बदलाव लाने के लिए उपयोग किया गया था. जहां दिमाग के एक हिस्से को ठंडा या गर्म करने पर उससे संबंधित गतिविधि की दर में बदलाव देखने को मिला था.

तापमान में बदलाव का उपयोग
मोंटेरियो ने बताया कि उन्होंने सोचा कि बिना हिस्से के स्वरूप में छेड़छाड़ किए तंत्रिका गतिकी की दर में बदलाव उनके लिए आदर्श रहेगा. इसके लिए शोधकर्ताओं ने चूहों के दिमाग के हिस्से को गर्म या ठंडा करने का फैसला किया. एनेस्थीसिया के प्रभाव में किए गए विश्लेषण ने दर्शाया कि स्ट्रेटम दिमाग की गतिविधि तापमान बढ़ने से बढ़ गई और तपामान कम होने कम हो गई.

तापमान के साथ बदली समय की समझ
जब चूहे चैतन्य अवस्था में तो प्रयोगों के दौरान उन्हीं तापमान बदलाव और दिमाग की गतिविधि समय बदली हुई समझ के साथ दिखई. यानि गर्म तेज स्ट्रेटम का मतलब था समय धीमे बीतता था और धीमे स्ट्रेटम में समय तेजी से बीतता लगता था. लेकि इसका चूहों की बाकी कार्यों या गतिविधियों की दर पर कोई असर नहीं दिखा.

समय की दर का निर्धारण
इसका मतलब यही था कि समय कितनी जल्दी गुजरता है और कितनी तेजी से गतिमान होना है दिमाग के दो अलग-अलग हिस्से नियंत्रित करते हैं. यानि टेनिस रैकेट कब घुमाना है, ऐसी गतिविधियों को स्ट्रेटम नियंत्रित करता है, जबकि दूसरे हिस्से तय करते हैं कि घुमाव की गति कितनी होनी चाहिए. शोधकर्ताओं का कहना है कि दूसरा हिससा मोटर कंट्रोल और संयोजन के लिए जिम्मेदार क्षेत्र सेरिबेलम हो सकता है.

क्या इंसानों में भी होता है ऐसा
पिछले एमआरआई आंकड़े सुझाते है कि बेसल गैंगलिया इलाका इंसानों के बर्ताव की टाइमिंग में शामिल  रहता है. लेकिन इसकी पुष्टि करने के लिए अभी और ज्यादा शोधकार्य करने की जरूरत होगी. समय का उपयोग हम सभी हमेशा करते हैं, लेकिन जब उसकी समझ पार्किंसन्स जैसे विकारों से खराब होती है, तो उससे समझ और गतिविधियों पर असर होता है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह अध्ययन इस विषय पर काफी प्रकाश डालता है, लेकिन जैसा किमोंटेरियो का भी कहना है, अभी काफी कुछ खुलासे होने बाकी हैं. जैसे हमारे दिमाग का परिपथ समय को लेकर  गतिविधियों के संकेत कैसे बनाते हैं. इसका अलावा दिमाग समय की इस समझ से संबंधित और क्या संक्रियाएं करता है. दिमाग इनके अनुकूल कैसे प्रतिक्रिया करता है. यह शोध न्यूरोसाइंस में प्रकाशित हुआ है.

    (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

 

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