विकास शर्मा

एक इंसान की तरह अल्बर्ट आइंस्टीन ने कई गलतियां की तो उनकी वैज्ञानिक अवधारणाओं में भी ऐसी गलतियां देखने को मिलती है. लेकिन कॉस्मोलॉजिलक कॉन्स्टेंट की कहानी बहुत ही अनोखी है. इसे आइंस्टीन ने खुद एक गलती के तौर पर खारिज किया, लेकिन दशकों बाद इसका उपयोग होने लगा है.

अल्बर्ट आइंस्टीन को दुनिया के सबसे महान भौतिकविदों में से गिना जाता है. उनके मस्तिष्क तक पर शोध होते रहे हैं. उनकी बुद्धिमानी औसत व्यक्ति या वैज्ञानिक तक से बहुत अधिक माना जाती थी. आलम यह है कि आज भी बहुत लोग किसी को बुद्धिमान कहने की जगह आइंस्टीन पुकारने लगते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्होंने गलती नहीं की बतौर इंसान उन्होंने वैज्ञानिक कार्यों तक में गलती की है और ऐसा वे खुद भी मानते थे. लेकिन अपने एक खोज या अवधारणा को उन्होंने अपनी बड़ी गलती मानी थी. लेकिन दशकों बाद उसी गलती को गलती ना मान कर स्वीकार भी कर लिया गया. पूरा घटनाक्रम एक रोचक कहानी बन गया है.

सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत
आइंस्टीन के के मुताबिक उनकी सबसे बड़ी यही गलती थी कि वे चाहते थे कि ब्रह्माण्ड स्थिर हो जाएगा. दुनिया को लेकर विचारों ने उन्हें उनके समीकरणों को सुधारने के लिए प्रेरित किया. यह भी सच है कि  वे सुधार करने में भी सही नहीं रहे लेकिन फिर भी उनके प्रयासों ने वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्ड की बेहतर समझ पाने में मदद की.

ब्रह्माण्ड और स्थिरता
1915 में उन्होंने सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत को प्रतिपादित किया जो 10 साल पहले दी गई सापेक्षता के विशेष सिद्धांत का पूरक तो नहीं लेकिन उसी के आगे की कहानी की तरह थी. सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत में गुरुत्व की बात थी जिसमे ब्रह्माण्ड के साथ ही  कई और ब्रह्माण्ड की संभावना की भी व्याख्या की. उनकी इस व्याख्या में एक समस्या था. आइंस्टीन और उनके कई समकालीन वैज्ञानिक तक यही मानते थे कि ब्रह्माण्ड स्थिर है और हमेशा से ऐसा ही था और बड़े पैमाने पर कभी नहीं बदला था.

एक खगोलीय अचर राशि
पर जब हम अपने गैलेक्सी को नश्वर के तौर मानने का प्रयास करते हैं तो देखते हैं कि ब्रह्माण्ड में सब कुछ सिमट कर ब्लैक होल में बदलने की कोशिश करता है. ऐसा ही कुछ समीकरणों की गणनाओं से भी दिखता है. लेकिन मिल्की वे गैलेक्सी सिमट नहीं रही है और इसे सुलझाने के लिए आइंस्टीन ने एक पैमाना जोड़ा जिसे खगोलीय अचर या कॉस्मोलॉजिकल कॉन्सटेंट कहते हैं.

सभी कुछ नहीं सिमट रहा है
अब इस कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट की किसी तरह के अवलोकित औचित्य नहीं था. इसके समर्थन में एक ही तथ्य था कि सभी वस्तुएं सिमट कर सिंग्यूलरिटी की ओर नहीं जा रही हैं. इसके अलावा यह कोई नई बात नहीं थी कि भौतिक में किसी के अवलोकन से पहले ही उसके अस्तित्व को प्रस्तावित कर दिया जाए.

सुझाव और सुधार की समस्या
इसलिए एक भौतिक मापदंड बनाकर किसी ऐसी चीज से जोड़ा जाता था जो पहले से अस्तित्व में नहीं हो. ऐसे में सबसे अच्छा यही रहता है कि सुझाव और सुधार के लिए आप खुले हों. यहां आइंस्टीन के साथ समस्या यही थी कि जब भी आइंस्टीन की आलोचना होती थी या उन्हें चुनौती मिलती थी तो वे संवेदनशील हो जाते थे.

एक बड़ी गलती
ऐसे में आइंस्टीन उन वैज्ञानिकों की अवमानना तक कर बैठते थे जो उनके सिद्धांतों और अवलोकनों की आलोचना करते थे या उनमें विरोधाभास दिखाने का प्रयास करते थे. दो दशकों में उनके खिलाफ सहमति इतनी बढ़ गई कि उन्होंने अपने कॉस्मोलॉजिकल कॉन्सटेंट के विचार को अपनी सबसे बड़ी गलती कह कर खारिज कर दिया. लेकिन कहानी में यहीं एक मोड़ आया जब 1998 में खगोलविदों ने खोजा कि ब्रह्माण्ड की विस्तार तेज गति से नहीं बल्कि तेजी से त्वरित हो रहा है.

यानि ब्रह्माण्ड के विस्तार की दर की गति के बढ़ने की एक दर है. लेकिन इसके पीछे क्या वजह इसका पता नहीं था तो प्रस्तावित किया गया. इसके पीछे एक रहस्यमयी ऊर्जा है जिसे डार्क ऊर्जा कहेंगे. और अभी उसकी व्याख्या करने के लिए सबसे अच्छा तरीका सामान्य सापेक्षता का समीकरण में है और वह है कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट, लेकिन यह आइंस्टीन वाला कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट नहीं है. बिंग थिंक के लेख के अनुसार आंस्टीन की गलती इस कॉन्स्टेंट को लाना नहीं, अपनी सबूतों के रहते अपनी गलती का बचाव करना थी. यह इस बात का उदाहरण है कि गलतियां खोज का मंच होती हैं.

   (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )
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