अमृत चंद्र

एक नए शोध से पता चला है कि इम्‍यून सिस्‍टम कम्‍युनिकेशन इंसान के व्‍यवहार को बदलने में अहम भूमिका निभाता है. साथ ही शोध के जरिये पता लगाया गया कि कैसे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली एलर्जी और विषाक्‍त पदार्थों के बारे में दिमाग को संकेत भेजती है.

 

दुनियाभर में किए गए ज्‍यादातर शोध कहते हैं कि हमारा व्‍यवहार हमारे आसपास के वातावरण, संस्‍कृति, समाज, रहन-सहन से आकार लेता है. लेकिन, अब एक नए शोध के नतीजे कहते हैं कि इंसान की प्रतिरक्षा प्रणाली भी उसके व्‍यवहार को आकार देने के लिए जिम्‍मेदार होती है. शोध ने इस बात पर रोशनी डाली कि कैसे प्रतिरक्षा पहचान पर्यावरण में मौजूद एलर्जी और विषाक्त पदार्थों के प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं को आकार देती है, जिससे हमारे बचने के व्यवहार और रक्षात्मक प्रतिक्रियाएं प्रेरित होती हैं.

 

साइंस मैग्‍जीन नेचर में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने व्यवहार पर प्रतिरक्षा प्रणाली के गहरे असर के बारे में बताया है. येल में इम्यूनोबायोलॉजी के स्टर्लिंग प्रोफेसर रुस्लान मेडजिटोव की लैब में एक टीम का अध्ययन इस बात का पुख्ता सबूत देता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली कम्‍युनिकेशन इंसानी व्यवहार को बदलने में अहम औश्र बड़ी भूमिका निभाता है. हॉवर्ड ह्यूजेस मेडिकल इंस्टीट्यूट के लिए इंवेस्‍टीगेटर प्रोफेसर मेडजिटोव के मुताबिक, उन्‍होंने पाया कि प्रतिरक्षा पहचान व्यवहार को नियंत्रित करती है.

 

दिमाग पर्यावरणीय खतरों का नहीं दे पाता संकेत
प्रोफेसर मेडजिटोव ने कहा कि प्रतिरक्षा प्रणाली विशेष रूप से विषाक्त पदार्थों के खिलाफ रक्षात्मक व्यवहार के लिए जिम्‍मेदार है. हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली ही पहले एंटीबॉडी और फिर मस्तिष्क को इसके संकेत भेजती है. इससे पहले हुए वैज्ञानिक अध्‍ययनों में एलर्जी और रोगजनकों को लेकर प्रतिक्रियाओं में प्रतिरक्षा प्रणाली की भागीदारी को मान्यता दी गई थी, लेकिन व्यवहारिक बदलावों से इसका संबंध स्थापित नहीं किया गया था. यह अध्ययन उस अहम अंतर को भरता है, जिससे पता चलता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली संचार के बिना मस्तिष्क पर्यावरण में मौजूद खतरों का संकेत देने में नाकाम रहता है.

 

इम्‍यून सिस्‍टम वेरिएबल्‍स में हेरफेर, बदला व्‍यवहार
शोध दल ने प्रतिरक्षा प्रणाली और व्यवहार के बीच संबंधों की जांच करने के लिए उन चूहों का अध्ययन किया, जिनको चिकन अंडे में पाए जाने वाले ओवा नाम के विशिष्ट प्रोटीन से एलर्जी थी. इन संवेदनशील चूहों ने ओवा वाले पानी के प्रति तीव्र घृणा दिखाई, जबकि शोध में शामिल किए गए नियंत्रित चूहों ने इसी पानी के स्रोतों के प्रति प्राथमिकता दिखाई. यही नहीं, संवेदनशील चूहों में इस पानी के प्रति नफरत कई महीनों तक बनी रही. शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि क्या इम्‍यून सिस्‍टम वेरिएबल्‍स में हेरफेर करने से संवेदनशील चूहों के व्यवहार में बदलाव आ सकता है?

 

आईजीई एंटीबॉडी को अवरुद्ध करने के नतीजे
शोधकर्ताओं ने देखा कि प्रतिरक्षा प्रणाली से उत्पादित इम्यूनोग्लोबुलिन ई एंटीबॉडी को अवरुद्ध करने पर चूहों ने पानी में एलर्जी के प्रति अपनी नापसंदगी खो दी. आईजीई एंटीबॉडीज मास्‍ट सेल्‍स के निकलने को ट्रिगर करने के लिए जिम्मेदार होती हैं. ये एक प्रकार की श्‍वेत रक्त कोशिका है, जो मस्तिष्क के साथ कम्‍युनिकेशन के जरिये घृणा के व्यवहार को नियंत्रित करती है. जब आईजीई को अवरुद्ध करके इस जानकारी को रोक दिया गया, तो चूहों ने एलर्जी वाले पानी से परहेज नहीं किया. ये नतीजे जानवरों को खतरनाक क्षेत्रों से दूर रहने में मदद करने में प्रतिरक्षा प्रणाली की भूमिका पर रोशनी डालते हैं.

शोध के नतीजों से वैज्ञानिकों को क्‍या होगा फायदा
शोध के नतीजे ये जानने में भी मदद करते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली संभावित खतरों को कैसे याद रखती है? साथ ही विभिन्‍न एलर्जी और रोगजनकों के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रियाओं को कम करने में भविष्य में कैसे मदद करती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि नतीजे संभावित रूप से व्यवहार और प्रतिरक्षा प्रणाली के संबंधों पर व्‍यापक रोशनी डाल सकते हैं. हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं और व्यवहार के बीच संबंध को उजागर करके वैज्ञानिक मानव स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार के लिए नई राह खोज सकते हैं.

     (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

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