दीप राज दीपक

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने चंद्रयान-3 को कल यानी (शुक्रवार), 14 जुलाई 2023 को 02:35:17 बजे इसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के द्वितीय प्रमोचन मंच से लॉन्च कर दिया है. भारत और दुनिया के लिए कितना है महत्त्व और क्या जानकारी लाएगा ये मिशन, जानिए सबकुछ

 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने चंद्रयान-3 को कल यानी (शुक्रवार), 14 जुलाई 2023 को  02:35:17 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के द्वितीय प्रमोचन मंच से लॉन्च कर दिया है. ये मिशन सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के लिए काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि ये मिशन चंद्रमा के उन भागों की स्टडी करेगा जहां अभी कोई भी नहीं पहुंचा है. चंद्रयान-3 अपनी 40-50 दिनों की यात्रा के बाद 23 अगस्त की शाम को चांद पर लैंड कर सकता है. इसकी लैंडिंग की पुष्टि इसरो ने कर दी है. इस चंद्रयान-3 को ‘एलवीएम-3 एम4’ रॉकेट की मदद से सफलतापूर्वक लांच किया गया. आइये जानते हैं चंद्रयान-3 की यात्रा और इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प और महत्वपूर्ण बातें.

 

चंद्रयान-3 की यात्रा
चंद्रयान-3 का रास्ता चंद्रयान-2 की तरह ही होगा. चंद्रयान-3 के चांद पर पहुंचने से पहले तीन चरणों को पूरा करेगा, पहला पृथ्वी के कक्षा में स्थापित, दूसरा ट्रांस लुनार इंजेक्शन और तीसरा चंद्र की कक्षा में स्थापना. इन तीनों चरणों को पूरा करने के बाद प्रोपल्शन मॉडल से लैंडर अलग हो जाएगा और चंद्रमा के नजदीक के कक्ष में प्रवेश कर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा.

 

विभिन्न रफ्तार से तय करेगा यात्रा
दोपहर 2 बजे रॉकेट बूस्टर के साथ लांच होने के बाद चंद्रयान -3 की शुरुआती रफ्तार 1627 किलोमीटर प्रति घंटा रही. वहीं, 108 सेकंड के बाद 45 किमी की ऊंचाई पर लिक्विड इंजन शुरू होते ही इसकी गति बढ़कर 6737 किमी प्रतिघंटा हो गई थी. वहीं, 62 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रयान-3 से दोनों रॉकेट बूस्टर अलग हो गए, जिसके साथ ही रॉकेट की रफ्तार 7 हजार किलोमीटर प्रति घंटे हो गई.

करीब 92 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रयान-3 को वायुमंडल की ताप से बचाने वाली हीट शील्ड अलग हो गई. वहीं, 115 किमी की ऊंचाई पर अब तक चंद्रयान-3 को ला रहे इसके लिक्विड इंजन भी अलग हो गए और यहां से क्रॉयोजनिक इंजन काम करना शुरू कर दिया हैं. इस दौरान चंद्रयान-3 की लगभग 16 हजार किलोमीटर तक पहुंच चुकी थी. इसके बाद चंद्रयान-3 को क्रॉयोजनिक इंजन ने तकरीबन 179 किमी तक ले गई. जहां इसकी रफ्तार 36968 किमी/घंटे पहुंच थी.

 

चांद का सफर
पृथ्वी के कक्षा में स्थापित होने के बाद चंद्रयान-3 पांच परलवायाकर चक्र लगाएगा. इसके बाद इसे काफी तेज रफ्तार से चंद्रमा के कक्ष में इंजेक्ट होगा और वहां पर इसकी कक्षा का आकार परलवायाकर होगी. यहां यह अपने चार चक्रों के बाद चंद्रमा के काफी करीब पहुंच जाएगा. लगभग 40-50 दिनों में 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद इसका लैंडर प्रोपल्शन से अलग होने के बाद चांद के सतह के 30 किमी की दूरी पर सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू करेगा. इसके लिए सही जगह और सही समय दोनों की टाइमिंग की गणना की जा चुकी है.

 

चंद्रयान-3 के साथ ऑर्बिटर नहीं भेजा गया
चंद्रयान-3 के साथ लैंडर और रोवर दोनों मौजूद हैं लेकिन इसके साथ ऑर्बिटर नहीं भेजा गया है. लेकिन क्यों? मालूम हो कि 2019 में चंद्रयान-2 की लैंडिंग सॉफ्ट नहीं रही थी, जिसके वजह से इसके रोवर से संपर्क टूट गया था लेकिन उसका ऑर्बिटर अभी भी सही काम कर रहा जिसके वजह से इसे चंद्रयान-3 के साथ नहीं भेजा गया था.

 

क्या है इसका महत्व?
इस मिशन का टारगेट लैंडर का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराना है. दूसरा टारगेट इसके रोवर की चांद की दक्षिणी ध्रुव पर चहलकदमी करना और तीसरा टारगेट चंद्रमा की उस रहस्य से पर्दा उठाना जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है. चंद्रमा पर मौजूद खनिज लवण, दक्षिणी ध्रुव पर पृथ्वी की रेफ्लेक्टेड लाइट और मूनक्वेक की स्टडी करना.

   (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

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