विकास शर्मा

30 अक्टूबर भारत के उस महान वैज्ञानिक की जयंती है जिसने देश को परमाणु ऊर्जा से सम्पन्न बनाया. होमी जहांगीर भाभा ने ना केवल भारत को परमाणु ऊर्जा से बिजली पैदा करने में सक्षम बनाया बल्कि उन्होंने 1961 में ही कह दिया था कि भारत एक साल में परमाणु बम बना सकता है. यह बताता है कि भाभा ने भारत को कितना सक्षम बना दिया था.

1960 के दशक की दुनिया को याद कीजिए. सोवियत संघ और अमेरिकी के बीच शीत युद्ध चरम पर पहुंच रहा था. भारत सोवियत संघ से दोस्ती निभाते हुए गुटनिरपेक्ष  आंदोलन चला रहा था. 1961 में देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अमेरिकी सेना के जनरल और वेस्टिंगहाउस के सलाहकार केनेथ निकोल्स के साथ मीटिंग के दौरान डॉ होमी जहांगीर भाभा ने कहा था कि भारत को परमाणु बम बनाने में करीब एक साल लगेगा. इसके बाद 1965 में उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो को दिए एक सात्क्षात्कार में कहा था कि अगर उन्हें इजाजत मिली तो वे 18 महीने में परमाणु बम बना देंगे. 30 अक्टूबर को इन्हीं होमी जहांगीर भाभा की जयंती पर उन्हें याद कर रहा है.

परमाणु कार्यक्रम के पिता
1960 के दशक में भारत जैसे देश के लिए इस तरह का दावा करना बताता है कि होमी जहांगीर भाभा कितने बड़े वैज्ञानिक थे. जहां विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू कर इसरो की स्थापना की और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को दुनिया मिसाइल मैन के रूप में जानती है, भाभा देश के परमाणु कार्यक्रम के पिता के रूप में जाने जाते हैं.

मुंबई में पले बढ़े से भाभा
होमी जहांगीर भाभा का जन्म  मुंबई में 30 अक्टूबर 1909 को समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता जहांगीर होर्मुसजी भाभा एक वकील थे. होमी की आरंभिक शिक्षा मुंबई के कैथरेडल एंड जॉन कैनन स्कूल में हुई थी. ऑनर्स से सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने एल्फिस्टोन कॉलेज में पढ़ाई की थी. वे दिनशॉ मैनेकजी पेटिट और दोराबजी जैसे मशहूर व्यवसायियों के रिश्तेदार थे.

इंजीनियरिंग छोड़ भौतिकी में?
होमी के पिता और चाचा चाहते थे कि वे मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ें और टाटा स्टील मिल्स से जुड़ें. लेकिन होमी इंजीनियरिंग करना नहीं चाहते थे और यह बात उन्होंने अपने पिता को भी लिखी थी. इस पर उन्हें पिता से गणित और पढ़ने की इजाजत मिल गई. पहले उन्होंने मैथमैटिकिस ट्रिपोस कार्स आनर्स के साथ पूरा किया और भौतिकी के शोध में लग गए.

नाभकीय भौतिकी की ओर
भौतिकी पढ़ते हुए होमी का झुकाव नाभकीय भौतिकी की ओर हुआ. 1933 में उन्होंने न्यूक्लियर फिजिक्स में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और कई मशहूर शोधकार्यों के साथ वे कैम्ब्रिज में कार्य किया और भारत में छुट्टियां बिताते समय जब विश्वयुद्ध के शुरु हुआ तो वे इंग्लैंड वापस नहीं गए. लेकिन भारत में वे बहुत सक्रिय रहे. उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में रीडर का पदभार संभाला.

परमाणु ऊर्जा के लिए
1945 में उन्होंने जेआरडी टाटा की मदद से  मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेटल रिसर्च की स्थापना की जिसके वे निदेशक भी बने. आजादी के बाद भाभा के प्रयासों से ही भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना हो सकी. डॉ भाभा ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया. भारत आने के बाद से ही भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने का विचार किया. और इसके लिए देश के नेताओं को  प्रेरित भी करते रहे.

परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञ
1948 में प्रधानमंत्री नेहरू ने उन्हें न्यूक्लियर प्रोग्राम का प्रमुख बनाया. इसके बाद  1950 में वे इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व करते रहे . 1955 में उन्होंने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र की आणविक ऊर्जा के शांतिपूर्वक उपयोग पर हुए सम्मेलन की अध्यक्षता की. भाभान ने ही  बहुत कम मात्रा में उपलब्ध यूरेनियम की जगह थोरियम को परमाणु शक्ति कार्यक्रम में शामिल करने की पैरवी की.

उनके ही प्रयासों मे से ट्रॉम्बे में एटॉमिक एनर्जी एस्टेबलिश्मेंट की स्थापना हुई. इसी साल भारत सरकार में आणविक ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई. भाभा को पाँच बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किए गए और 1954 में भारत सरकार से पद्मभूषण से सम्मानित किए गए.  उनका प्रमुख उद्देश्य  भारत को परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भर करना था. 24 जनवरी 1966 में एक वायुयान दुर्घटना में उनका निधन हो गया.

      (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )
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