विकास शर्मा

पाया गया है कि जैवविविधता कम होने से वायरस के तेजी से फैलने की संभावना बढ़ जाती है. कटिबंधीय वर्षावनों के बड़े क्षेत्र में किए गए अध्ययन में आंकलन किया गया कि वहां वायरस के प्रसार में जैविविधता के अंतर की क्या भूमिका है. पाया गया है कि वायरस का प्रसार केवल वायरस और जलवायु कारक से ज्यादा होस्ट जीव की संख्याओं पर ज्यादा निर्भर करते हैं.

कोविड महामारी ने दुनिया के वैज्ञानिकों को वायरस और उनके जरिए फैलने वाले समक्रण के प्रति काफी सचेत कर दिया है. अभी सार्स कोव-2 वायरस पर बहुत सारे शोधकार्य जारी हैं तो वहीं वैज्ञानिक वायरसों के पैदा होने, उनके पनपने, उनके प्रासारित होने के कारक आदि सहित उनके उपचार जैसे विषयों पर सामान्य अध्ययन भी करने लगे हैं. इसी तरह के एक अध्ययन में वैज्ञानिकोंन  पाया है कि जैवविविधता के, खास तौर से कटिबंधीय वर्षावनों में, कम होने का वायरस की संपन्नता पर सीधा असर होता है. इस अध्ययन ने वायरस के प्रसार कारकों को रेखांकित करते हुए उनके होस्ट की भूमिका के महत्व पर भी प्रकाश डालने का काम किया है.

खास प्रजाति की संख्या में इजाफा?
लेबनिज इंस्टीट्यूट फॉर जू एंड वाइल्ड लाइफ रिसर्च की अगुआई में हुए इस अध्ययन के नतीजे ईलाइफ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं. यह शोध इस बात को प्रदर्शित करता है कि वर्षावनों के विनाश की वजह से मच्छरों की प्रजातियों की विविधता में कमी हो जाती है. इससे ऐसी मजबूत मच्छरों की प्रजातियों के पनपने का रास्ता खुल जाता है और वे हावी होने लगती हैं जो वायरस का प्रसार करते हैं.

तीन कारकों का संबंध
वैज्ञानिकों ने यह पड़ताल करने का प्रयास किया कि पर्यावरण में बदलाव, जैवविविधता में हानि और रोगाणुओं में  प्रसार का आपस में कैसा सबंध है. यह अध्ययन चैरिटेस इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में एकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन ऑफ एर्बोवायरस रिसर्च समूह का नेतृत्व करने वाली प्रोफेसर सैंड्रा जंगलेन की अगुआई में किया गया था.

मच्छरों की प्रजातियों की पहचान और परीक्षण
शोधकर्ताओं  की टीम ने अपने अध्ययन का क्षेत्र पश्चिम अफ्रीका के वर्षावनों में स्थित कोटे डेलवएर के टाई नेशनल पार्क को चुना जिसमें पूरी तरह से अनछुए वर्षावनों से लेकर इंसानी बसाहट वाले क्षेत्रों सहित विविध प्रकार के भूमि उपयोग शामिल थे. अध्ययन की प्रथम लेखक कायरा हरमन्स का कहना है कि उन्होंने मच्छरों को पकड़ कर उनकी प्रजातियों की पहचान कर उनका वायरस संक्रमण के लिहाज से परीक्षण किया.

वायरस की उपस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक
शोधकर्ताओं ने जानने का प्रयास किया कि कैसे मच्छरों की प्रजातियों की संरचना विभिन्न प्रकार के भूमि उपयोग, कुछ खास प्रकार के वायरस के होने, उनकी संख्या में बहुलता आदि की वजह से बदल जाती है. एक वर्षावन जैसे स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र में जानवरों की कई प्रजातियों की उपस्थिति के कारण अलग-अलग प्रकार के बहुत सारे वायरस मौजूद होते हैं, जो कि होस्ट की तरह काम करते हैं.

वायरस की प्रजातियों का प्रसार
शोधकर्ताओं ने 49 वायरस प्रजातियों की पहचान की जिनमें से अधिकांश अव्यवधानित आवास में पाए गए थे. लेकिन कुछ मच्छरों की प्रजातियों ने प्रभावी तरीके से साफ इलाकों के मुताबिक खुद को ढाल लिया था जो अपने साथ वहां वायरस ले आए थे. जंगलेन का कहना है कि 49 में से अधिकांश वायरस इन इलाकों में बहुत कम पाए जाते हैं, लेकिन इनमें से 9 बहुल आवास में थे जबकि पांच वायरस प्रजातियां सबसे ज्यादा अव्यवस्थित और मानवीय आवासों में बढ़ती पाई गईं.

 

कैसे तेज होता है वायरस का प्रसार
शोधकर्ताओं ने बताया कि इसका साफ मतलब यही है कि कटिबंधीय वर्षावनों को साफ करने से वहां मच्छरों की प्रजातियों की विविधता में कमी आई जिससे वायरस के होस्ट, यानि वह जीव जिसमें वायरस रहता और पनपता है, की संरचना में भी बदलाव दिखे. कुछ मजबूत मच्छर प्रजातियां ऐसे में साफ इलाकों में भी सफलतापूर्वक बढ़ने लगीं और वहां वायरस पहुंचाने लगीं.

      (‘न्यूज़18 हिंदी’ से साभार )

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