विकास शर्मा

इसरो को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रमा पर मानवअभियान भेजने की 2040 तक की डेडलाइन दी है. यह कार्य इसरो जैसे स्पेस एजेंसी के लिए असंभव तो नहीं है, लेकिन कई चुनौतियों से भरा जरूर है क्योंकि उससे पहले इसरो को गगनयान की सफलता जल्दी सुनिश्चित करने के साथ कई तकनीक के विकास पर ध्यान देना होगा.

चंद्रयान-3 की अभूतपूर्व सफलता के बाद एक स्वाभाविक इच्छा तो भारत के लोगों के मन में पैदा हुई है वह यह कि इसरो चंद्रमा पर भारतीयों को कब पहुंचाएगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत की चंद्रमा और दूसरे ग्रहों पर भी सॉफ्ट लैंडिंग की क्षमता प्रदान की है जिसके बाद अब भारत चंद्रमा पर मानव अभियान पर विचार कर सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी ने भी इसरो को साल 2040 तक की डेडलाइन दे दी है. लेकिन क्या इसरो के लिए ऐसा कर पाना संभव है. उसके लिए किस तरह की चुनौतियां होगीं.

कई पड़ावों को पार करना होगा
अभी चंद्रमा पर मानव अभियान भेजना इसरो के लिए कई प्रमुख पड़ावों के बाद ही संभव हो सकेगा. इसके लिए सबसे पहले गगनयान की सफलता जरूरी है जिसमें तीन भारतीय अंतरिक्ष में तीन दिन बिताने के बाद लौटेंगे. इसके बाद चंद्रमा पर एक अभियान ऐसा भेजना होगा जो कि वापस आएगा और इसके लिए इसरो तैयारी भी कर रहा है.

एक शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत
भारत के लिए चंद्रयान-2 और मंगलयान जैसे अभियानों में सोलर एनर्जी और स्पेसक्राप्ट सोलर पैनल एक्सपर्ट रह चुके मनीश पंडित के मुताबिक इसरो के लिए अगर कोई सबसे बड़ी चुनौती होगी तो वह एक शक्तिशाली रॉकेट का निर्माण करना होगा जो कि इंसानों को चंद्रमा तक पहुंचने में सक्षम हो सके.

पर्याप्त शक्ति का रॉकेट नहीं
फिलहाल इसरो ने चंद्रयान-3 के लिए एलवीए-3 रॉकेट का इस्तेमाल किया था जो कि पृथ्वी की निचली कक्षा में दस हजार किलो का भार ले जा सकता है. लेकिन चंद्रमा पर जाने केलिए हमें पृथ्वी की निचली कक्षा तक एक लाख किलो के भार की क्षमता वाला रॉकेट चाहिए होगा. इसमें क्रायोजेनिक इंजन या सेमी क्रायोजेनिक इंजन का संयोजन  काम आ सकता है. इस तकनीक का इस्तेमाल नासा ने सैटर्न 5 में किया था.

और भी देश कर रहे हैं प्रयास
जहां चीन 2027 तक 21 लाख किलो वाले लॉन्गमार्च 10 रॉकेट का विकास करने में लगा हुआ है, वहीं स्पेसएक्स 50 लाख किलोग्राम भार वाली क्षमता का स्टारशिप विकासित करने में लगा है.  वहीं रूसी स्पेस एजेंसी रोसकोसमोस भी 2027-28 तक 20 लाख किलो की क्षमता वाला रॉकेट तैयार कर रहा है. भारत के पास फिलहाल ऐसा कोई रॉकेट नहीं है.

चंद्रमा पर जाना और वापस आना अलग बात
शक्तिशाली रॉकेट के विकास के साथ सबसे जरूरी और सबसे पहले गगनयान की सफलता बहुत जरूरी है. इसकी सफलता से यह सुनिश्चित होगा कि इसरो के पास अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से बाहर ले जाने और वापस लाने की क्षमता है और यह चंद्रमा पर मानव अभियान के लिए भी उतना ही जरूरी होगा.

गगनयान के बहुत आगे
कुल मिलाकर गगनयान अभियान एक ऐसा पड़ाव होगा जिसकी सफलता के बाद इसरो आगे के बारे में सोच सकेगा. यानि एक तरह से वह अगले स्तर पर काम कर सकेगा. इससे इसरो अगले स्तर के रॉकेट के विकास के लिए भी प्रोत्साहित हो पाएगा. लेकिन बात केवल शक्तिशाली रॉकेट और यात्रियों को अंतरिक्ष तक लाने और वापस लाने की नहीं है. इसको को यात्रियों के लिए एक क्रू मॉड्यूल यान भी विकसित करना होगा.

क्रू मॉड्यूल में यात्रियों को चंद्रमा पर पहुंचाने की क्षमता के साथ वहां पर लैंडिंग और उसके बाद वापसी के लिए भी तकनीकों पर काम करन होगा और उनका परीक्षण करना होगा. इसके साथ ही इतने लंबे समय के लिए चंद्रयात्रियों को भोजन की व्यवस्था, उनका प्रशिक्षण, जरूरी सामान आदि की व्यवस्था भी करनी होगी. चंद्रयात्रियों की सेहत से संबंधित शोधकार्यों में तेजी लानी होगी. इसके अलावा इन सब के लिए जरूरी धन की व्यवस्था एक बहुत बड़ी चुनौती होगी. लेकिन इसरो जिस तरह से अपनी लागत की कारगरता के लिए प्रसिद्ध है. इसरो का यह सफर देखना रोचक होगा.

      (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार ) 
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