विकास शर्मा

एम विश्वैश्वरैया कोई साधारण इंजीनियर और व्यक्ति नहीं थे. सौ साल का जीवन जीने वाले विश्वैश्वरैया अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी उतने ही कर्मठ रहे थे जितने कि वे अपने यौवनकाल में. उन्होंने कर्नाटक के तत्कालीन मैसूर राज्य ही नहीं बल्कि देश विदेश में कई इंजिनियरिंग परियोजनाओं में अपना योगदान दिया था. 15 सितंबर को उनके जन्मदिन पर देश इंजीनियर्स डे या राष्ट्रीय अभियंता दिवस मना रहा है.

एक इंजीनियर का मतलब उस व्यक्ति से होता है जो विज्ञान के सिद्धांतों का अनुप्रयोग कर किसी समस्या का समाधान निकाल सके. यूं तो देश में हर साल लाखों बच्चे इंजीनियर की डिग्री हासिल करते हैं लेकिन क्या वे वास्तव में इंजीनियर होते हैं इसका जवाब देना मुश्किल काम नहीं है. एक आदर्श इंजीनियर कैसा होता है इसकी सबसे बढ़िया मिसाल एमवी यानि एम विश्वेश्वरैया थे. उन्होंने 100 साल की उम्र में जीवन भर जिस दृढ़ विश्वास और ऊर्जा के साथ इंजीनियरिंग समस्याओं के समाधान निकाले हैं वह हर प्रकार के इंजीनियर के लिए मिसाल है. उनके जन्मदिन 15 सितंबर को मनाया जाने वाला इंजीनियर्स डे यही सीखने का दिन है.

बेंगलुरू में हुई शुरुआती पढ़ाई
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर राज्य के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में तेलुगु परिवार में 15 सिंतबर 1861 को हुआ था. पढ़ाई के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होने पर उन्होंने इसे बाधा बनने नहीं दिया और ट्यूशन पढ़ा कर पढ़ाई कर बेंगलुरू के सेंट्रल कॉलेज से टॉप कर बीए की डिग्री हासिल की.

इंजीनियरिंग की पढ़ाई में सफलता
इसके बाद उन्होंने मैसूर सरकार की मदद से पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियिरिंग में दाखिला ले लिया. यहां वे धीरे धीरे आगे की पढ़ाई कर पहले एलसीई और फिर एफसीई की परीक्षा में प्रथम आए और अपने योग्यता को साबित किया. उनकी प्रतिभा को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें नासिक मे सहयाक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया. फिर उन्होंने बंबई में लोक निर्माण विभाग मे असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी की. बाद में उन्हें भारतीय सिंचाई आयोग से जुड़ने के लिए बुलाया गया.

विश्वैश्वरैया का वाटर फ्लडगेट सिस्टम
विश्वैश्वरैया शुरू से ही एक बहुत ही कुशल और बुद्धिमान इंजीनियर साबित हुए. उन्होंने दक्कन के पठार में एक खास सिंचाई व्यवस्था लागू की और बांध में स्वचालित वियर वाटर फ्लडगेट सिस्टम विकसित कर उसका पेटेंट भी हासिल किया. इसी सिस्टम को पूणे के पास खड़कवास्ला जलाशय पर 1903 में प्रतिस्थापित किया गया.

कर्नाटक के भगीरथ
इसी सिस्टम को विश्वैश्वरैया ने ग्वालियर में टिगरा बांध और मैसूर के मांड्या के कृष्णासागर बांध पर भी इस्तेमाल किया. उनके नाम मौसूर और कर्नाटक के क्षेत्रो में कृष्णराजसागर बांध सहित बहुत से निर्माण कार्य कराने का श्रेय है जिसने कर्नाटक को एक नई ऊंचाइयों पर खड़ा कर दिया, उन्हें आज भी कर्नाटक का भगीरथ कहा जाता है. 34 साल की उम्र में विश्वेश्वरैया ने सिंधुं नदी के सुक्कुक कस्बे के लिए पानी की आपूर्ति के लिए योजना तैयारी की जिसे हर तरफ से तारीफ मिली.

एमवी के उत्साह की एक मिसाल
एक बार कुछ भारतीय कुछ फैक्ट्री की कार्यप्रणाली समझने के लिए अमेरिका में गए थे. फैक्ट्री के मशीन के बारे में एक अफसर ने कहा कि अगर आप इस मशीन को समझना चाहते हैं कि 75 फुट की ऊंची सीढ़ी चढ़ना होगा. बहुत से लोग ऐसा करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाए तो ऐसे में भारतीयों की अगुआई करने वाले विश्वैश्वरैया तेजी से सीढ़ियां चढ़ गए और मशीन का निरीक्षण कर लौट आए. उस समूह में केवल तीन लोगों ने ऐसा किया था.

काम के प्रति जुनून
साल 1908 में 47 साल की उम्र में विश्वेश्वरैया ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और औद्योगिक देशों में अध्ययन के लिए दौरे किए.  इसके बाद कुछ समय के लिए हैदराबाद के निजाम के लिए उन्होंने काम किया और 1909 में वे मैसूर राज्य के मुख्य अभियंता नियुक्त कर दिए गए इसके तीन साल बाद उन्हें मैसूर का दीवान बना दिया गया. इसके बाद से सात सालों में मैसूर के विकास कार्यों में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया. उन्हें शिक्षा, उद्योग, कृषि, बैंकिंग आदि के क्षेत्र में विशेष प्रयास किए.

एमवी हमेशा स्वस्थ रहकर देश की सेवा करते रहे. आजादी के बाद भी उन्होंने देश के लिए अपने सलाहों से योगदान दिया. 92 साल की उम्र में उन्होंने पटना के राजेंद्र सेतु का निर्माण करवाया, 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. 98 साल की उम्र में भी वे नियोजन पर किताब लिख रहे थे.  एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा था कि उनके चिर यौवन का रहस्य क्या है. इस पर एमवी ने जवाब दिय था कि जब भी बुढ़ापा मेरा दरवाजा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है, और वह निराश होकर लौट जाता है.  बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती है तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है. 101 वर्ष की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को उनका निधन हो गया.

     (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )
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