ललित मौर्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों के बीच मौजूद खाई को उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी 67 फीसदी है। इसके बावजूद उन्हें पुरुषों की तुलना में 24 फीसदी कम वेतन से संतोष करना पड़ता है।
‘फेयर शेयर फॉर हेल्थ एंड केयर’ नामक यह रिपोर्ट 12 मार्च, 2024 को जारी की गई है। रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यदि निम्न या मध्यम आय वाले देशों में महिलाओं को भी पुरुषों के समान वेतन मिलता है तो उनकी वित्तीय स्थिति में नौ लाख करोड़ डॉलर का सुधार देखने को मिल सकता है।
वेतन में व्याप्त यह अंतर महिलाओं को अपने परिवारों और समुदायों में निवेश करने से रोकता है, जहां आम तौर पर इसके पुनर्निवेश की सम्भावना होती है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जहां वैश्विक स्तर पर, महिलाएं अपनी कमाई का 90 फीसदी हिस्सा अपने परिवार के कल्याण पर खर्च करती हैं, वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा केवल 30 से 40 फीसदी ही है।
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रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि महिलाओं का निर्णय लेने वाले पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। हालांकि नर्सों और दाइयों के रूप में अधिकांश बागडोर महिलाओं के हाथ में है, लेकिन नेतृत्व की भूमिकाओं में उनका प्रतिनिधित्व कम है। इसी तरह चिकित्सा विशषज्ञों के मामले में भी पुरुषों का दबदबा है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 35 देशों में काम कर रहे डॉक्टरों में 25 से 60 फीसदी महिलाएं हैं, लेकिन नर्सिंग स्टाफ में महिलाओं की हिस्सेदारी 30 से 100 फीसदी के बीच है।
इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में बिना वेतन के दिए जा रहे सहयोग में भी महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण है। आंकड़ों की मानें तो बिना वेतन के की जा रही 76 फीसदी देखभाल सम्बन्धी गतिविधियां महिलाओं के आसरे हैं। वहीं कोरोना महामारी जैसे संकट के दौरान, जब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव पड़ता है, तो घरों में देखभाल का काम बढ़ जाता है, जिसके लिए कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता। इसमें महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
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रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में महिलाएं हर रोज अपने दिन का 73 फीसदी समय ऐसे कार्यों को समर्पित करती हैं, जिनके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता। वहीं इसके विपरीत पुरुष अपने दिन का औसतन 11 फीसदी समय ऐसे कार्यों पर व्यतीत करते हैं।
देखा जाए तो निम्न और मध्यम आय वाले देशों के साथ-साथ हाशिए पर रह रहे समुदायों में बिना पारिश्रमिक के किए जा रहे देखभाल के कामों में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है। महामारी के दौरान बिना वेतन के किया जा रहा यह काम खासकर महिलाओं के लिए बढ़कर दोगुना हो गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उस समय पुरानी बीमारियों की देखभाल की जिम्मेवारी भी घरों पर आई गई थी। कोविड-19 के दौरान यूनाइटेड किंगडम में करीब 45 लाख लोगों ने बिना वेतन के काम किया था, जिसमें 59 फीसदी महिलाएं थी। उनमें से करीब 30 लाख लोग वो थे जो एक साथ कई काम निपटा रहे थे।
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स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में महिलाओं ने असमान रूप से लिंग-आधारित हिंसा का अधिक सामना किया। कुछ अनुमानों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कार्यस्थल पर होने वाली एक-चौथाई हिंसा स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में होती है। इसके अतिरिक्त, सभी स्वास्थ्य कर्मियों में से कम से कम आधों ने कभी न कभी काम पर हिंसा का शिकार होने की सूचना दी है।
कोरिया गणराज्य में, 64 फीसदी नर्सों ने मौखिक दुर्व्यवहार का सामना करने की सूचना दी है। वहीं 42 फीसदी को हिंसा से जुड़ी धमकियों का सामना करना पड़ा है। इस तरह रवांडा में भी, 39 फीसदी स्वास्थ्य कर्मियों ने कार्यस्थल पर हिंसा का अनुभव करने की सूचना दी है। वहीं नेपाल में, 42 फीसदी महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न की सूचना दी है। रिपोर्ट में नर्सिंग के क्षेत्र में श्रम अधिकारों और भेदभाव-विरोधी कानूनों को सशक्त करने का सुझाव दिया गया है, ताकि लैंगिक असमानता की खाई को पाटा जा सके।
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(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )