गुरबख्श सिंह मोंगा
स्टेट्समैन 24 अप्रैल 2023 के अंक में प्रकाशित लेख, ‘एन इंस्टिट्यूशन डाईज़’ ;एक संस्था की मौत से यह जानना स्तब्ध करने वाला तथा चिंतित करने वाला है कि विज्ञान प्रसार को इसी साल अगस्त तक बंद करने का प्रस्ताव है। विज्ञान प्रसार की स्थापना 1989 में की गयी थी। उसे विज्ञान का प्रसार करने, संचार करने और वैज्ञानिक मिजाज का विकास करने का जिम्मा सौंपा गया था ।
विज्ञान प्रसार, अब तक भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत, एक स्वायत्त संस्था के रूप में काम करता आ रहा था और विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत आने वाला एक ख्यातिप्राप्त तथा अपनी मौजूदगी का एहसास कराने वाला संगठन रहा है। विज्ञान प्रसार, एक कामयाब संगठन है जिसने उल्लेखनीय पहलें की हैं। इसके बावजूद नीति आयोग ने इसकी सिफारिश की है कि विज्ञान प्रसार को बंद कर दिया जाए और उसकी जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए, विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत ही एक प्रकोष्ठ बना दिया जाए। इसके पीछे ख्याल यह लगता है कि इस तरह इस संगठन के लक्ष्यों को भी पूरा कर लिया जाएगा और इसमें लगने वाले मानव संसाधनों तथा वित्तीय संसाधनों में कटौती भी कर ली जाएगी। यह कदम व्यावहारिक मानों में ठेका मजदूरी और निजीकरण का ही रास्ता तैयार करेगा। ये दोनों ही विज्ञान के प्रचार-प्रसार और वैज्ञानिक मिजाज तथा जांच-परख की भावना के विकास के काम में अनवरत संबद्धता के अनुरूप नहीं हैं, जिस काम को संविधान की धरा 51 एच के तहत अपने दायित्व के रूप में विज्ञान प्रसार पूरा करता आया है।
विज्ञान प्रसार ने संचार की क्षमताएं विकसित की हैं और ज्ञान संवर्धन का काम करने वाले लोगों को जोड़ा है, जो भारतीय भाषाओं के माध्यम से, जिसमें स्थानीय बोलियां भी शामिल हैं, देश के नागरिकों के बीच वैज्ञानिक मिजाज को रोपते हैं, आलोचनात्मक सोच को पोसते हैं। विज्ञान प्रसार समावेशी रहा है और उसने सामग्री निर्माण के जरिए, विज्ञान व प्रौद्योगिकी संचार, लोक प्रसार व विस्तार के जरिए, समाज के हरेक संस्तर को अपने दायरे में लिया है, चाहे वे महिलाएं हों, शारीरिक रूप से बाधित व्यक्ति हों, आदिवासी हों या दूर-दराज के व भौगोलिक रूप से दुर्गम इलाकों में रहने वाले लोग हों, विज्ञान प्रसार, देश का ऐसा अकेला संगठन है जो विज्ञान व प्रौद्योगिकी संचार, लोक प्रसार तथा प्रत्यक्ष आउट-रीच के लिए, अखिल भारतीय स्तर पर काम कर रहा है। 32 वर्षों से ज्यादा समय में 700 से ज्यादा जिलों में जिन स्कूली बच्चों तथा युवाओं की जिंदगियों को उसने छुआ है, उनकी संख्या बहुत विशाल है। उसने समाज, वैज्ञानिकों, मीडिया तथा नीति निर्माताओं के बीच, आदन-प्रदान के माध्यम का काम किया है। विज्ञान प्रसार ने जितनी विशेषज्ञता, क्षमता तथा कौशल को पोसा तथा विकसित किया है, उसे अगर बंद कर दिया जाता है या एक प्रकोष्ठ में बदल दिया जाता है, तो वह सब नष्ट हो जाएगा। विज्ञान प्रसार कोई प्रचार की कवायद नहीं है, जिसे विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग का कोई प्रकोष्ठ कर लेगा। सामग्री का विकास, संचय तथा उसका निर्माण, एक ऐसा कौशल है जिसे 30 वर्ष से ज्यादा में पाला-पोसा गया है और जिसकी जगह को आउटसोर्सिंग के जरिए नहीं भरा जा सकता है।
विज्ञान प्रसार को बंद करने के फैसले पर फिक्रमंद नागरिकों द्वारा विमर्श एवं हस्तक्षेप की दरकार है। विज्ञान का लोक प्रसार तथा वैज्ञानिक साक्षरता हमारे देश के लिए अपरिहार्य है क्योंकि हम प्रगति करके एक आधुनिक प्रौधेगिकीय व वैज्ञानिक रूप से उन्नत, ज्ञान समाज बनना चाहते हैं। देश को कहीं ज्यादा विज्ञान संचार की आवश्यकता है, ताकि उसमें कमी किए जाने की और सभी भारतीय भाषाओं में कहीं बड़े पैमाने पर इस संचार की जरूरत है।
विज्ञान प्रसार का बंद किए जाने से देश की अपूरणीय क्षति होगी। विज्ञान प्रसार के जारी रखे जाने की तथा उसे और शक्तिशाली बनाए जाने की जरूरत है, जिससे वह विज्ञान संचार, लोक-प्रसार, आलोचनात्मक सोच व वैज्ञानिक मिजाज के विकास के पहलू से, जोकि हमारे संवैधानिक कर्तव्य का हिस्सा है, देश की और ज्यादा सेवा कर सके।
विज्ञान प्रसार की सफल पहलें
————————————-
विज्ञान प्रसार ने जाने-माने विज्ञान लेखकों तथा वैज्ञानिकों की लिखी करीब 300 किताबें छापी हैं। इन पुस्तकों को देश के सभी राज्यों में और देश से बाहर भी सराहा गया है। विज्ञान प्रसार में काम करने वाले लोगों को, अपने काम के लिए अनेक पुरस्कारों के रूप में भी व्यापक मान्यता मिली है, जैसे साइंस पॉपुलराइजेशन के लिए यूनेस्को का कलिंग पुरस्कार, नेशनल साइंस पॉपुलराइजेशन एवार्ड, इंदिरा गांधी प्राइज़ फार पॉपुलराइजेशन ऑफ साइंस, आत्माराम एवार्ड फॉर पॉपुलर साइंस बुक राइटिंग। विज्ञान प्रसार की द्विभाषिक, हिंदी तथा अंगरेजी की पत्रिका, ड्रीम 2047 युवा कॉलेज छात्रों तथा समाज के अन्य तबकों तक लगातार पहुंचती रही है।
विज्ञान प्रसार ने विज्ञान को मातृभाषा में लोगों तक पहुंचाने के लिए विज्ञान भाषा कार्यक्रम चलाया है। यह कार्यक्रम सिर्फ संविधान की आठवीं अनुसूची की भाषाओं तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि आबादी के एक बड़े हिस्से द्वारा बोली जाने वाली आदिवासी भाषाओं-बोलियों तक भी पहुंचता है। विज्ञान प्रकाशन भारत की विभिन्न भाषाओं में किए गए हैं- बांग्ला, तमिल, कन्नड़, उर्दू, गुजराती और मराठी। मासिक न्यूजलैटर प्रकाशित किए जा रहे हैं- तजस्सुस ;उर्दू अरिवियल पलागई ;तमिल बिज्ञान कथा ;बांग्ला और कुतूहल ;कन्नड़। लोगों की मातृभाषा में ही उन तक वैज्ञानिक जानकारियां पहुंचाने की इतनी बड़ी कोशिश इससे पहले कभी नहीं की गयी थी। इसके लिए, विज्ञान तथा संचार, दोनों की ही पृष्ठभूमि से संपन्न, विशेषज्ञों की समर्पित टीम की जरूरत होती है।
इंडिया साइंस वायर चलाया जा रहा है, जो भारतीय प्रयोगशालाओं के शोध प्रकाशनों को खबरों के रूप में प्रसारित करता है और भारतीय संस्थानों के शोध् व विकास के काम को, प्रमुखता से सामने लाने का काम करता है। यह पहली बार ही हुआ है कि इंडिया साइंस वायर के जरिए नियमित रूप से दी जा रही सामग्री से, इस क्षेत्रा की ओर मीडिया को खींचा गया है और विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी खबरों को उसमें जगह मिलने लगी है। इंडियन साइंस न्यूज फीचर सर्विस ने 500 से ज्यादा स्टोरीज प्रसारित की हैं, जिसके ट्वीट इम्प्रेशन एक लाख से ज्यादा हैं।
इंडिया साइंस टीवी ओटीटी चैनल भारतीय श्रोताओं/दर्शकों को ताजातरीन मुद्दों पर हिंदी और अंगरेजी में वीडियो मुहैया कराता है। चूंकि यह सरकार से जुड़ा विज्ञान व प्रौद्योगिकी का ऐसा इकलौता चौनल है जो एप्प के रूप में उपलब्ध् है, इसकी युवाओं तक पहुंच है। उसने दो वर्ष से भी कम समय में 200 से ज्यादा फिल्में बनायी हैं, जिनकी पहुंच 8.5 करोड़ लोगों तक हुई है। 500 नये वीडियो प्रोग्राम तैयार किए गए हैं। 600 वीडियो दूरदर्शन के साइंस चौनल पर और इंडिया साइंस ओटीटी प्लेटपफार्म पर प्रसारित किए गए हैं। ये कार्यक्रम इंडिया साइंस ओटीटी प्लेटपफार्म के वीडियो ऑन डिमांड खंड में भी उपलब्ध कराए गए हैं।
25 अगल-अलग डू इट यूरसैल्पफ किट बनाए गए हैं, जो अपने आप कर के देखने की प्रवृत्ति को बढ़ाने में बाजी पलटने वाले साबित हुए हैं। दो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विज्ञान उत्सव कराए गए हैं, जो देश में इस तरह के पहले ही उत्सव रहे हैं।
विज्ञान प्रसार के अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों को, अमेरिकन कैमीकल सोसाइटी ;एसीएस के साथ कराए जाने वाले शोधकर्ताओं के लिए प्रकाशन वर्कशॉपों में भी देखा जा सकता है। विज्ञान प्रसार द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित इंटरनेशनल ईअर आफ लाइट, एस्ट्रोनॉमी का देश भर में पालन कराया गया है और भारत सरकार द्वारा घोषित नेशनल ईअर ऑफ मैथमैटिक्स, बायोडाइवर्सिटी व अन्य दिवसों का पालन कराया गया है। इन कार्यक्रमों की लोगों तक पहुंच, उल्लेखनीय रही है।
विज्ञान आधरित अंतर्वस्तु को श्रोताओं को बांधे रखने वाले नाटकों के जरिए और देश के विभिन्न राज्यों में स्थानीय हिस्सेदारी के जरिए, आल इंडिया रेडियो के साथ गठबंधन कर के, विभिन्न वैज्ञानिक विषयों को लेकर, देश की करीब 85 फीसद आबादी तक पहुंचा गया है और खासतौर पर ग्रामीण आबादियों तक उनकी अपनी भाषाओं में ही पहुंचा गया है। आल इंडिया रेडियो के जरिए इस प्रोजैक्ट ने 118 रेडियो स्टेशनों को कवर किया, 19 राष्ट्रीय भाषाओं तथा बोलियों में 1040 रेडियो कार्यक्रम तैयार किए।  35 विज्ञान मेलों, प्रदर्शनियों तथा आदिवासी बच्चों के लिए मेलों के आयोजन, आवश्यक आउटरीच का एक अच्छा उदारहण रहे।
हमारे संविधन की प्रस्तावना में हम भारत के लोग जिन मूल्यों की बात की गई है, उसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी आगे बढ़ाने की बात की गई है। संवैधनिक जिम्मेवारी को समझने वाले नागरिकों/समूहों को मिल बैठकर संजीदगी से पहलकदमी करते हुए बातचीत की शुरूआत करने का यह सही वक्त है।
(लेखक का संपर्क नम्बर है 93542 21054 )
   (लेखक जीरकपुर, मोहाली, पंजाब के निवासी हैं  तथा प्रमुख लेखक एवं विज्ञान संचारक हैं )
Spread the information