जेपी स‍िंह

हर साल 16 अक्टूबर को ‘विश्व खाद्य दिवस’ का आयोजन किया जाता है, ताकि लोगों में जागरूकता फैलाई जा सके और भूख, कुपोषण, और गरीबी के खिलाफ मजबूती से लड़ा जा सके. आज भी विश्व में करोड़ों लोग भुखमरी की समस्या से गुजर रहे हैं, और इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने संसाधनों को कैसे सुरक्षित रखें ताकि हमारे भविष्य का खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहे. प्राकृतिक संसाधन मीठा जल यानि ताजा पानी, के बिना खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. इसके बावजूद, इस पर सचेत नहीं हो रहें हैं.”

हर साल 16 अक्टूबर  को विश्व खद्य दिवस” मनाया जाता है इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया में भुखमरी को समाप्त करना है.आज ही के दिन,संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) द्वारा सन1945 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की स्थापना किया गया था  वही दुनिया भर में फैली भुखमरी की समस्या को देखते हुए, 16 अक्टूबर 1980 से  हर साल ‘विश्व खाद्य दिवस’ का आयोजन किया जाता है, ताकि लोगों में जागरूकता फैलाई जा सकेऔर भूख, कुपोषण, और गरीबी के खिलाफ मजबूती से लड़ा जा सके.  लेकिन आज भी विश्व में करोड़ों लोग भुखमरी की समस्या से गुजर रहे हैं,और इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने संसाधनों को कैसे सुरक्षित रखें ताकि हमारी भविष्य की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहे. प्राकृतिक संसाधन, मीठा जल यानि ताजा पानी, के बिना खाद्य सुरक्षा में खतरे में पड़ सकती है. इसके बावजूद, इस पर सचेत नहीं हो रहें हैं.”

विश्व खाद्य दिवस  2023 का थीम 

संयुक्त राष्ट्र  संघ की तमाम संगठनें दुनिया भर के गरीबी और भूखमरी से निपटने के लिए कई प्रयास किए हैं,लेकिन इस दिवस के 43 सालों से मनाने के बाद भी, दुनिया भर में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है. इसलिए, यह जरूरी हो गया है कि दुनिया के भूखमरी को मिटाने के लिए आधुनिक खेती तरीके से करके अधिक उत्पादन लिया जाए, तो वही प्राकृतिक संसाधन जल जो जीवन का सबसे मूल्यवान है,उसको सुरक्षित रखा जाए. इसलिए विश्व खाद्य दिवस का थीम है जल ही जीवन है, जल ही भोजन है, किसी को भी पीछे न छोड़ें”

कैसे बचाएं अमूल्य धरोहर जल को ?

इसलिए विश्व खाद्य दिवस का थीम “जल ही जीवन है, जल ही भोजन है’ किसी को पीछे न छोड़ें. क्योकि दुनिया में ताजा जल की कमी होती जा रही है.आज, दुनिया में लगभग 2.4 अरब लोग पानी की कमी से प्रभावित हो रहे हैं, पहले ही कई छोटे किसान, जो पहले से ही अपनी रोज़मर्रा की जरूरतो को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, खासकर महिलाएं, स्वदेशी लोग, प्रवासी और शरणार्थी  के बीच इस अमूल्य संसाधन के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है ,क्योंकि पानी की कमी संघर्ष का लगातार कारण बनती जा रहा है  है. तेजी बढ़ती जनसंख्या , शहरीकरण, आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी के जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा रहा हैं.पिछले दशकों में प्रति व्यक्ति मीठे पानी के संसाधनों में 20 फीसदी की गिरावट आई है.पानी का अंधाधुंध उपयोग और प्रबंधन कमी, भूजल के अत्यधिक दोहन,प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण में पानी की उपलब्धता कमी और गुणवत्ता तेजी से बिगड़ रही है. हम इस बहुमूल्य संसाधन को  कम करने की जोखिम उठा रहे  हैं जहां से वापसी संभव नहीं है.

अनंत नहीं है मीठा पानी 

पृथ्वी पर जीवन के लिए जल  कितना अहम इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे शरीर का 50% से अधिक हिस्सा पानी से बनाता हैऔर पृथ्वी की सतह का लगभग 71 फीसदी क्षेत्र कवर करता है. और केवल 2.5 फीसदी पानी ताजा जल होता है, जो पीने, कृषि औरअधिकांश उद्योगों के लिए उपयोगी होता है.पानी लोगों,अर्थव्यवस्थाऔर प्राकृतिक पर्यावरण के लिए जरूरी  है और हमारे आहार की नींव है. वास्तव में, दुनिया में मीठे पानी का 72 फीसदी  हिस्सा कृषि के लिए उपयोग में आता है,और ताजा पानी अनंत नहीं है. यह भी खत्म हो सकता है. इसलिए इसे संरक्षित करना जरुरी है,क्योकि शेष 97.5 फीसदी समुद्र का खारा पानी है जिसका ज्यादा उपयोग नही होता है.

गंभीर जल संकट  तरफ बढ़ रहा है भारत 

अगर अपने देश  की बात करे तो भारत भी गंभीरजल संकट का सामना कर रहा है. पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता भयानक दर से लगातार गिर रही है. जहां साल 1950 मेंप्रति व्यक्ति 5000 क्यूबिक.मीटरसे गिरकर 2021 में लगभग 1500 क्यूबिकमीटरहो गई है.प्रति व्यक्ति 1,700 क्यूबिक.मीटर कम जल की कमी वाले देश को जल की कमी वाले देश के रूप में जाना जाता है. इसलिए जरूरी है सिंचाई जल उपयोग के लिए का प्रभावी तरीका अपनाया जाए. इसमें किसान सुक्ष्म सिंचाई मेथड में ड्रीप इरिगेशन और स्प्रीकंलर का इस्तेमाल करने पर फ्लड इरीगेशन के तुलना इसमें 30-50 फीसदी तक जल की बचत होती है , वही इन तकनीको से सिचाई जल का पौधो द्वारा 50 से 90 प्रतिशत तक उपयोग होता है. इससे बिजली की खपत में गिरावट आती है. सूक्ष्म सिंचाई अपनाने से उर्वरकों की बचत होती है. फलों और सब्जियों की औसत उत्पादकता में वृद्धि होती है. इससे किसानों की आय में समग्र वृद्धि होती है.

जलवायु परिवर्तन में कैसे हो खाद्य सुरक्षा?

इस समय दुनिया की जनसंख्या तेजी बढ रही है और सन् 2050 तक 9.6 अरब तक पहुंचने  की आशा है. इस जनसंख्या को भोजन मिलता रहे इसके लिए जरूरी है कि  खाद्य उत्पादन बढे ले किन दूसरी तऱफ समस्या यह है. कि  जलवायु परिवर्तन के दौर में  खाद्य सुरक्षा है क्योकि बदलते जलवायु के काऱण उच्च तापमान और मौसम संबंधी आपदाओं बाढ ओला इत्यादि के काऱण सबसे ज्यादा कृषि प्रभावित हो रही है. इस लिए आज के समय मे जरूरी है एक स्थायी रास्ता निकाले जिससे टिकाऊ कृषि के साथ सभी लोग को हेल्दी  भोजन  मिल सके . इसके लिए जरूरी है कि कम स्थान से अधिक उत्पादन ले तथा बेहतर कटाई, भंडारण, पैकिंग, परिवहन, बुनियादी  सुविधाओं, से खाद्यान नष्ट होने से बचाये.

हर साल करोड़ों  टन बर्बाद होता है अनाज

भारत दुनिया में खाद्यान्न उत्पादन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर पिछले दशकों से बना हुआ है, लेकिन यह भी सच है कि यहाँ प्रतिवर्ष करोड़ों टन अनाज बर्बाद होता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 58,000 करोड़ रुपये का खाद्यान्न भंडारण आदि तकनीकी के अभाव में नष्ट हो जाता है,जबकि करोड़ों लोग भूखे पेट सो रहे हैं वर्ष 2021 में दुनिया में 76.8 करोड़ लोग कुपोषित पाए गए,जिनमें से 22.4 करोड़ (29%) भारतीय थ दुनिया भर में कुपोषित लोगों की कुल संख्या का एक चौथाई से भी अधिक है.

जागरूकता जरूरी है 

इसके लिए जरूरी है किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें सस्ते दामों पर भंडारण के लिए टंकियाँ उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था,लेकिन इसके बावजूद आज भी लाखों टन अनाज बर्बाद होता है. हाल ही में हुए एक शोध से यह पता चला है कि भारत में बिवाह आदि समारोहों में खाने की जबरदस्त बर्बादी होती ह इसलिए जरूरी है कि इस तरह के भोजन को बरबादी होने से बचाया जाय भूख की वैश्विक समस्या को तभी हल किया जा सकता है, जब उत्पादन बढ़ाया जाए. साथ ही उससे जुड़े अन्य पहलुओं पर भी समान रूप से नजर रखी जाए.

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