अमित सिंह

विज्ञान के क्षेत्र में शुरू से भारत के नाम कई उपलब्धियां दर्ज हैं। शून्य और दशमलव जैसी अति महत्वपूर्ण प्रणाली से भारत ने ही दुनिया को रूबरू कराया। इसके अलावा आयुर्वेद के तमाम महत्वपूर्ण फार्मुले भी भारत ने ही दुनिया को दिये। भारतीय वैज्ञानिकों ने ही दुनिया को बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। इन सबके बावजूद क्या आप जानते हैं, इतनी ज्यादा अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों के बावजूद भारतीयों को विज्ञान की ताकत बताने वाले डॉ सीवी रमन ही थे।

प्रख्यात भौतिक वैज्ञानिक डॉ सीवी रमन को उनके वैज्ञानिक शोध के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। इसके लिए उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जा चुका है। उन्होंने देश के युवाओं में विज्ञान के प्रति लगाव पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 1954 में भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया। इसके तीन साल बाद ही 1957 में उन्हें प्रतिष्ठित लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ सीवी रमन का जन्म आज के दिन (7 नवंबर) वर्ष 1888 में  हुआ था। आज उनका 131वां जन्मदिन है।

विज्ञान के लिए छोड़ दिया उपराष्ट्रपति पद

वैज्ञानिक होने के साथ ही डॉ सीवी रमन का समाज के साथ एक गहरा नाता था। वह काफी लोकप्रिय थे। उनकी उपलब्धियों और ख्याति को देखते हुए वर्ष 1952 में उन्हें उपराष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव दिया गया। सभी राजनीतिक दल उनके नाम पर तैयार थे। उनका निर्विरोध चुना जाना एकदम तय था। बावजूद डॉ सीवी रमन ने उपराष्ट्रपति बनने से इंकार कर दिया। दरअसल, वह उपराष्ट्रपति बनने की जगह विज्ञान की दिशा में अपना काम जारी रखना चाहते थे।

जनरल अकाउंटेंट बनने वाले पहले भारतीय

डॉ सीवी रमन, बचपन से काफी मेधावी थे। बावजूद भौतिक वैज्ञानिक बनने से पहले वह आम लोगों की तरह एक सरकारी नौकरी करते थे। इनके पिता चंद्रशेखर अय्यर भी एसपीजी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे। वर्ष 1906 में एमए की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने वित्त विभाग में जनरल अकाउंटेंट के पद पर नौकरी की थी। इतने ऊंचे सरकारी ओहदे पर पहुंचने वाले वह पहले भारतीय थे। बावजूद, डॉ रमन को ये नौकरी पसंद नहीं आई। उनका मन सरकारी नौकरियों से ऊब चुका था। लिहाजा उन्होंने नौकरी छोड़ विज्ञान की दिशा में काम शुरू किया।

11 में मैट्रिक, 13 में इंटरमीडिएट

डॉ सीवी रमन बचपन से ही अन्य बच्चों से अलग और काफी तेज थे। उन्होंने महज 11 साल की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। 13 वर्ष की आयु में उन्होंने उस वक्त की एफए स्कॉलरशिप परीक्षा पास कर ली थी, जो आज इंटरमीडिएट के बराबर है। विज्ञान में उनकी जितनी रुचि थी, उतनी ही रुचि वह आध्यात्म और धर्म में भी रखते थे। उन्होंने रामायाण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन कर रखा था। रमन को उनके पिता विदेश में पढ़ाई करने के लिए भेजना चाहते थे। हालांकि एक डॉक्टर द्वारा उनके स्वास्थ्य को देखते हुए विदेश न भेजने की सलाह दी गई। इसके बाद उन्हें देश में ही पढाई पूरी करनी पड़ी।

खुद अपनी शादी का रिश्ता लेकर पहुंच गए

वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टि रखने वाले डॉ सीवी रमन एक जिंदादिल इंसान थे। वर्ष 1902 में उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। इसी कॉलेज में उनके पिता भी प्रोफेसर थे। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान डॉ सीवी रमन को एक लड़की की आवाज इतनी पसंद आयी कि वह अगले दिन ही उसके घर पहुंच गए। लड़की के घर जाकर उन्होंने उसके माता-पिता से मुलाकात की और शादी का प्रस्ताव रख दिया। खास बात ये है कि लड़की के माता-पिता भी इस शादी के लिए तुरंत तैयार हो गए। उस लड़की का नाम था लोकसुंदरी अम्मल। इस तरह दोनों विवाह बंधन में बंधे थे।

सरकारी नौकरी छोड़ बन गए अध्यापक

भौतिक विज्ञान में उनकी रुचि की वजह से ही उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और कलकत्ता के एक कॉलेज में भौतिक विज्ञान के अध्यापक बन गए। सरकारी नौकरी छोड़, अध्यापन कार्य करने के पीछे उनका मकसद था कि वह भौतिकी से जुड़े रहना चाहते थे। उनके शोध जिस-जिस तरह आगे बढ़ते रहे, भौतिकी के क्षेत्र में उनकी ख्याति देश की सरहदों से बाहर निकल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने लगी। वर्ष 1922 में डॉ सीवी रमन ने एक मोनोग्राफ का प्रकाशन किया, जिसका नाम था ‘प्रकाश का आणविक विकिरण’। उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन की जांच के लिए उसके रंगों में आने वाले परिवर्तनों की खोज की थी। भौतिक विज्ञान से उनके इसी लगाव ने उन्हें वर्ष 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिलाया। नोबेल पुरस्कार के लिए उनके नाम की संस्तुति मशहूर रूसी वैज्ञानिक चर्ल्सन, यूजीन लाक, रदरफोर्ड, नील्स बोअर, विल्सन और चार्ल्स कैबी ने की थी।

82 वर्ष की आयु में हुआ निधन

डॉ सीवी रमन को आज भी विज्ञान को देश में लोकप्रिय बनाने के लिए जाना जाता है। भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। 21 नवंबर 1970 को 82 वर्ष की आयु में डॉ सीवी रमन का निधन हुआ था। आज वह खुद हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके शोध आज भी मानव जीवन का अभिन्न अंग बने हुए हैं।

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