डी एन एस आनंद

20 अगस्त को डॉ नरेन्द्र दाभोलकर का स्मृति दिवस है जिसे ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क (AIPSN) के आह्वान पर देशभर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस के रूप में मनाया जाता है। साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड एवं जनवादी लेखक संघ झारखंड ने 20 अगस्त 2024 को इस उपलक्ष्य में एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया।‌
दरअसल यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है तथा साइंस फॉर सोसायटी झारखंड इसे वैज्ञानिक चेतना वर्ष के रूप में मना रही है। तथा इस सिलसिले में पिछले कुछ माह से ऑनलाइन परिचर्चा ‘राष्ट्रीय युवा -संवाद’ का आयोजन किया जा रहा है। यह परिचर्चा उसकी सातवीं कड़ी थी।
परिचर्चा का विषय था – ‘भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51ए (एच) : डॉ नरेन्द्र दाभोलकर की भूमिका एवं हमारी जिम्मेदारी’
परिचर्चा की अध्यक्षता डॉ अली इमाम खां (प्रमुख शिक्षाविद एवं विज्ञान संचारक), अध्यक्ष साइंस फॉर सोसायटी, झारखंड ने की जबकि समन्वयन एवं संचालन डी एन एस आनंद, महासचिव साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने किया।‌ चार सदस्यीय वक्ता पैनल में शामिल थे –
डॉ कुमारी निमिषा, असिस्टेंट प्रोफेसर, साइंस फॉर सोसायटी बिहार.
प्रहलाद चंद्र दास, अध्यक्ष जनवादी लेखक संघ झारखंड.
डॉ अहमद बद्र, अध्यक्ष इप्टा जमशेदपुर एवं संतोष शर्मा सचिव भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति, कोलकाता, पश्चिमबंगाल

विषय प्रवेश करते हुए डी एन एस आनंद ने याद दिलाते हुए कहा कि आज 20 अगस्त है, देश के अंधश्रद्धा उन्मूलन अभियान के लिए अपना बलिदान देने वाले डॉ नरेन्द्र दाभोलकर का स्मृति दिवस। जिसे देशभर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। उन्होंने परिचर्चा में शामिल लोगों का स्वागत एवं वक्ता पैनल के सदस्यों का परिचय देते हुए कहा कि यह संविधान का 75वां वर्ष है तथा संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) के अनुसार वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास देश के प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है। मौजूदा परिदृश्य को रेखांकित करते हुए उन्होंने परिचर्चा के विषय को बेहद सामयिक एवं महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने वैज्ञानिक चेतना अभियान को आगे बढ़ाने एवं व्यापक बनाने पर बल दिया ताकि डॉ नरेन्द्र दाभोलकर का बलिदान व्यर्थ नहीं हो तथा यहां अंधश्रद्धा, अंधविश्वास मुक्त, तर्कशील, वैज्ञानिक दृष्टिकोण संपन्न समाज एवं देश का निर्माण सुनिश्चित किया जा सके।

परिचर्चा की शुरुआत करते हुए साइंस फॉर सोसायटी, बिहार से जुड़ीं, राजकीय महिला कॉलेज, पटना के रसायन शास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर, वरिष्ठ विज्ञान संचारक डॉ कुमारी निमिषा ने कहा कि भारत दुनिया का पहला देश है जिसने वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को नागरिकों का मौलिक कर्तव्य निरूपित किया है। उन्होंने कहा कि देश की आजादी के 75 वर्षों बाद तथा विज्ञान तकनीक के मौजूदा दौर में भी हम अंधविश्वास दूर करने की बात कर रहे हैं। अंधविश्वास विरोधी अभियान में डॉ नरेन्द्र दाभोलकर की भूमिका की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारणों की चर्चा करते हुए लोगों के शारीरिक के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य पर समुचित ध्यान देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सवाल पूछने, सोच-समझ कर तर्कसंगत निर्णय लेने एवं खुद को बदलने से हालात बदल सकते हैं।

परिचर्चा के दूसरे वक्ता थे झारखंड के वरिष्ठ लेखक एवं जनवादी लेखक संघ झारखंड के अध्यक्ष प्रह्लाद चंद्र दास। उन्होंने अपनी बात संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) से शुरू करते हुए कहा कि संविधान की प्रस्तावना की तरह ही यह पंक्ति भी बेहद महत्वपूर्ण है। सत्ता व्यवस्था द्वारा निहित स्वार्थ के लिए अवैज्ञानिक सोच एवं अंधविश्वास को बढ़ावा देने की चर्चा करते हुए कहा कि दरअसल यह जनता के मस्तिष्क पर काबिज होने का उपक्रम है। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना के साथ ही इसके पाठ पर भी बल देते हुए कहा कि उसे सिर्फ दोहराने नहीं बल्कि रोजमर्रा के जीवन में उतारने की भी जरूरत है। समाज में मौजूद अवैज्ञानिक सोच, अंधश्रद्धा एवं अंधविश्वास के दुष्प्रभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए प्रश्न पूछने की परंपरा को आगे बढ़ाने पर बल दिया ताकि एक तर्कशील वैज्ञानिक दृष्टिकोण सम्पन्न समाज व देश का निर्माण संभव हो सके।

परिचर्चा के तीसरे वक्ता थे प्रगतिशील लेखक संघ झारखंड के अध्यक्ष मंडल के सदस्य एवं इप्टा जमशेदपुर के अध्यक्ष डॉ अहमद बद्र। पेशे से कॉलेज प्राध्यापक रहे डॉ बद्र ने जन जीवन में मौजूद अवैज्ञानिक सोच एवं अंधविश्वास की चर्चा करते हुए कहा कि इसे नासमझी अथवा निहित स्वार्थ के लिए पढ़े-लिखे लोग भी फैला रहे हैं तथा आमतौर पर गरीब लोग इसके शिकार होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 51ए (एच) की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अंधविश्वास के खात्मे के लिए सवाल पूछना एवं अपने ऊपर तथा तथ्यपरक तर्कसंगत ज्ञान पर भरोसा करना व खोजी प्रवृत्ति को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है। समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास एवं विस्तार के लिए उन्होंने वैज्ञानिक चेतना अभियान को विभिन्न गतिविधियों, कार्यक्रमों के माध्यम से जन जन तक पहुंचाने एवं वैज्ञानिक सोच समझ को अपने रोजमर्रा की जिंदगी में, व्यवहार में शामिल करने पर बल दिया।

परिचर्चा के अगले वक्ता थे प्रमुख विज्ञान संचारक एवं युक्तिवादी समिति कोलकाता पश्चिम बंगाल के सचिव संतोष शर्मा। उन्होंने कहा कि देश की आजादी के 75 वर्ष से अधिक हो गए तथा यह भारतीय संविधान का 75वां वर्ष है। पर अब भी देश में अंधश्रद्धा, अंधविश्वास का बोलबाला है। इस दिशा में किए गए डॉ नरेन्द्र दाभोलकर के अथक प्रयासों एवं बलिदान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में अंततः अंधविश्वास विरोधी कानून बना। राष्ट्रीय स्तर पर इससे संबंधित विभिन्न कानूनी प्रावधानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म के धंधेबाज पाखंडी बाबाओं के कारण आज भी देश में अंधविश्वास एवं पाखंड का बोलबाला है तथा जिसे सत्ता – व्यवस्था का सहयोग एवं बाजार की ताकतों का भरपूर समर्थन हासिल है। धार्मिक कार्यों में सरकार द्वारा आर्थिक मदद दिए जाने एवं शिक्षण संस्थानों में धार्मिक गतिविधियों के संचालक को संविधान विरोधी करार देते हुए उन्होंने कहा कि यह देश के संविधान एवं धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील एवं तर्कशील मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने बताया कि युक्तिवादी समिति ने पाखंडी बाबाओं के चमत्कारों के भंडाफोड़ के लिए 50 लाख रुपए के पुरस्कार की घोषणा की है। पर इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए कोई सामने नहीं आता। उन्होंने देश में वैज्ञानिक चेतना अभियान को मिलजुल कर आगे बढ़ाने एवं व्यापक बनाने पर बल दिया।

चर्चा में भाग लेते हुए जलेस, झारखंड के प्राणेश कुमार ने दाभोलकर के वैज्ञानिक सोच को जन-जन तक प्रसार करने पर जोर दिया। झारखण्ड जैसे आदिवासी बहुल इलाके में , जहां के वाशिंदे अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच से ग्रस्त हैं, वहां यह और भी आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा कि इस अभियान में लेखकों -रंगकर्मियों की भूमिका बढ़ जाती है। लेखकों को अपने लेखन के माध्यम से अवैज्ञानिक सोच और अंधविश्वासों पर प्रहार करना चाहिए। जन गीतों और नुक्कड़ नाटकों के द्वारा आदिवासी बहुल इलाके में लोगों को जागरूक किया जा सकता है। लेखकों को भी एक ऐक्टिविस्ट की तरह वैज्ञानिक सोच के प्रसार एवं अंधविश्वासों के विरुद्ध जागरूकता के लिए समान विचारधारा वाले लोगों के साथ इस आंदोलन में शामिल होना चाहिए।

अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ अली इमाम खां, प्रमुख शिक्षाविद एवं विज्ञान संचारक अध्यक्ष साइंस फॉर सोसायटी झारखंड ने समाज में वैज्ञानिक चेतना के विकास एवं विस्तार के लिए डॉ नरेन्द्र दाभोलकर द्वारा किए गए अथक प्रयासों की चर्चा करते हुए मिल जुलकर वैज्ञानिक चेतना अभियान को आगे बढ़ाने पर बल दिया। इस क्रम में आम आदमी की भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने समाज में मौजूद अवैज्ञानिक सोच, विसंगतियों एवं विकृतियों को तर्कसंगत ढंग से समझने की जरूरत पर बल दिया। समाज में मौजूद गैर बराबरी एवं भेदभाव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसके विरुद्ध संघर्ष के बिना वैज्ञानिक चेतना के लिए संघर्ष को भी आगे बढ़ाना कठिन होगा। इसके साथ ही उन्होंने इससे आजीविका के सवाल को भी जोड़ने पर जोर दिया। अंधविश्वास विरोधी कानूनी प्रावधानों की चर्चा करते हुए उन्होंने प्रशासन तंत्र में बैठे लोगों को संवेदना रहित बताया तथा उसे लागू करवाने एवं प्रभावशाली कानून बनाने के लिए व्यापक संघर्ष की जरूरत पर बल दिया। इस क्रम में उन्होंने क्लाइमेट चेंज, मानवाधिकार, जन विज्ञान आंदोलन आदि की चर्चा करते हुए, वैज्ञानिक चेतना एवं सामाजिक बदलाव के संघर्ष को व्यापक बनाने पर बल दिया।

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